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________________ : ६-७, ४८] ६.दानफलम् ७ किनरो भूत्वा तस्मादागत्यायोध्यायां मण्डलेश्वरो जातः । तदगजपादेन हताः सन्तस्तापसत्वं प्राप्य ततो ज्योतिर्लोके उत्पद्य तस्मादागत्य चक्रवर्तिनोऽपत्यानि बभूवुः। स मण्डलेश्वरस्तपसा स्वर्गे जातः, तस्मादागत्य त्वं जातोऽसि । श्रुत्वा स्वपुत्राय राज्यं दत्त्वा भागीरथो मुनिरभूत् मोक्षं च गतः इति मिथ्याष्टिरपि विप्रः सकृन्मुनिदानेनैवंविधोऽभूत् सदृष्टिर्दानपतिः किं न स्यादिति ॥ ६॥ [४८ ) भुक्त्वा भो भोगभूमौ सुरकुजजनितं सौख्यं च दिविज देत्तादाहारदानात् द्विजवरतनयो मूर्खावपि ततः । जातौ सुग्रीवबन्धू नलतदनुजको रामस्य सचिवौ तस्माद्दानं हि देयं विमलगुणगणैर्भव्यैः सुमुनये ॥ ७॥ अस्य कथा-- अत्रैवार्यखण्डे किष्किन्धपर्वतस्थकिष्किन्धपुरे राजा कपिकुलभवः सुग्रीवः, तद्भातरौ नल-नोलौ । ते सुग्रीवादयो रामस्य भृत्याः। रामरावणयोः सीतानिमित्तं युद्धे सति नल-नीलाभ्यां रामसेनापतिभ्यां रावणस्य सेनापती हस्त-प्रहस्तौ हतौ । तौ ताभ्यां गिंजाई (एक प्रकार क्षुद्र बरसाती कीड़े ) हुए। और वह कुम्हार किंनर होकर वहाँसे आया और उसी अयोध्या में मण्डलेश्वर हुआ। उसके हाथोके पैरके नीचे दबकर वे सब गिंजाईकी पर्यायसे मुक्त होकर तापस हुए । तत्पश्चात् वे ज्योतिर्लोकमें उत्पन्न होकर वहाँसे च्युत हुए और अब सगर चक्रवर्तीके पुत्र हुए हैं। वह मण्डलेश्वर मरकर तपके प्रभावसे स्वर्ग में गया और फिर वहाँसे आकर तुम हुए हो । इस सब पूर्व वृत्तान्तको सुनकर भागीरथ अपने पुत्रको राज्य देकर मुनि हो गया और मोक्षको प्राप्त हुआ। इस प्रकार वह (आरम्भक) मिथ्यादृष्टि भी ब्राह्मण एक बार मुनिके लिए दान देकर जब चक्रवर्तीकी विभूतिको प्राप्त हुआ और अन्तमें मोक्ष भी गया है तब भला सम्यग्दृष्टि भव्य जीव उस दानके प्रभावसे क्या वैसी विभूतिको नहीं प्राप्त होगा ? अवश्य प्राप्त होगा ॥६॥ ब्राह्मणके दो मूर्ख पुत्र मुनिके लिए दिये गये आहारदानके प्रभावसे भोगभूमिमें कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न सुखको और तत्पश्चात् स्वर्गके सुखको भोगकर सुग्रीवके नल और उसके छोटे भाई (नील) के रूपमें बन्धु हुए हैं जो रामचन्द्र के मन्त्री थे । इसीलिए उत्तम गुणोंके समहसे संयुक्त भव्य जीवोंको मुनिके लिये दान देना चाहिये ॥७॥ ___ इसकी कथा इस प्रकार है- इसी आर्यखण्डके भीतर किष्किन्ध पर्वतके ऊपर स्थित किष्किन्धपुरमें बानरवंशी सुग्रीव नामका राजा राज्य करता था। उसके नल और नील नामके दो भाई थे। वे सुग्रीव आदि रामचन्द्रके सेवक थे । जब सीताहरणके कारण रामचन्द्र और रावणके बीच में युद्ध प्रारम्भ हुआ था तब नल और नीलने रामचन्द्रके सेनापति होकर रावणके सेनापति हस्त और प्रहस्तको मार डाला था। उन्होंने उन्हें इस भवके विरोधसे मार डाला था १. ब दत्वाहार। २. श मूर्षावापि । ३. फ बन्धो। ४. ज प श किविकंधपर्वतस्थकिविकधपुरे ब किष्कंधर्वतस्थकिष्कंधपरे । ५. ब प्रतिपाठोऽयम् । श हस्तप्रहस्तौ तौ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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