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________________ कुम्भकण्टक-कुरुध्वज जैन पुराणकोश : ९१ जीतने के लिए यह रावण के पीछे-पीछे गया था। मपु० ६८.४३०, पपु० १०.२८, ४९-५०, पपु० ५७.४७-४८, ६२.३७ (५) सिंहपुर नगर का एक राजा। इसे नरमांस अधिक प्रिय था । नगर के बच्चे इसके भोजन हेतु मारे जाते थे । दुखी प्रजा के कारकट नगर भाग आने पर यहाँ भी आकर यह प्रजा को सताने लगा था, अतः डरकर नगर के लोगों ने इसके पास एक गाड़ी भात और एक मनुष्य प्रतिदिन भेजने की व्यवस्था कर दी थी । लोग उस नगर को कुम्भकारकटपुर कहने लगे थे। मपु० ६२.२०२-२१३, पापु० ४.११९-१२८ कुम्भकण्टक-सागरवेष्टित एक द्वीप। यहाँ करकोटक पर्वत है। चारुदत्त यहाँ आया था । हपु० २१.१२३ कुम्भकर्ण-अलंकारपुर नगर के राजा रत्नप्रभा और उसकी रानी केकसी का पुत्र । यह दशानन का अनुज और विभीषण का अग्रज था। चन्द्रनखा इसकी छोटी बहिन थी । मूलतः इसका नाम भानुकर्ण था । पपु० ७.३३, १६५, २२२-२२५ कुम्भपुर नगर के राजा महोदर को पुत्री तडिन्माला के साथ इसका विवाह हुआ था अतः उसे इस नगर के प्रति विशेष स्नेह हो गया था। कुम्भपुर नगर पर महोदर के किसी प्रबल शत्रु के आक्रमण से उत्पन्न प्रजा के दुःख भरे शब्द सुनने पड़े थे। अतः इसका नाम ही कुम्भकर्ण हो गया था। यह न मांसभोजी था और न छः मास की निद्रा लेता था। यह तो परम पवित्र आहार करता और संध्या काल में सोता तथा प्रातः सोकर उठ जाता था। बाल्यावस्था में इसने वैश्रवण के नगरों को कई बार क्षति पहँचायी और वहाँ से यह अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ स्वयंप्रभनगर लाया था। इसके पुत्र कुम्भ और इसने विद्याधर इन्द्र को पराजित करने में प्रवृत्त रावण का सहयोग किया था। पपु० ८.१४१-१४८, १६११६२, १०.२८, ४९-५० रावण को इसने समझाते हुए कहा था कि सीता उच्छिष्ट है, सेव्य नहीं. त्याज्य है। मपु० ६८.४७३-४७५ राम के योद्धाओं ने इसे बाँध लिया था। बन्धन में पड़ने के बाद उसने निश्चय किया था कि मुक्त होते ही वह निर्ग्रन्थ साधु हो जायगा और पाणिपात्र से आहार ग्रहण करेगा। इसी से रावण के दाहसंस्कार के समय पद्मसरोवर पर राम के आदेश से बन्धन मुक्त किये जाने पर इसने लक्ष्मण से कहा था कि दारुण, दुःखदायी, भयंकर भोगों की उसे आवश्यकता नहीं है । अन्त में उसने संवेग भाव से युक्त होकर तथा कषाय और राग-भाव छोड़कर मुनिपद धारण कर लिया था। कठोर तपश्चर्या से वह केवली हुआ और नर्मदा के तीर पर उसने मोक्ष प्राप्त किया । तब से यह निर्वाण-स्थली पिठरक्षत तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हुई। पपु० ६६.५, ७८.८-१४, २४-२६, ३०-३१,८०, ८२, १२९-१३०, १४० कुम्भकारकट-एक नगर । इस नगर का मूल नाम "कारकट" था। सिंहपुर नगर के राजा के मांसभोजी होने से उसके कष्ट से दुःखी प्रजा कारकट नगर भाग आयी थी। राजा के भी सिंहपुर से कार- कट आ जाने के कारण लोग कारकट को ही इस नाम से सम्बोधित करने लगे थे। मपु० ६२.२०७-२१२, पापु० ४.१२४ कुम्भपुर-एक नगर । यहाँ के राजा महोदर और उनकी रानी सुरूपाक्षी की पुत्री तडिन्मकला को भानुकर्ण ने प्राप्त किया था। महोदर के किसी प्रबल शत्रु के आक्रमण से दुःखी लोगों के दुःख भरे शब्दों को सुनने से भानुकर्ण कुम्भकर्ण के नाम से सम्बोधित किया गया था । पपु०८.१४२-१४५ कुम्भार्य-तीर्थकर अरनाथ के तीस गणधरों में मुख्य गणधर । मपु० ६५.३९ कुम्भीपाक-एक नरक । इस नरक में नाक, कान, स्कन्ध तथा जंघा आदि अंगों को काटकर नारकियों को कुम्भ में पकाया जाता है । पपु० २६.७९-८७ कुयोनि-प्राणियों की सांसारिक कारिक पर्यायें । इनकी संख्या चौरासी लाख इस प्रकार है-नित्यनिगोद, इतरनिगोद, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों की सात-सात लाख, वनस्पतिकायिक को दस लाख, विकलेन्द्रिय जीवों की छः लाख, मनुष्यों को चौदह लाख तथा पंचेन्द्रिय तियंच, नारकी और देवों की क्रमशः चार-चार लाख । हपु० १८.५६-५८ कुरंग-एक भील । यह कमठ के पूर्वभव का जीव था। इसने आतापन योग में स्थित चक्रवर्ती वजनाभि पर भयंकर उपसर्ग किया था। मपु० ७३.३६-३९ कुरु-(१) एक देश । वृषभदेव की विहारभूमि (मेरठ का पार्ववर्ती प्रदेश) मपु० १६.१५२, २५.२८७, २९.४०, हपु० ९.४४ (२) वृषभदेव द्वारा स्थापित एक वंश । सोमप्रभ इसका प्रमुख राजा था। कौरव इसी वंश में हुए थे। मपु० १६.२५८, हपु० १३.१९, ३३, पापु० २.१६४-१६५, ७.७४-७५ (३) कुरु देश के स्वामी राजा । ये कठोर शासन तथा ग्याय-पालक थे। हपु० ९.४४ (४) कुरुवंशी राजा सोमप्रभ का पौत्र और जयकुमार का पुत्र । इसका नाम भी कुरु ही था । हपु० ४५.९ (५) एक दानी नृप । इसके वंश में चन्द्रचिह्न (शशांकांक) और शूरसेन आदि अनेक राजा हुए। हपु० ४५.१९, पापु० ६.३ (५) विदेह क्षेत्र की उत्तर तथा दक्षिण दिशा में स्थित उत्तरकुरु एवं देवकुरु प्रदेश । पपु० ३.३७ कुरुक्षेत्र-कृष्ण और जरासन्ध की युद्धभूमि । इसी युद्ध में पाण्डव कौरवों से लड़े थे । मपु० ७१.७६-७७ कुरुचन्द्र-मेघेश्वर जयकुमार का पौत्र और राजा कुरु का पुत्र । हपु० ४५.९ कुरुजागल-जम्बूद्वा कुरुजांगल-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के दक्षिण भाग में स्थित और धन सम्पदा से परिपूर्ण एक देश । यहाँ महावीर ने विहार किया था। हस्तिनापुर इस देश का प्रधान नगर था। मपु० २०.२९-३०, ४३.७४, ४५.१६९, ६१.७४, ६३.३४२-३८१, हपु० ३.४, ४५.६ कुरुद्वय-देवकुरु और उत्तरकुरु । हपु० ५.८ कुरुध्वज-कुरुवंश में श्रेष्ठ राजा सोमप्रभ और उसका छोटा भाई श्रेयांस । मपु० २०.१२० Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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