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________________ gotoकथाकोशम् [ ४-४, २६ : बहुविधाभ्युदय सौख्येनैवास्थामिति । तौ काविति पृष्टयोर्नारदेन सीताहरणादित्यजन पर्यन्ते संबन्धे निरूपिते श्रवणमात्रेणैवोत्पश्नकोपाभ्यां भणितम् अयोध्या श्रस्मात् कियद्दूरे तिष्ठति । कलहप्रियेण भणितं पञ्चाशदधिकशतयोजनेषु तिष्ठति । तदैव प्रयाणभेरीरवेण पूरिताशी चातुरङ्गेण निर्गतौ । कियत्सु अहःसु अयोध्याबाह्य मुक्तौ । बलाच्युतसमीपं दूतः प्रेषितः । तेन च बलोपेन्द्रौ नत्वोक्तं युवयोर्विस्यातिमाकर्ण्य लवाङ्कुशौ पार्थिवपुत्रौ युद्धार्थमागतो, यद्यस्ति सामर्थ्यं ताभ्यां युद्धं कुर्याताम् । साश्चर्याभ्यां बलगोविन्दाभ्याम् उक्तम् एवं क्रियते " । इतः प्रभामण्डल- सीता - सिद्धार्थ नारदो लवाङ्कुशान्तःपुरेण सह वियत्यवलोकयन्तः स्थिताः । प्रभामण्डलेन सर्वेभ्यो विद्याधरेभ्यो लवाङ्कुशस्वरूपं निरूपितम् । विद्याधरबलं च मध्यस्थेन स्थितम् । बलोपेन्द्रौ रथारूढी समस्तायुधालंकृतौ निर्गत्य स्वबलाग्रे स्थितौ । इतरावपि तथैव । लवो बलेन परो वासुदेवेन योद्धुं लग्नः । श्रभूद्विस्मितजगत्त्रयं रणम् । लवसामर्थ्य दृष्ट्वा रामः कोपेन योद्धुं लग्नः । लवेनँ रथे भग्ने द्वितीयमारुह्य युद्धवान् । एवं तृतीयो १४८ वाले एवं अनन्त वीर्यके धारक वे दोनों विनीत कुमार सीताके समीपमें स्थित थे । उन दोनों को आशीर्वाद देते हुए नारद बोले कि तुम दोनों राम और लक्ष्मणके समान बहुत प्रकारके अभ्युदय एवं सुखके साथ स्थित रहो। इस आशीर्वचनको सुनकर दोनों कुमारोंने पूछा कि ये राम और लक्ष्मण कौन हैं ? तब नारदने उनसे राम और लक्ष्मणसे सम्बन्धित सीताके हरणसे लेकर उसके परित्याग तककी कथा कह दी । उसको सुनते ही उन्हें अतिशय क्रोध उत्पन्न हुआ । उन्होंने नारदसे पूछा कि यहाँसे अयोध्या कितनी दूर है ? यह सुनकर कलहमें अनुराग रखनेवाले नारदने कहा कि वह यहाँ से एक सौ पचास योजन दूर है । यह सुनते ही वे दोनों प्रस्थानकालीन भेरीके शब्दसे दिशाओंको पूर्ण करते हुए वहाँसे अयोध्याकी ओर चतुरंग सेनाके साथ निकल पड़े | तत्पश्चात् कुछ ही दिनोंमें उन्होंने अयोध्या पहुँचकर नगरके बाहर पड़ाव डाल दिया । फिर उन्होंने बलभद्र (राम) और नारायण ( लक्ष्मण ) के पास अपने दूतको भेजा । दूत गया और उन दोनोंको नमस्कार करके बोला कि आप दोनोंकी प्रसिद्धिको सुनकर लव और अंकुश ये दो राजपुत्र युद्धके लिये यहाँ आये हैं। यदि आपमें सामर्थ्य हो तो उनसे युद्ध कीजिये । यह सुनकर राम और लक्ष्मणको बहुत आश्चर्य हुआ । उत्तर में इन दोनोंने उस दूतसे कह दिया कि ठीक है, हम उन दोनोंसे युद्ध करेंगे। इधर प्रभामण्डल, सीता, सिद्धार्थ और नारद लव व अंकुशकी पत्नियों के साथ आकाशमें स्थित होकर उस युद्धको देख रहे थे । प्रभामण्डलने समस्त विद्याधरोंसे लव और अकुशके वृत्तान्तको कह दिया था । इसीलिये विद्याधरोंकी सेना मध्यस्थ स्वरूपसे स्थित थी । इस समय राम और लक्ष्मण समस्त आयुधोंसे सुसज्जित होते हुए रथपर चढ़कर निकले और अपनी सेना के आगे आकर स्थित हुए । इसी प्रकारसे लव और अंकुश भी अपनी सेना के सम्मुख स्थित हुए । तब लब तो रामके साथ और अंकुश लक्ष्मणके साथ युद्ध करने में निरत हो गया । फिर उनमें परस्पर तीनों लोकोंको आश्चर्यान्वित करनेवाला युद्ध हुआ । लवके सामर्थ्य को देखकर रामचन्द्र अतिशय क्रोध के साथ उससे युद्ध करने लगे। उस समय लवने रामचन्द्रके रथको नष्ट कर दिया। तब रामचन्द्र दूसरे रथपर स्थित हुए। परन्तु लवने उसे भी नष्टकर डाला । इस १. ब सौख्येनैव वाथामिति । २. प श रणितं । ३. प श कुर्यास्तां व कुर्यातं । ४. ब भ्यां युक्तमेव क्रियते । ५. पश नारदलवा ब नारदः लवा । ६. श वलोकयन्त्यः । ७. श वलेन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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