SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ पुण्यात्रवकथाकोशम् [ ६-१, ४२ हस्तिनापुरनरेशविश्वसेनैरयोनन्दनः श्रीशान्तिनाथस्तीर्थकरश्चक्री कामश्च जातो मुक्तश्च । सिंहनन्दितादयोऽप्युभयगतिसौख्यं भुक्त्वा मुक्तिमापुः इति दानफलोल्लेखनमेवात्रं कृतम् । चिस्तरतः शान्तिचरिते इयं कथा मया निरूपितेत्यत्र न निरूप्यते । सा तत्र ज्ञातव्या। एवं सकहत्तदानो मिथ्यादृष्टिरपि तत्फलेन द्वादशभवान् सुखमन्वभून्मुक्तिं च जगाम । सद्दृष्टियों दानं ददाति स किं मुक्तिवल्लभो न स्यादिति ॥१॥ [४३] ख्यातः श्रीवज्रजको विगलिततनुका जाताः सुवनिता तस्य व्याघ्रो वराहः कपिकुलतिलकः क्रूरो हि नकुलः। भुक्त्वा ते सारसौख्यं सुरनरभुवने श्रीदानफलत स्तस्मादानं हि देयं विमलगुणगणैर्भव्यैः सुमुनये ॥२॥ अस्य कथा श्रादिपुराणे प्रसिद्धति तदेव निरूप्यते । अत्रैव द्वीपेऽपरविदेहे गन्धिलविषये विजया?त्तरश्रेणावलकापुरेशातिबलमनोहर्योः पुत्रो महाबलः । तं राज्ये नियुज्यातिबलस्तपो विधाय केवली भूत्वा मोक्षं गतः । महाबलो विद्याधरचक्री महामति-संभिन्नमतिशतमति-स्वयंबुद्धाख्यमन्त्रिभी राज्यं कुर्वन् तस्थौ। एकदा तदास्थानलीलां विलोक्य जांगल देशके अन्तर्गत हस्तिनापुरके राजा विश्वसेन और रानी ऐराका पुत्र शान्तिनाथ तीर्थंकर हुआ । यह चक्रवर्ती के साथ कामदेव होकर मोक्षको प्राप्त हुआ । इस प्रकार यहाँ केवल दानके फलका उल्लेख मात्र किया गया है। विस्तारसे इस कथाका निरूपण मैंने शान्तिचरित्रमें किया है, इसीलिये उसकी विशेष प्ररूपणा यहाँ नहीं की जा रही है । इसको वहाँ से जान लेना चाहिये। इस प्रकारसे एक बार दान देनेवाला वह मिथ्यादृष्टि भी श्रीषेण राजा जब उसके फलसे बारह भवोंमें सुखको भोगकर मुक्तिको प्राप्त हुआ है तब जो सम्यग्दृष्टि भव्य जीव दान देता है वह क्या मुक्तिकान्ताका प्रिय नहीं होगा ? अवश्य होगा ॥१॥ प्रसिद्ध वज्रजंघ राजा, उसकी पत्नी (श्रीमती), व्याघ्र, शूकर, बानर कुलमें श्रेष्ठ बंदर और दुष्ट नेवला; ये सब मुनिदानके फलसे देवलोक और मनुष्यलोकमें उत्तम सुखको भोगकर अन्तमें शरीरसे रहित (सिद्ध) हुए हैं। इसीलिये निर्मल गुणोंके धारक भव्य जीवोंको उत्तम पात्रके लिए दान देना चाहिये ॥२॥ इसकी कथा आदिपुराणमें प्रसिद्ध है। वहाँ से ही उसका निरूपण किया जाता है- इसी जम्बूद्वीपमें अपरविदेह क्षेत्रके भीतर गन्धिला देशके मध्यमें विजयाध पर्वत है। उसकी उत्तर श्रेणीमें एक अलकापुर नामका नगर है । उसमें अतिबल नामका राजा राज्य करता था। रानीका नाम मनोहरी था। इन दोनोंके एक महाबल नामका पुत्र था । उसको राज्यके कार्यमें नियुक्त करके अतिबलने दीक्षा ले ली । वह तपश्चरण करके केवलज्ञानी होता हुआ मोक्षको प्राप्त हुआ। महाबल विद्याधरोंका चक्रवर्ती था। उसके महामति, संभिन्नमति, शतमति और स्वयम्बुद्ध नामके चार मन्त्री थे। इनकी सहायतासे वह राज्यकार्य करता था। एक समय महाबल राजाके सभाभवनकी छटाको देखकर स्वयम्बुद्ध मन्त्री बोला कि हे राजन् ! यह तुम्हारा सौन्दर्य आदि सब १.ब पुरेश। २. ल्लेखनामवात्र । ३. ज प श सात्र । ४. फ सदृष्टिीवो यो। ५. ज फ ब जाता। ६. ज प ब श महाबलो तं । ७. जप सतमति श सततमति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy