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________________ : ६-८, ४१] ६. दानफलम् ८ अस्य कथा- अत्रैवायोध्यायां राजानौ बल-नारायणौ रामलक्ष्मणौ। रामस्य देवी सीता । तस्या गर्भसंभूतौ सत्यां पूर्व यदा पितृवचनपालनार्थ भरताय राज्यं दत्त्वा वनप्रवेशं कृतवन्तौ तदा सा रावणेन चोरयित्वा नीता । रामलक्ष्मणाभ्यां तं निहत्य सानीता। रावणस्य गृहे स्थिता सीता रामस्य स्वगृहे 'निधातुमनुचितमिति प्रजाभिरुक्ते रामेणाटव्यां त्याजिता। तत्र हस्तिधरणार्थ समागतपुण्डरीकिणोपुरोशवज्रजोन जैनीति भगिनोभावेन स्वपुरं नीता । तत्र लवाङकुशास्ययोः पुत्रयोर्युगमसूत। तौ वज्रजङ्घकृतविवाहौ निजभुजप्रतापेन साधितनानाभूभुजौ प्रत्येकं महामण्डलेश्वरपदव्यालंकृतौ । नारदात् पिता-पितव्यावधिगम्यायोध्यामागत्य तौ युद्धे "जिग्यतुस्तदा सकौतुकाभ्यां पिता-पितृव्याभ्यां नारदात् पुत्राविति प्रबुध्य पुरं प्रवेशितौ युवराजभूतौ सुत्रमासतुः। विभीषणादिप्रधानवचनेन रामेण सीताया अग्निप्रवेशे दिव्यो दत्तः । सा तेन विशुद्धा भत्वा तत्रैव महेन्द्रोद्यानस्थसकलभषणमुनिसमवसरणे पृथ्वीमतिक्षान्तिकाभ्यासे दीक्षिता। रामः सपरिचारस्तां निवर्तयितु ___ इसकी कथा इस प्रकार है- यहाँ ही अयोध्यापुरीमें राम और लक्ष्मण नामकें दो राजा राज्य करते थे। वे दोनों क्रमसे बलभद्र और नारायण पदके धारक थे। रामचन्द्रकी पत्नीका नाम सीता था । उसके गर्भाधान होनेके पूर्व जब राम और लक्ष्मण पिताके वचनकी रक्षा करनेके लिए भरतको राज्य देकर वनको गये थे तव रावण उस सीताको चुराकर ले गया था। उस समय राम और लक्ष्मण रावणको मारकर सीताको वापिस ले आये थे । इसकी निन्दा करते हुए प्रजाजन यह कह रहे थे कि सीता जब रावणके घरमें रह चुकी है तब राजा रामचन्द्रके लिए उसे वापस लाकर अपने घरमें रखना योग्य नहीं था। इस निन्दाको सुनकर रामचन्द्रने उसे त्यागकर वनमें भिजवा दिया। उस समय वह गर्भवती थी। उक्त वनमें जब पुण्डरीकिणीपुरका राजा वज्रजंघ हाथीको पकड़नेके लिए पहुँचा तब उसने वहाँ सीताको देखा। सीता चूँकि जैन धर्मका पालन करनेवाली थी, अतएव वज्रजंघ उसे धर्मबहिन समझकर अपने नगरमें ले आया। वहाँपर उसने लव और अंकुश नामके युगल पुत्रोंको उत्पन्न किया। ये दोनों पुत्र जब वृद्धिको प्राप्त हो गये तब वज्रजंघने उनका विवाह कर दिया । उन दोनोंने अपने बाहुबलसे अनेक राजाओंको जीत लिया था। इससे वे दोनों 'महामण्डलेश्वर के पदसे विभूषित हुए। पश्चात् वे नारदसे अपने पिता रामचन्द्र और चाचा लक्ष्मणका परिचय पाकर अयोध्या आये। वहाँ उन्होंने पिता और चाचासे युद्ध करके उसमें विजय प्राप्त की। उनके पराक्रमको देखकर रामचन्द्र और लक्ष्मणको बहुत आश्चर्य हुआ । परन्तु जब नारदने उन्हें यह बतलाया कि ये तुम्हारे ही पुत्र हैं तब वे दोनों लव और अंकुशको नगरके भीतर ले गये। वहाँ वे युवराज होकर सुखपूर्वक रहने लगे। पश्चात् विभीषण आदि प्रधान पुरुषोंके कहनेसे रामचन्द्रने सीताको अपनी निर्दोषिता प्रमाणित करनेके लिये अग्निप्रवेश विषयक दिव्य शुद्धिका आदेश दिया। तदनुसार सीताने अग्निप्रवेश करके अपनी निदोषता प्रगट कर दी । तत्पश्चात् उसने वहींपर महेन्द्र उद्यानके भीतर स्थित सकलभूषण मुनिके समवसरणमें पृथ्वीमति आर्यिकाके समीपमें दीक्षा ले ली। तब राम १. ज निस्थातु प श निना। २. श हस्तिधारणार्थ । ३. प श समागतं । ४. ज पितृव्यावगगम्या फ ब पितापितृव्याववगम्या । ५. श जिज्यतु । ६. व निवत्तियितुं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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