SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : १-८] १. पूजाफलम् क ४१ ततः स पलाय्य राजगृहे श्रेणिकस्य तद्रूपमदर्शयत् । स तद्वीक्षणात् सचिन्तोऽजनिकथं सा प्राप्यते, स जैनं विहायान्यस्य स्वतनुजां न प्रयच्छति, युद्धे च विषम इति । अभयकुमारः पितृभक्त्या तं समुद्धीर्य स्वयं सार्थाधिपो भूत्वा तत्र जगाम । चेटकमहाराज वोदय संभाष्य च तस्यातिप्रियोऽजनि। राजभवनान्तिके आवासं ययाचे । तत्र तिष्ठन् जैनत्वेन गुणेन चातिप्रसिद्धोऽभूत् । कन्यात्रयाग्रे श्रेणिकरूपं प्रशंसयामास। तास्तदासक्तास्तं प्रार्थिरे, अस्मान् तं प्रति नयेति । स स्वावासात्तत्र सुरङ्गामकार्षीत् । तेनाकर्षणावसरे चन्दना अवादीन्मुद्रिका विस्मृता मया, ज्येष्ठावदत् हारो मयेति द्वे अपि व्याघुट येते । स चेलिन्या तस्मानिर्जगाम पुरादपि, दिनान्तरे राजगृहं समाययो। श्रेणिकोऽर्धपथान्महाविभूत्या तां पुरमवीविशत्सुमुहूर्त अवीवरदग्रमहिषी चकार । तया भोगाननुभवन् स्वधर्म तस्या अचीकथन् । तथापि सा जिनधर्म नात्यजत् । एकदा जठराग्निरागत्य तदग्रेऽभणत्-हे देवि, क्षपणका मृत्वा सुरलोके क्षपणका एव भक न्तीति । तयावादि कथं त्वयाबोधीदम् । सोऽवदद्विष्णुर्मतिमदात्तयाबोधि मया। एवं तर्हि उसने वहाँसे राजगृहमें जाकर वह रूप राजा श्रेणिकको दिखलाया। उस रूपको देखकर श्रेणिकको उसके प्राप्त करनेकी चिन्ता उत्पन्न हुई। श्रेणिक विचार करने लगा कि वह (राजा चेटक) जैनको छोड़कर दूसरेके लिए अपनी कन्या नहीं दे सकता है। उधर युद्ध में उसको जीतना अशक्य है । तब पितृभक्त अभयकुमारने पिताको धैर्य दिलाया और वह स्वयं व्यापारियोंके संघका स्वामी बनकर वैशाली जा पहुँचा । वहाँ जाकर वह चेटक महाराजसे मिलकर और उनसे सम्भाषण करके उनका अतिशय प्रेमपात्र बन गया । उसने चेटकसे राजभवनके पास ठहरनेके लिए स्थान देनेकी प्रार्थना की । तदनुसार स्थान प्राप्त करके वहाँ रहता हुआ वह जैनत्व गुणसे अतिशय प्रसिद्ध हो गया। उसने चेटक राजाकी अविवाहित तीन कन्याओंके समक्ष श्रेणिकके रूपकी खूब प्रशंसा की। श्रेणिकके विषयमें अनुरक्त होकर उन कन्याओंने उससे श्रेणिकके पास ले चलनेकी प्रार्थना की। इसके लिए अभयकुमारने वहाँ अपने निवासस्थानसे लगाकर एक सुरंग बनवायी। अभयकुमार जब इस सुरंगसे उन तीनोंको ले जा रहा था तब चन्दना बोली कि मैं मुंदरी भूल आयी हूँ और ज्येष्ठा बोली कि मैं हारको भूल आयी हूँ । इस प्रकार वे दोनों वापिस हो गई। तब अभयकुमार चेलिनीके साथ वहाँ से निकल पड़ा और कुछ ही दिनोंमें वैशालीसे राजगृह आ गया । श्रेणिकने चेलिनीको आधे मार्गसे महा विभूतिके साथ नगरमें प्रविष्ट कराया और शुभ मुहूर्तमें उसके साथ विवाह करके उसे पटरानी बना दिया। ___ वह उसके साथ भोगोंका अनुभव करता हुआ उसे अपने धर्मके विषयमें कहने लगा। तो भी उसने जिनधर्मको नहीं छोड़ा । एक दिन जठराग्निने आकर उससे कहा कि हे देवी! क्षपणक ( दिगम्बर ) मर करके स्वर्गलोकमें क्षपणक ( दरिद्र) ही होते हैं । यह सुनकर चेलिनीने उससे कहा कि यह तुमने कैसे जाना है। उत्तरमें उसने कहा कि मुझे विष्णुने बुद्धि दी है, उससे मैं यह सब जानता हूँ। यह सुनकर चेलानी बोली कि यदि ऐसा है तो आप १. फ ब तद्रूपमदीदर्शन् । २. फ युद्धे तदुर्गातिविषम । ३. श तास्तदासक्त्या सं० । ४. फ सुरंगमाकार्षी ब सुरंगमाकाषीं। ५. प श चंदनावावदी ब चंदना अवदी । ६. प श व्याजघुटतुः फ व्याघुट्यते ब व्याघुटतु । ७. ५ श श्रेणिकोर्द्धपथमहाँ ब श्रेणिकोर्टपथा महा। ८. ब तस्याचीकथं । ९. फ क्षपणा एव भवतीति ब क्षपणा एव भवन्तीति श क्षपका एव भवंतीति । १०. प°द्विष्णुमतिमदात्तथाबोधि । Jain Education Internatęnal For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy