SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ : १-८] १. पूजाफलम् ८ वापिका आनीतेति कथिते निद्रालुना तेन तत्रैव मुञ्चतेत्युक्ते बलीवान् गृहीत्वा गताः। राज्ञा पृष्टे तत्रैव मुक्तेत्युक्तम् । अन्यदा हस्ती अस्य गौरवप्रमाणं प्रतिपादनीयमिति प्रस्थापितः । अभयकुमारेण तडागे वहिनं निक्षिप्य हस्ती प्रवेश्य निःसारितः। तत्प्रमाणास्तत्र पाषाणा निक्षिप्ताः । तानूर्वमानेन प्रमीय तद्गुरुत्वं कथितम् । अन्यदा खदिरसारभूतं हस्तप्रमाणं काष्ठं प्रेषितवानस्याधस्तनोपरितनांशी कथनीयाविति । तजले निक्षिप्य तौ परिज्ञाय निरूपितौ । अन्यदा तिलाः प्रेषिताः, येन केनचिन्मानेन तिलान् गृहीत्वा तन्मानप्रमाणमेव तैलं दातव्यमिति । दर्पणतले तिलान् गृहीत्वा तैलं दत्तम् । अन्यदादेशो दत्तो द्विपदचतुष्पदनालिकेरक्षीरं विहाय भोजनयोग्यं तीरमानेतव्यमिति क्षीरग्रहणावसरे शालिकणिशानि निःपीड्य घटान्तरितं कृत्वा तत्क्षीरं प्रेषितम् । अन्यदादेशो दत्तो एक एव कुक्कुटोऽस्मदने योद्धव्य इति तस्य दर्पणं प्रदर्श्य तबिम्बेनैव योधितः। अन्यदादेशो दत्तो बालुकावेष्टनमानेतव्यमिति वालुकां गृहीत्वा राजनिकटं गत्वोक्तवन्तो हे देव, भवद्भाण्डागारस्थं तद्वेष्टनं प्रदर्शनीयं येन तत्प्रमाणं कुर्म इति । अस्मद्भाण्डारे नास्ति तर्हि वापि नास्तीति वचनेन जित्वा गतः। अन्यदादेशो हुए । उन लोगोंने राजासे निवेदन किया कि हे देव ! हम लोग कर्पूरवापीको ले आये हैं। इसे सुनकर राजाने नींदकी अवस्थामें कहा कि उसको वहींपर छोड़ दो। यह सुनकर वे बैलोंको लेकर वापिस चले गये। फिर जब राजाने उनसे पूछा तो उन लोगोंने कह दिया कि आपकी आज्ञानुसार हमने उसको वहीं छोड़ दिया है। तीसरी बार श्रेणिकने एक हाथीको पहुँचाकर उसके शरीरका प्रमाण ( वजन ) बतलानेकी आज्ञा दी। तब अभयकुमारने तालाबमें एक नावको रखकर उसके भीतर हाथीको प्रविष्ट कराया और पश्चात् उसे निकाल लिया। हाथीके साथ उस नावको गहरे पानी में ले जाकर उसका जितना अंश पानीमें डूबा उसको चिह्नित कर दिया। फिर नावमेंसे उस हाथीको नीचे उतारकर उसमें पत्थरोंको रक्खा। उपर्युक्त चिह्न प्रमाण नावके डूबने तक जितने पत्थर नावमें आये उन सबको तौलकर तत्प्रमाण हाथीके शरीरका प्रमाण निर्दिष्ट करा दिया। चौथी बार श्रेणिकने एक हाथ प्रमाण खैरकी सारभूत लकड़ीको भेजकर उसके नीचे और ऊपरके भागोंको बतलानेकी आज्ञा दी। तब उसको पानीमें डालकर उन दोनों भागोंको ज्ञात किया और श्रेणिकको बतला दिया । पाँचवीं बार उसने तिलोंको भेजकर यह आज्ञा दी कि जिस किसी मानसे तिलोंको ले करके उस मानके प्रमाण ही तेल दो। तब दर्पणतलके प्रमाण तिलोंको लेकर तत्प्रमाण तेल समर्पित कर दिया गया । छठी बार ब्राह्मणों को यह आज्ञा दी गई कि द्विपद ( मनुष्य ), चतुप्पद ( गाय-भैंस आदि ) और नारियलके दूधको छोड़कर भोजनके योग्य दूधको लाओ। इस आज्ञाकी पूर्तिके लिए दूधके ग्रहणके समय धानके कणोंको पेरकर और उसे घड़ेके भीतर करके वह दूध श्रेणिके पास भेज दिया गया । सातवीं बार उन्हें यह आदेश दिया गया कि हमारे आगे एक ही मुर्गेको लड़ाओ। तब उस मुर्गेको दर्पण दिखलाते हुए उसके प्रतिबिम्बके साथ ही लड़ाकर उक्त आदेशकी पूर्ति कर दी गई। आठवीं बार जब उन्हें बालुके वेष्टनको लानेकी आज्ञा दी गई तब वे बालुको लेकर राजाके पास गये और उससे कहा कि हे देव ! आप अपने भाण्डागारमें स्थित बालुके वेष्टनको दिखलाइए, जिससे कि हम उसके बराबर इसे तैयार कर दें। यह सुनकर जब राजाने कहा कि हमारे भाण्डागारमें वह नहीं है तब उन ब्राह्मणोंने कहा कि तो फिर वह कहीं १. फ 'अस्य' नास्ति । २.फ पटांतरितं कृत्वा तत्क्षीरे ब पट्टांतरितं कृत्वा तत् क्षीर-। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy