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________________ ३ कथाकोशः है । यद्यपि दोनोंके अन्तमें पृथक् सन्धिवाक्य हैं किन्तु आरम्भिक मङ्गल दो नहीं है । अतः यह एक ही रचना है। प्रथम भागके अन्त में वह अपने को ( श्रीमत ) प्रभाचन्द्र पण्डित लिखते हैं और दूसरेके अन्तमें भट्टारक (श्री) प्रभाचन्द्र । दोनों भागों में अन्तिम पद्य एक ही है । यद्यपि ग्रन्थका नाम लिखने में अन्तर है। प्रथम भागके अन्त में लिखा है कि जयसिंहदेवके राज्यमें धारा नगरीके निवासी प्रभाचन्द्र पण्डितने यह ग्रन्थ रचा । ग्रन्थकारने अपने सम्बन्धमें केवल इतना ही कहा है । अतः इस ग्रन्थका रचनाकाल ईसवी सनकी ग्यारहवी शताब्दी है क्योंकि प्रभाचन्द्र जयसिंहदेवके समकालीन थे जो भोजके ( १०१८-५५ ) के पश्चात् लगभग १०५५ ई. गद्दीपर बैठे। यह प्रभाचन्द्र हमारे ज्ञात प्रभाचन्द्रोमें-से किसी एकके साथ मेल खाते हैं या नहीं, इस समस्याको सुलझाना कठिन है। स्व. पं. जुगलकिशोरजी मुख्तारने मा. अ. बम्बईसे प्रकाशित रत्नकरण्ड श्रा. की अपनी प्रस्तावनामें बीस प्रभाचन्द्रोंका निर्देश किया है। इनमें-से मैं नं. १२ के प्रभाचन्द्रको जिन्होंने उत्तर पुराणपर टिप्पण लिखा है, और भोजके राज्यमें सम्भवतया प्रमेयकमलमार्तण्डपर भी टिप्पणी रचा है कथाकोशको कर्ता होनेकी सम्भावना करता हूँ। यह बहुत सम्भव है कि यह वही प्रभाचन्द्र है जिन्होंने रत्नकरण्ड श्रावकाचार, आत्मानुशासन और समाधितन्त्रपर संस्कृतमें टीकाएँ रची हैं। इस कथाकोश और रत्न. श्रा. की टीकामें आगत कुछ कथाएँ समान है और दोनोंमें कुछ कथाएँ रामचन्द्र मुमुक्षुके पुण्यास्रव कथाकोशसे ली गयी हैं। ( देखो जीवराज ग्रन्थमाला शोलापुरसे प्रकाशित इसकी प्रस्तावना ) ___स्व. पं. महेन्द्र कुमारने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रकी अपनी प्रस्तावनाओंमें कहा है कि इनका रचयिता प्रभाचन्द्र ही उक्त टोकाओंका रचयिता है। किन्तु अनेक कारणोंसे इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता । पूर्व विद्वानोंने लिखा है कि इस बातका सन्देह करनेका पर्याप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016058
Book TitleKathakosha
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorA N Upadhye
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1974
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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