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________________ १७५ :५-१, ३४ ] ५. उपवासफलम् १ तद्रुमस्य प्ररोहा' निर्गतास्तत्रान्दोलयनस्थात् । तदा वटीवृक्षरक्षक आगत्य तं ननाम विजिशपच्च देवात्र गिरिकूटनगरेशवनराजवनमालयोः सुता लक्ष्मीमती विशिष्टरूपा । तस्या वरः को भवेदित्येकदा राक्षावधिबोधो मुनिः पृष्टोऽकथयद्यद्दर्शनेनामुष्यप्रदेशस्थवटीवृक्षस्य प्ररोहा निस्सरिज्यन्ति स स्यादिति कथिते तदैव भूपेनाहमत्रादेशपुरुषगवेषणार्थ व्यवस्थापित इति । तदनु स गत्वा स्वस्वामिने ध्वजहस्तः कथितवान् । तेनागत्य प्रणम्य विभूत्या पुरं प्रवेश्य तस्मै स्वसुता दत्ता। स यावत्तत्र तिष्ठति तावजयविजयाख्यौ मुनी तत्पुरोद्याने तस्थतुः । कुमारस्तौ नत्वा पृष्टवान् वनराजकुले मे संदेहो वर्तते. किंकुलोऽयमिति । तत्र जय अाह- अत्रैव पुण्डवर्धननगरे राजापराजितोऽभूहेन्यौ सत्यवती वसुंधरा च। तयोः पुत्रौ क्रमेण भीममहाभीमौ। भीमाय राज्यं दत्त्वा अपराजितः प्रव्रज्य मुक्तिमगमत् । इतो भीमो महाभीमेन पुरानिर्धाटितः। तेनेदं पुरं कृतम् । तत्र महाभोमस्य पुत्रो भीमाङ्कोऽभूत्तस्यापि सोमप्रभो महाभीमस्य नप्ता सांप्रतं तत्र राजा। अयं भीमस्य नप्तेति सोमवंशोद्भवोऽयमिति निरूपिते हृष्टः कुमारः तौ नत्वा गृहं ययौ। उन प्ररोहोंके आश्रयसे झूलने लगा। उसी समय वट वृक्षके रक्षकने आकर नागकुमारको प्रणाम करते हुए इस प्रकार निवेदन किया- हे देव ! यहाँ गिरिकूट नगरके स्वामी वनराज और वनमालाके एक लक्ष्मीमती नामकी पुत्री है । वह अतिशय रूपवती है। एक बार राजाने उसके वरके सम्बन्धमें किसी अवधिज्ञानी मुनिसे पूछा था । उत्तरमें मुनिने कहा था कि जिसके देखनेसे इस प्रदेशमें स्थित वट वृक्षके प्ररोह निकल आवेंगे वह तुम्हारी पुत्रीका वर होगा। मुनिके इस प्रकार कहनेपर राजाने उसी समयसे उस निर्दिष्ट पुरुषकी खोजके लिये मुझे यहाँ नियुक्त किया है। यह निवेदन करके उक्त पुरुष हाथमें ध्वजाका लेकर अपने स्वामीके पास गया और उससे नागकुमारके आनेका समाचार कह दिया । तब वनराजने आकर उसको प्रणाम किया । फिर उसने उसे विभूतिके साथ नगरमें ले जाकर अपनी पुत्री दे दी। नागकुमार वहाँ स्थित ही था कि उस समय उस नगरके उद्यानमें जय और विजय नामके दो मुनि आकर विराजमान हुए। तब नागकुमारने नमस्कार करके उनसे पूछा कि मुझे वनराजके कुलके विषयमें सन्देह है । अतएव मैं यह जानना चाहता हूँ कि उसका कुल कौन-सा है। उत्तरमें जय मुनि बोले- यहाँ ही पुण्डवर्धन नगरमें अपराजित राजा राज्य करता था। उसके सत्यवती और वसुन्धरा नामकी दो पलियाँ थी। इनसे क्रमशः उसके भीम और महाभीम नामके दो पुत्र उत्पन्न हुए थे । अपराजितने भीमको राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली । इस प्रकार तपश्चरण करके वह मुक्तिको प्राप्त हुआ। इधर भीमको महाभीमने नगरसे बाहर निकाल दिया और नगरको अपने स्वाधीन कर लिया। तब महाभीमने वहाँसे आकर इस नगरको बसाया है। वहाँ महाभीमके भीमांक नामका पुत्र हुआ और उसके भी सोमप्रभ नामका । वह महाभीमका नाती है और इस समय उस पुण्डवर्धन नगरमें राज्य कर रहा है। यह वनराज भीमका नाती है जो सोमवंशमें उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार जय मुनीन्द्रसे वनराजकी पूर्व परम्पराको सुनकर नागकुमारको बहुत हर्ष हुआ। तत्पश्चात् वह उन्हें नमस्कार करके घरको वापिस गया। १. ब प्रारोहा । २. वृक्षरक्षको नामागत्य तं । ३. व देवामैत्र। ४. श यावत्तत्र तिताव। ५. ब धृतं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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