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________________ ३८ पुण्यात्रवकथाकोशम् [१-८: दत्तो घटस्थकूष्माण्डमानेतन्यमिति लघु तत्फलं घटे निक्षिप्य वर्धयित्वा दत्तम् । अन्यदा राशा प्रत्युपायदायकपरिक्षानार्थे विचक्षणाः प्रेषिताः। तानागच्छतो बहिर्जम्बूवृक्षस्योपरिस्थितोऽभयकुमारोऽपश्यत् । अमोभिर्मा कोऽपि वदत्विति' सर्वे बटुका निवारिताः । तैरागत्य वृक्षतले उपविश्य कुमारस्योक्तमस्मभ्यं जम्बूफलानि देहीति । तेनोक्तमुष्णानि दीयन्ते शीतलानि वा। तैरुक्तमुष्णानि प्रयच्छेति, ततः पक्कानि गृहीत्वा ईषद्धस्ते मर्दयित्वा बालुकामध्ये निक्षिप्तानि । वालुकाः फूत्कुर्वतस्तानवलोक्यं कुमारोऽभणत् 'दूरेण फूत्कुर्वन्त्वन्यथा श्मभूणि उपप्लुष्यन्ति ।' ततस्ते लजिताः शीतलानि याचयित्वा व्याघुट य गत्वा राक्षस्तत्स्वरूपं कथितवन्तः । ततोsन्यदादेशो दत्तस्तत्रत्यबालकैर्मार्गमुन्मार्ग शकटाद्यारोहणमहोरात्रं च वर्जयित्वागन्तामति । ततः शकटीनामक्षेषु शिक्यानि बन्धयित्वा तेषु प्रविश्याभयकुमारादयः संध्यावसरे राजानमपश्यन् । तदुक्तम् मेषश्च वापी करिकाष्ठतैलं क्षीराण्ड वालुकवेष्टनं च । घटस्थकूष्माण्डफलं शिशूनां दिवानिशावर्जसमागमं च ॥२॥ भी सम्भव नहीं है, यह कहकर वे वापिस चले गये। नवमी बार राजा श्रेणिकने उन्हें यह आज्ञा दी कि घड़ेमें रखकर कुम्हड़ाको लाओ। तब उन्होंने एक छोटे-से कुम्हड़ाके फलको घड़के भीतर रखकर वृद्धिंगत किया और फिर उसे राजाको समर्पित कर दिया । इसके पश्चात् राजाने प्रत्युपाय देनेवाले (उक्त समस्याओंके हल करनेका उपाय बतानेवाले) मनुष्यको ज्ञात करनेके लिए चतुर पुरुषोंको नन्दिग्राम भेजा । उस समय अभयकुमार गाँवके बाहिर एक जामुनके वृक्षपर चढ़ा हुआ था । उसने उनको आते हुए देखकर सब बालकोंसे कहा कि इनके साथ कोई वार्तालाप न करे, इस प्रकार कहकर उसने समस्त बालकोंको उनसे बातचीत करनेसे रोक दिया। तत्पश्चात् राजाके द्वारा भेजे हुए वे चतुर पुरुष वहाँ आकर उक्त जामुन वृक्षके नीचे बैठ गये। वहाँ उन्होंने अभयकुमारसे कहा कि हमारे लिए कुछ जामुनके फल दो। इसपर अभयकुमारने उनसे पूछा कि गरम फल दिये जाँय या शीतल । उत्तरमें उन्होंने गरम फल देनेके लिए कहा। तब अभयकुमारने पके हुए फलोंको लेकर और उन्हें कुछ हाथसे मसलकर वालुके मध्यमें कस्खा, उन फलोंको पाकर जब वे उनके ऊपरकी धूलको फूंकने लगे तब उन्हें ऐसा करते हुए देखकर अभयकुमारने कहा कि दूरसे फूंको, अन्यथा दाढ़ियां जल जावेंगीं। इससे लज्जित होकर उन्होंने उससे शीतल फलोंकी याचना की । तत्पश्चात् वापिस जाकर उन लोगोंने यह सब वृत्तान्त राजासे कह दिया। उसे सुनकर राजाने दूसरे दिन उन्हें यह आदेश दिया कि नन्दिग्रामके बालक मार्ग, कुमार्ग और गाड़ी आदि सवारी तथा दिन-रात्रिको छोड़कर यहाँ उपस्थित हों। तब अभयकुमार आदिने गाड़ी आदिके अक्षोंमें सीकोंको बाँधकर और उनके भीतर प्रविष्ट होकर सन्ध्याके समयमें राजाके दर्शन किये । वही कहा है __ मेढ़ा, वापी, हाथी, लकड़ीका टुकड़ा, तेल, दूध, मुर्गा, बालुवेष्टन, घड़ेमें स्थित कुम्हड़ाका फल और दिन व रातको छोड़कर बालकोंका आगमन; इतने प्रश्नोंका समाधान करके राजाज्ञाकी आज्ञाके पालन करनेका आदेश नन्दिग्रामके उन ब्राह्मणोंको दिया गया था ॥२॥ १. फ वदंत्विति । २. ५ वटुकार्निवारिताः, फ वटुकानि निवारिताः ब वाटुका निवारिताः । ३. श अतोऽग्रेऽग्रिम मुष्णाणि' पर्यन्तः पाठः स्खलितोऽस्ति । ४. फ ब च । ५. फ फुत्कुर्वन्त त-। ६ फ स्मश्रुव्यपष्णुष्यन्ति, ब स्मंश्रत्युपश्ष्यनुन्ति । ७. फ लक्षिताः । ८. श क्षीरांवुजं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org :
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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