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________________ ३०२ पुण्यास्रवकथाकोशम् [ ६-६, ४७ : भरतवत् राज्यं कुर्वन् तस्थौ। तस्य षष्टिसहस्राः पुत्रा जाताः। ते प्रतिदिनं चक्रिणं प्रेषणं याचन्ते स्म । चक्री मे दुःसाध्यं नास्तीति तदुपरोधेन कैलाशस्य परितो जलखातिका खनन्त्विति प्रेषणमदत्त । चक्रवर्तिप्रेषणात्कैलाशस्य परितो खातिका दण्डरत्नेन खनित्वा तबृहत्पुत्रो जाह्नवी [जन: तस्य पुत्रो भागीरथः अपरोऽपि कश्चन भीमरथः, उभौ दण्डरत्नं गृहीत्वा गङ्गाजलानयनार्थ जग्मतुः। अत्र प्रस्तावे दण्डरत्नरभसा ऋद्धधरणेन्द्रणेतरे मारिताः। पूर्व कश्चन सगरप्रतिपादितपञ्चनमस्कारवशात् सौधर्म संपन्नस्तेन चासनकम्पात् शात्वागत्य विप्रवेषेण प्रतिबोधितः सन् भागीरथाय राज्यं समर्प्य प्रव्रज्य मोक्षं गतः सगरः । भागीरथेनैकदा धर्माचार्या अभिवन्द्य पृष्टाः मम पितृभिः कथं समुदायकर्मोपार्जितमिति। ऊचुस्ते-अवन्तीग्रामे कुटुम्बिनः षष्टिसहस्रा जाताः । एकः कुम्भकारः। मुनिनिन्दां कुर्वन्तः कुम्भकारेण निवारितास्ते कुम्भकारे ग्रामान्तरे गते सर्वे भिल्लारिताः सन्तः शङ्खा बभूवुस्ततः कपर्दिका इत्यादि भवान्तरं भ्रमित्वा पश्चादयोध्याबाह्य गिंजाइका जाताः। स कुम्भकारः वर्तीने भरत चक्रवर्तीके समान बहुत समय तक राज्य किया। उसके साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे प्रतिदिन चक्रवर्तीसे आदेश माँगते थे । परन्तु वह चक्रवर्ती कहता कि मेरे लिए दुःसाध्य कुछ भी नहीं है-सब कुछ सुलभ है, अतएव तुम लोगोंको आज्ञा देनेका कुछ काम नहीं है । परन्तु जब उन पुत्रोंने इसके लिये बहुत आग्रह किया तब उसने उन्हें कैलाश पर्वतके चारों ओर जलसे परिपूर्ण खाईके खोदनेकी आज्ञा दी। तब चक्रवर्तीकी आज्ञानुसार उन सबने कैलाश पर्वतके चारों ओर दण्ड-रत्नसे खाईको खोद दिया। तत्पश्चात् सगर चक्रवर्तीका जह्न नामका- जो ज्येष्ठ पुत्र था उसका पुत्र भागीरथ और दूसरा कोई भीमरथ ये दोनों दण्ड-रत्नको लेकर गंगाजल लेनेके लिए गये। इस बीचमें उस दण्ड-रत्नके वेगसे क्रोधको प्राप्त हुए धरणेन्द्रने अन्य सब पुत्रोंको मार डाला। पूर्वमें कोई सगर चक्रवर्तीके द्वारा दिये पंचनमस्कार मन्त्रके प्रभावसे सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ था। उसका उस समय आसन कम्पित हुआ । इससे वह चक्रवर्तीके पुत्रोंके मरणको जानकर ब्राह्मणके वेषमें उस सगर चक्रवर्तीको सम्बोधित करने के लिए आया । तदनुसार उससे सम्बोधित होकर सगर चक्रवर्तीने भागीरथके लिए राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली। वह तपश्चरण करके मुक्तिको प्राप्त हुआ। एक समय भागीरथने धर्माचार्यकी वन्दना करके उनसे पूछा कि मेरे पिताओं ( पिता व पितृव्यों ) ने किस प्रकारके समुदायकर्मको उपार्जित किया था ? इसके उत्तर में वे बोले-- अवन्ती ग्राममें साठ हजार कुटुम्बी ( कृषक ) उत्पन्न हुए थे। वहाँ एक कुम्हार भी था । एक समय उन सबने मिलकर मुनिकी निन्दा की। उस कुम्हारने उन्हें मुनिनिन्दासे रोका था । कुम्हारके किसी अन्य गाँवमें जानेपर उन सबको भीलोंने मार डाला था। इस प्रकारसे मृत्युको प्राप्त होकर वे शंख और कौड़ी आदि अनेक भवोंमें परिभ्रमण करके तत्पश्चात् अयोध्याके बाहर १. ब श सहश्राः । २. श खातिका। ३. फ़ रसभात् । ४. फ सौधर्म संपन्न । ५. व प्रतिपाठोऽयम् । शचार्योंभिवंद्य पृष्टो । ६. ब सहस्रजाताः । ७. ब वाह्ये गंजायिकः श बाह्ये गिंजाइका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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