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________________ : ६-१, ४२ ] ६. दानफलम् १ तस्यार्या बभूव । अनिन्दिता तत्रैवार्यो जातो द्विजनन्दना तस्यैवार्या जाता। पानकाङ्गतूर्याङ्गभूषणाङ्गज्योतिरङ्गगृहाङ्गभाजनाङ्गदीपाङ्गमाल्याङ्गभोजनाङ्गवस्त्राङ्गाश्चेति दशविधकल्पतरुफलोपभुञ्जाना व्याधिदुः खरहितास्त्रिपल्योपमकालं दिव्यसुखमन्वभूवन् । ततः श्रीषेणचर श्रयुत्वा सोध श्रीप्रभविमाने श्रीप्रभनामा देवोऽभूत् । ततः आगत्यात्रैव भरते विजयार्धदक्षिणश्रेणौ रथनूपुरेशार्क कीर्तिर्राश्ममालयोः सुतोऽमिततेजोऽभिधोऽभूद्विद्याधरचक्री च बहुकलं राज्यं विधाय तपसानतकल्पे नन्दभ्रमणविमाने मणिचूडनामा देवोऽजनि । ततोऽवतीयत्र द्वीपे 'पूर्वविदेहवत्सकाचं ती विषयप्रभाकरीपुरीशस्तिमितसागरवसुंधर्योर्नन्दनोऽपराजितो बलदेवो बभूव । बहुकालं राज्यं विधाय तपसाच्युते जातः । ततः आगत्यात्रैव द्वीपे पूर्वविदेहमङ्गलावतीविषय रत्नपुरेशतीर्थंकर कुमार क्षेमंधर महाराज हेमचित्रयोर्नन्दनो वज्रायुधोऽभूत् । सकलचक्रवर्ती दीर्घकालं राज्यं कृत्वा तपसा उपरिमाधस्तनग्रैवेयके सौमनसविमानेऽहमिन्द्रोऽजनि । ततोऽवतीर्यात्रैव द्वीपे पूर्वविदेह पुष्कलावती विषय पुण्डरीकिण्यां तीर्थकृत्कुमारो राजा देवी मनोहरी तन्नन्दनो मेघरथो जज्ञे । महामण्डलेश्वरः । तदनु तपसा सर्वार्थसिद्धौ भूत्वागत्य गर्भावतरणकल्याणपुरःसरं कुरुजाङ्गलदेशनन्दिता उस आर्य की आर्या हुई । अनन्दिताका जीव उसी भोगभूमिमें आर्य तथा उक्त ब्राह्मणपुत्री इस आर्य की आर्या हुई । ये सब वहाँ पानकांग, तूयोग, भूषणांग, ज्योतिरंग, गृहांग, भाजनांग, दीपांग; माल्यांग, भोजनांग और वस्त्रांग; इन दस प्रकारके कल्पवृक्षोंके फलको भोगते हुए दिव्य सुखका अनुभव करने लगे । उनकी आयु तीन पल्य प्रमाण थी । वे व्याधि आदिके दुख सर्वथा रहित थे । पश्चात् वह श्रीषेण राजाका जीव मरकर सौधर्म स्वर्ग के भीतर श्रीप्रभ विमान में श्रीप्रभ नामका देव हुआ। वहाँ से च्युत होकर वह विजयार्ध पर्वतकी दक्षिण श्रेणिमें स्थित रथनूपुरके राजा अर्ककीर्ति और रश्मिमालाका अमिततेज नामका पुत्र हुआ जो विद्याधरोंका चक्रवर्ती था । उसने बहुत समय तक राज्ज किया । तत्पश्चात् वह तपके प्रभावसे आनत स्वर्ग में नन्दभ्रमण विमानके भीतर मणिचूड नामका देव हुआ । फिर वहाँ से च्युत होकर वह इसी जम्बूद्वीपके भीतर पूर्व विदेह में जो वत्सकावती देश व उसके भीतर प्रभाकरी पुरी है उसके स्वामी स्तिमितसागर और वसुन्धरी अपराजित नामका पुत्र हुआ जो बलदेव था । उसने बहुत समय तक राज्य करके अन्तमें तपको स्वीकार किया । उसके प्रभावसे वह अच्युत स्वर्ग में देव हुआ । फिर वहाँ से आकर वह इसी द्वीप के पूर्व विदेह में मंगलावती देशस्थ रत्नपुरके स्वामी क्षेमंधर महाराजा और हेमचित्रा के वज्रायुध नामका पुत्र हुआ । क्षेमंकर महाराज तीर्थंकर थे । वज्रायुधने सकल चक्रवर्ती होकर बहुत काल तक राज्य किया । तत्पश्चात् वह तपश्चरण करके उसके प्रभाव से उपरिम-अधस्तन ग्रैवेयक में सौमनस विमानके भीतर अहमिन्द्र हुआ । फिर वहाँसे चयकर वह इसी द्वीपके पूर्वं विदेहमें स्थित पुष्कलावती देश के अन्तर्गत पुण्डरीकिणी पुरीमें तीर्थंकर कुमार अभ्ररथ (घनरथ) राजा और मनोहरी रानीके मेघरथ नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । वह महामण्डलेश्वर था । तत्पश्चात् वह तपश्चरण करके उसके प्रभावसे सर्वार्थसिद्धिमें देव हुआ । वहाँसे च्युत होकर वह गर्भावतरण कल्याणपूर्वक कुरु २३७ १. ब - प्रतिपाठोऽयम् । श अनन्दिता । २. ब भोजनांगदीपांगमा ल्यांगवस्त्रांगभाजनांगाख्यदर्श । ३. ब बहुकालं राज्यानंतरं तपसा अनंतकल्पनंद । ४. फ पूर्वविदेहे । ५. ब कछावती । ६. जफ पूर्वविदेहे । ७. विषये । ८. ब क्षेमंकर । ९. बरोभ्रमरथो । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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