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________________ १०२ पुण्यात्रवकथाकोशम् [३-२, १६ : प्रभामण्डलो विदग्धनगरं दृष्ट्वा जातिस्मरो बभूव । व्याघुटय गत्वा स्वभगिनीति निरूपितवान् । इन्दुगतिस्तस्मै राज्यं दत्त्वा सर्वभूतहितशरण्य-भट्टारकसमीपे प्रवजितः । गुरुर्बहुसंघनायोध्यापुरोद्याने दशरथेन सह बन्धुभिरागत्य वन्दितः । इन्दुगतिं दृष्टानेन किमिति दीक्षितमिति पृष्ठे कारणं निरूपितं मुनिना प्रभामण्डल-सीतासंबन्धः । अत्रान्तरे प्रभामण्डलोऽयं मुनिवचनाद्दशरथ-राम-लक्ष्मणेभ्यो नमस्कृत्वोपविष्टायाः सीतायाः प्रणामः कृतः। ___ तदनु प्रभामण्डलेन स्वस्येन्दुगतिपुष्पवत्योः स्नेहकारणं पृष्टः सीताप्रतिबिम्बदर्शनादासक्तश्च । मुनिः प्राह-दारुणग्रामे विप्रविमुचि-मनस्विन्योः पुत्रोऽतिभूतिर्जातः । तत्र रण्डा ज्वाला, तत्पुत्री सरसा परिणीता तेन । पितापुत्रौ दानार्थमाटतुः। सरसा जारेण कयेन गता । उभाभ्यां पथि मुनिराक्रुष्टः तत्पापेन तिर्यग्गतौ बभ्रमतुः । क्वचित्सरसा चन्द्रपुरेशचन्द्रध्वजमनस्विन्योः पुत्री चित्रोत्सवा जाता। कयोऽपि तत्प्रधानधूमकेशिस्वाहयोः पुत्रः कपिलोऽभूत् । सोऽपि चित्रोत्सवां नीत्वा विदग्धनगरे स्थितः । दानं गृहीत्वाऽऽगत्य विभूतिना युद्धार्थ आते हुए उसे मार्गमें विदग्ध नगरको देखकर जातिस्मरण हो गया। तब उसने वहाँसे वापिस लौटकर यह प्रगट कर दिया कि जिसके विषयमें मुझे अनुराग हुआ था वह मेरी बहिन है। यह सब मेरी अज्ञानताके कारण हुआ है। इस घटनासे इन्दुगतिको वैराग्य उत्पन्न हुआ। तब उसने प्रभामण्डलके लिये राज्य देकर सर्वभूतहितशरण्य भट्टारकके समीपमें दीक्षा ग्रहण कर ली। सर्वभूतहितशरण्य भट्टारक विहार करते हुए बहुत-से संघके साथ अयोध्यापुरीके उद्यानमें पहुँचे। तब राजा दशरथने परिवारके साथ जाकर उनकी वंदना की। तत्पश्चात् दशरथने उनके संघमें इन्दुगतिको देखकर मुनिराजसे उसके दीक्षित होनेका कारण पूछा। उन्होंने उसकी दीक्षाका कारण प्रभामण्डल और सीताका सम्बन्ध बतलाया। इस बीचमें उस प्रभामण्डलने मुनिके वचनसे राजा दशरथ, राम और लक्ष्मणको नमस्कार करके पासमें बैठी हुई सीताको प्रणाम किया । तत्पश्चात् प्रभामण्डलने मुनिराजसे इन्दुगति और पुष्पवतीके प्रति अपने अनुराग तथा सीताके चित्रको देखकर उसके प्रति आसक्त होने का भी कारण पूछा । मुनि बोले- दारुण ग्राममें ब्राह्मण विमुचि और मनस्विनीके एक अतिभूति नामका पुत्र था। उसी नगरमें एक ज्वाला रांड़ ( वेश्या ) थी। इसके एक सरसा नामकी पुत्री थी। उसके साथ अतिभूतिने अपना विवाह किया था। एक दिन पिता और पुत्र दोनों भिक्षाके निमित्त गये थे। इस बीचमें सरसा कय नामक जारके साथ निकल गई। उन दोनोंने मार्गमें किसी मुनिकी निन्दा की। उससे उत्पन्न पापके कारण वे दोनों तियेचगतिमें घूमे । फिर वह सरसा कहीं नन्द्रपुरके स्वामी चन्द्रध्वज और मनस्विनीके चित्रोत्सवा नामकी पुत्री उत्पन्न हुई। वह कय जार भी उक्त राजाके मंत्री धूमकेशी और स्वाहाके कपिल नामका पुत्र हुआ। वह भी चित्रोत्सवाको ले जाकर विदग्ध नगरमें ठहर गया। इधर विभूति ( अतिभूति ) दानको लेकर जब घर वापिस १. फश प्रवाजितः । २. फ मिति कारणं पृष्टेति निरूपितं श मिति कारणे पृष्टे तिरूपितं । ३. ब-प्रतिपाठोऽयम् । प फ श पविष्टाया। ४. प प्रणामः कृतं फ श प्रणाम कृतः। ५. श परणीता। ६. ब-प्रतिपाठोऽयम् । प फ श मुनिराकृष्टः । ७. ब चित्तोत्सवा ( एवमग्रेऽपि )। ८. ब भूमकेशि । ९. बगत्यातिविभूतिना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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