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________________ कुन्युभक्ति-कुबेरवत्ता जैन पुराणकोश : ८९ शान्तिनाथ के बाद आधा पल्य समय बीत जाने पर हुआ था । इनकी । कुपूतना-कंस के पूर्वभव से सम्बन्धित देवी। कंस ने गुप्त रूप से वृद्धि आयु पचानवें हजार वर्ष, शरीर की अवगाहना पैंतीस धनुष और को प्राप्त हो रहे अपने शत्रु कृष्ण को मारने के लिए इसे गोकुल भेजा कान्ति तप्त स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के तेईस हजार सात सौ था। वहाँ कृष्ण को मारने के लिए इसने विष युक्त स्तनपान कराना पचास वर्ष बीत जाने पर इनका राज्याभिषेक हुआ और इतना ही आरम्भ किया ही था कि कृष्ण ने स्तन का अग्रभाग इतने ज़ोर से समय और निकल जाने पर इन्हें चक्रवर्तित्व मिला । राज्य-भोगों से चूसा कि यह चिल्लाती हुई भाग गयी । हपु० ३५.३७-४०, ४२ विरक्त होकर इन्होंने पुत्र को राज्य दे दिया। ये विजया नामक कुप्य-बर्तन तथा वस्त्र आदि । हपु० ५८.१७६ पालकी में बैठकर सहेतुक वन में पहुँचे । वहाँ इन्होंने वेला (दो दिन कुप्यप्रमाणातिक्रम-परिग्रह परिमाण व्रत का एक अतिचार । हप० का उपवास) किया। वंशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन सायंकाल के ५८.१७६ ममय एक हजार राजाओं के साथ ये दीक्षित हुए। दीक्षित होते ही कुबेर-(१) धान्यपुर का वणिक् । इसकी सुदत्ता नाम की पत्नी और ये मनःपर्ययज्ञानी हो गये । इस समय कृत्तिका नक्षत्र था । इसी नक्षत्र उससे उत्पन्न नागदत्त नाम का पुत्र था । मपु० ८.२३०-२३१ में १६ वर्ष तप करने के बाद तिलक वृक्ष के नीचे चैत्र शुक्ल तृतीया (२) रत्नपुर नामक नगर का निवासी वैश्य और कुबेरदत्ता का की सायं वेला में ये केवली हुए। इनके संघ में स्वयंभू आदि पैंतीस पिता । मपु०६७.९०-९४ गणधर, साठ हजार मुनि, साठ हजार तीन सौ पचास आर्यिकाएँ, (३) नन्दीश्वर-द्वीप का निवासी एक निधीश्वर । मपु० ७२.३३ तीन लाख श्राविकाएँ और दो लाख श्रावक थे। एक मास की आयु (४) धन-सम्पदा का स्वामी देव । तीर्थकरों के गर्भ में आते ही शेष रहने पर ये सम्मेदगिरि आये। इन्होंने प्रतिमायोग धारण किया यह उनके जन्म के पूर्व और बाद में भी रत्नवृष्टि करता है । पपु० और वैशाख शुक्ल प्रतिपदा के दिन रात्रि के पूर्व भाग में कृत्तिका २.५२, ७४, हपु० १.९९ नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त किया। दूसरे पूर्वभव में ये वत्स देश की (५) राजा किंसूर्य और उनकी भार्या कनकावली का पुत्र । यह सुसीमा नगरी के राजा सिंहरथ थे। तपश्चर्या पूर्वक मरण होने से ये कांचनपुर नगर की उत्तरदिशा में इन्द्र विद्याधर द्वारा नियुक्त लोकपहले पूर्वभव में सर्वार्थसिद्धि के अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुए। पाल होता है । पपु० ७.११२-११३ वहाँ से च्युत होकर इस पर्याय में आये और तीर्थकर हुए। मपु० २. कुबेरकान्त-(१) पुष्कलावती देश के मध्य में स्थित पुण्डरी किणी नगरी १३२, ६४.२-५,१०-१५, २२-२८, ३६.५४, पपु० ५.२१५, २२३, के राजश्रेष्ठी कुबेरमित्र की रानी धनवती का पुत्र । मपु० ४६.१९२०.१५-३५, ५३, ६१-६८, ८७, ११५, १२१, हपु० १.१९, ४५. २१, ३१ , २०, ६०.१५४-१९८, ३४१-३४९, पापु० ६.२७, ५१ वीवच. .(२) भरतेश के भाण्डागार का एक नाम । मपु० ३७.१५१ १८.१०१-१०९ (३) लोकाक्षनगर का राजा । पपु० १०१.६९-७१ (२) एक प्रकार के जीव । मपु० ६४.१ कुबेरच्छन्द-देवकुरु क्षेत्र के मध्य में स्थित एक विशाल उपवन । पपु० (३) तीर्थकर श्रेयांस के प्रथम गणधर । मपु० ५७.४४, हपु० ८९.५० ६०.३४७ कुबेरवत्त-(१) चम्पा नगरी का निवासी एक सेठ और कनकमाला का (४) तीर्थकर अरनाथ के प्रथम गणधर । हपु० ६०.३४८ पति । इन दोनों की पुत्री कनकश्री अन्तिम केवली जम्बस्वामी को कुन्थुभक्ति-इक्ष्वाकुवंशी कुबेरदत्त का पुत्र, शरभरथ का पिता । पपु० दी गयी थी। मपु०७६.४६-५० २२.१५६-१५९ (२) मगध देश के सुप्रतिष्ठ नगर के निवासी श्रेष्ठी सागरदत्त कुन्द-(१) विजयार्घ पर्वत की उत्तरश्रेणी का इकतीसवाँ नगर । मपु० और उसकी भार्या प्रभाकरी का छोटा पुत्र और नागसेन का अनुज । १९.८२,८७ पिता की मृत्यु के पश्चात् भाई को सम्पत्ति का उचित भाग देकर (२) रावण का सहायक महायोद्धा नृप । पपु० ७४. ६३-६४ इसने अपनी सम्पत्ति से अनेक चैत्य-चैत्यालय बनवाये और चतुर्विध कुन्दकुन्द-सम्पूर्ण श्रुत के विनाश के भय से अवशिष्ट श्रुत को ग्रन्थ दान दिया था। यह मुनिराज सागरसेन का भक्त था। मपु०७६. रूप में संरक्षित करनेवाले आचार्य भूतबली और पुष्पदन्त के बाद हुए २१६-२९३ पंचाचार से विभूषित निर्ग्रन्थ आचार्य । इन्होंने पंचम काल में गिरि- (३) इक्ष्वाकुवंश में हुए शासकों में बसन्ततिलक का पुत्र और नार पर्वत केशिखर पर स्थित पाषाण निर्मित सरस्वती देवी को बोलने कोतिमान् का पिता । पपु० २२.१५६-१५९ के लिए बाध्य कर दिया था। पापु० १.१४, वीवच० १.५३-५७ (४) कुमार वसुदेव का मित्र । यह महापुर का सेठ था। हपु० कुन्दनगर-एक नगर । पपु० ३३.१४३ २४.५० कुन्दर-भरत के साथ दीक्षित एक राजा । तपस्या करके इन्होंने उत्तम (५) जम्बद्वीप के विदेह क्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी का एक गति प्राप्त की थी । पपु०८८.१-५ वणिक् । उसकी स्त्री अनन्तमति से श्रीमती का जीव केशव धनदेव कुपात्र-मिथ्यादर्शन, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या चारित्र के धारक । हपु० नाम का पुत्र हुआ। मपु० ११.१४ ७.११४ कुबेरवत्ता-भरतक्षेत्र के मलय नामक राष्ट्र में रत्नपुर नगर के निवासी १२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016061
Book TitleJain Puran kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1993
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size18 MB
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