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________________ २५२ पुण्यावकथाकोशम् [६-२,४३ : त्वदीयप्रयाणभेरीरवमाकर्ण्य जातिस्मरोऽभूत् । स क इत्युक्ते प्राक्तनी कथां कथयामास। स व्याघ्रः संन्यासं गृहीत्वा तिष्ठति , द्रव्यं ते दर्शयिष्यति । राजा श्रुत्वा संतुतोष, मुनि नत्वा तत्र जगाम । तं शार्दूलं संबोधितवांस्तेन दर्शितं द्रविणं च जग्राह । व्याघ्रोऽपादशदिनैरीशाने दिवाकरप्रभविमाने दिवाकरप्रभदेवोऽजनि । प्रीतिवर्धनकृतदानानुमोदजनितपुण्येन तन्मन्त्रिपुरोहितसेनापतयो जम्बूद्वीपोत्तरकुरुषु जाताः प्रीतिवर्धनस्तन्मुनिनिकटे तपसा निवृत्तः । मन्त्रिचरार्य ईशाने काञ्चनविमाने कनकप्रभो देवो जातः। सेनापत्यार्यस्तत्रैव प्रभंकरविमाने प्रभाकरदेवोऽभूत्। परोहितार्यो रषितविमाने प्रभञ्जनदेवो जातः। ते चत्वारोऽपि देवास्त्वं यदा ललिताङ्गो जातोऽसि तदा त्वदीया परिवारदेवा जाता। स दिवाकरप्रभदेवस्तत आगत्य मतिसागरश्रीमत्योरयं मतिवरोऽभूत् । स प्रभाकरदेवोऽवतीर्यापराजितार्यवेगयोरकम्पनोऽयं जातः। स कनकप्रभदेवोऽवतीर्य श्रुतकीर्तिर कीर्त्य नन्तमत्योरानन्दोऽयं जातवान् । स प्रभञ्जन आगत्य धनदेवधनदत्तयोर्धनमित्रोऽयमजनि । त्वमतोऽष्टमभवेऽत्रैव भरते यदादितीर्थकरो भविष्यसि तदायं मतिवरो भरतः अयमकम्पनो बाहुबली अयमानन्दो वृषभसेनः, अयं धनमित्रोऽनन्तवीर्य इति चत्वारस्तव पुत्राश्चरमाङ्गा भविष्यन्ति । रहा है। उसे तुम्हारे प्रस्थान कालीन भेरीके शब्दको सुनकर जातिस्मरण हो गया है । वह कौन है, इसका सम्बन्ध बतलानेके लिए उन्होंने पूर्वोक्त कथा कही । वह व्याघ्र इस समय संन्यास लेकर स्थित है । वह तुम्हें उस सब धनको दिखला देगा । यह सुनकर प्रीतिवर्धन राजाको बहुत सन्तोष हुआ। वह उन मुनिको नमस्कार करके उस पर्वतके ऊपर गया । वहाँ उसने उक्त व्याघ्रको सम्बोधित किया। तब व्याघ्रने उस धनको दिखला दिया, जिसे प्रीतिवर्धन राजाने ग्रहण कर लिया। व्याघ्र अठारह दिनोंमें मरकर ईशान स्वर्गके अन्तर्गत दिवाकरप्रभ विमानमें दिवाकरप्रभ देव हुआ। प्रीतिवर्धन राजाके द्वारा किये गये आहारदानकी अनुमोदना करनेसे जो पुण्य प्राप्त हुआ उसके प्रभावसे उसके मन्त्री, पुरोहित और सेनापति ये तीनों जम्बूद्वीपके उत्तरकुरुमें आर्य हुए । राजा प्रीतिवर्धन उक्त मुनिराजके समीपमें दीक्षित होकर तपके प्रभावसे मुक्तिको प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् प्रीतिवर्धनके मन्त्रीका जीव वह आर्य ईशान कल्पके अन्तर्गत काञ्चन विमानमें कनकप्रभ नामका देव हुआ। सेनापतिका जीव आर्य उसी स्वर्गके भीतर प्रभंकर विमानमें प्रभाकर देव हुआ। पुरोहितका जीव आर्य रुषित विमानमें प्रभंजन देव हुआ। जब तुम ललिताङ्ग देव थे, तब ये चारों ही देव तुम्हारे परिवारके देव थे। पश्चात् वह दिवाकरप्रभ देव स्वर्गसे च्युत होकर मतिसागर और श्रीमतीके यह तुम्हारा मन्त्री मतिवर हुआ है। वह प्रभाकर देव वहाँ से च्युत होकर अपराजित और आर्यवेगाके यह अकम्पन सेनापति हुआ है। वह कनकप्रभ देव वहाँ से च्युत होकर श्रुतकीर्ति और अनन्तमतीके यह आनन्द पुरोहित हुआ है । वह प्रभंजन देव वहाँसे आकर धनदेव और धनदत्ताके यह धनमित्र सेठ हुआ है। तुम ( वज्रजंघ ) इस भवसे आठवें भवमें इसी भरत क्षेत्रके भीतर जब प्रथम तीर्थकर होओगे तब यह मतिवर भरत, यह अकम्पन बाहुबली, यह आनन्द वृषभसेन और यह धनमित्र अनन्तवीर्य; इन नामोंसे प्रसिद्ध तुम्हारे चरमशरीरी चार पुत्र होवेंगे । १ज प श निबत्तः । २. प श 'ते' नास्ति ब 'त'। ३. श श्रुतकीत्तिरनंतरमत्यो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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