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________________ पुण्यात्रवकथाकोशम् [५-१, ३४ : अन्यदा शिलोत्कीर्ण तवंशशासनमपश्यत् । तदा व्यालायादेशमदत्त पुण्डवर्धनपुरे वनराजस्य राज्यं यथा भवति तथा कुर्विति । स महाप्रसादं भणित्वा तत्राट तं ददर्श' । तदने तस्थौ बभाण-हे राजन् , तवान्तिकं मां जायंधरिरवस्थापयद्वनराजस्य राज्यं समर्प्य तदानुकूल्येन वर्तस्वान्यथा त्वं जानासीति भणित्वा । तत उवाच सोमप्रभो जायंधरिर्मम किं शास्ता । व्यालोऽवोचत्तत्र किं ते संदेहः। राजाभाषत तर्हि वनराजयुक्तो रणावनौ तिष्ठतु तस्य तत्र राज्यं दापयन् । व्यालोऽरणतत्पर्यन्तं त्वं किम् । तदनु सोमप्रभोऽब्रवीदयं निःसार्यतामिति । ततस्तस्यार्धचन्द्रं दातुं ये समुत्थितास्ते तेन भूमावाहत्य मारिताः। सोऽसिना हन्तारं भूपं धृत्वा बबन्ध । स्वस्वामिनो विक्षपनपत्रं प्रस्थापयामास । स श्वशुरेणागत्य पुरं राजभवनं च विवेश । सोमप्रभ ममोच बभाण च तस्य कमारवत्तौ तिष्ठति । सोऽलालपीद गृहस्थाश्रमेण तृप्तोऽहमतः क्षमितव्यं त्रिशुद्धया भणित्वा निर्जगाम, यमधरान्तिके बहुभिरदीक्षितः सकलागमधरः संघाधारश्च भूत्वा विहरन प्रतिष्ठपुरं गत्वोद्यानेऽस्थात् । तत्र राजा. नावच्छेद्याभेद्यनामानौ । तयोश्चादेशो विद्यते । कथमित्युक्ते तत्पिता जयवर्मा माता जयावती। अन्य समयमें जब नागकुमारने शिलापर खोदे गये वनराजके कुटुम्बके शासनको- उसकी वंशपरम्पराको देखा-तब उसने व्यालको बुलाकर यह आदेश दिया कि पुण्डवर्धन नगरमें जैसे भी सम्भब हो वनराजके शासनकी व्यवस्था करो । तब वह 'महाप्रसाद' कहकर पुण्डवर्धन नगरको चला गया। वहाँ जाकर और सोमप्रभको देखकर वह उसके आगे स्थित होता हुआ बोला कि हे राजन् ! नागकुमारने मुझे आपके लिये यह आदेश देकर भेजा है कि तुम वनराजको राज्य देकर उसके अनुकूल प्रवृत्ति करो, अन्यथा फिर क्या होगा सो तुम ही समझो। यह सुनकर सोमप्रभ बोला कि क्या नागकुमार मेरा शासक है ? इसके उत्तरमें व्यालने कहा कि हाँ, वह तुम्हारा शासक है । क्या तुम्हें इसमें सन्देह है ? इस उत्तरको सुनकर सोमप्रभने कहा कि यदि ऐसा है तो तुम जाकर नागकुमारसे वनराजके साथ युद्धभूमिमें स्थित होकर उसे राज्य दिलानेके लिये कह दो । इसपर व्यालने कहा कि तुम नागकुमारके समीपमें क्या चीज़ हो। यह सुनकर सोमप्रभने व्यालको वहाँसे निकाल देनेकी आज्ञा दी। तदनुसार जो राजपुरुष व्यालकी गर्दन पकड़कर उसे बाहर निकाल देनेके लिए उठे थे उन्हें व्यालने पृथ्वीपर पटककर मार डाला। यह देखकर जब सोमप्रभ स्वयं उसे तलवारसे मारनेके लिए उद्यत हुआ तब व्यालने उसे पकड़कर बाँध लिया और अपने स्वामी नागकुमारके पास विज्ञप्तिपत्र भेज दिया। तब नागकुमार अपने ससुर वनराजके साथ पुण्डवर्धन नगरमें आकर राजभवनमें प्रविष्ट हुआ। फिर नागकुमारने सोमप्रभको बन्धनमुक्त करते हुए उसके लिए पुत्रके समान आज्ञाकारी होकर रहनेका आदेश दिया । इसपर सोमप्रभ बोला कि मैं गृहस्थाश्रमसे सन्तुष्ट हो चुका हूँ, अतएव अब आप मुझे मन, वचन एवं कायसे क्षमा करें । इस प्रकार निष्कपटभावसे कहकर वह यमधर मुनिराजके पास गया और बहुतोंके साथ दीक्षित हो गया। तत्पश्चात् वह समस्त श्रुतका ज्ञाता और संघका प्रमुख होकर विहार करता हुआ प्रतिष्ठपुरमें पहुँचा । वहाँ जाकर वह उद्यानमें ठहर गया । वहाँ अच्छेद्य और अभेद्य नामके दो राजा थे। उनके लिये यह आदेश था- इन दोनोंके पिताका नाम जयवर्मा और माताका नाम जयावती था । एकबार उनके पिताने अपने उद्यानमें स्थित पिहितास्रव मुनिसे १. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श दर्शितवान् । २. ब राजाभाषतहि । ३. फ दापयतु व्यालोऽभणब दापयत् यालोरण । ४. ब विज्ञापन पत्र। ५. श भेदनामानी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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