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________________ : ३-२, १६] ३. श्रुतोपयोगफलम् २ लब्धादेशोऽश्वरूपेण गतः । जनकेन बद्धः। तदा भिल्लैकेनागत्य अस्मिन् स्थले हस्ती तिष्ठतीति विज्ञप्ते राजा धर्तुं गतः, तद्भयात्तं चटितः। तेनापि सिद्धकूटे संस्थाप्य स्वस्वामिने आनीत इति निरूपिते वियच्चरपतिनापि स्वगृहमानीय प्राघूर्णकक्रियानन्तरं सीता याचिता। जनकेनोक्तं रामाय दत्तेति । किं तेन भूमिगोचरेणेति निन्दिते जनकेनोक्तं किं विद्याधरैः पक्षिभिरिव खे संचरद्भिस्तीर्थकरादयो भूगोचरा एव । विद्याधरेशेनोक्तं वज्रावर्तसागरावर्तधनुषी अध्यारोपिते चेत्तस्मै दातव्येति । प्रतिपन्नं जनकेन । विद्याधरेशमहत्तरचन्द्रवर्धनोऽपि ते गृहीत्वा गतः । वृत्तान्तं श्रुत्वा विदेह्यादिभिर्दुःखं कृतम् । स्वयंवरभूमौ धनुषोः स्फटाटोपमालोक्य भीति गते क्षत्रियसमूहे रामेण वज्रावर्त लक्ष्मणेन द्वितीयमध्यारोपितम् । तत्सामर्थ्यदर्शनात् दृष्टश्चन्द्रवर्धनः स्वपुत्रीरष्टौ लक्ष्मीधराय दास्यामीत्युक्त्वा गतः । रामादयः स्वपुरं गताः । ततो धनुषोर्गमनं रामसीतयोविवाहं चाकर्ण्य सहस्राक्षौहिणीबलेन युद्धार्थमागच्छन् प्रकारसे आज्ञा पाकर वह घोड़े के रूपमें वहाँ चला गया। उसे जनकने बाँधकर रख लिया । उस समय एक भीलने आकर जनकसे निवेदन किया कि अमुक स्थानमें हाथी स्थित है। तब राजा उसे पकड़नेके लिये गया। वह हाथीके भयसे उपर्युक्त घोड़ेके ऊपर सवार हुआ। घोड़ा भी उसे लेकर आकाशमें उड़ गया। उसने जनकको सिद्धकूटके ऊपर छोड़कर उसके ले आनेकी वार्ता अपने स्वामीसे कह दी। तब वह विद्याधरोंका स्वामी चन्द्रगति भी जनकको अपने घरपर ले आया। वहाँ उसने जनकका यथायोग्य अतिथि-सत्कार करके तत्पश्चात् उससे सीताकी याचना की। उत्तरमें राजा जनकने कहा कि वह रामके लिए दी जा चुकी है। यह सुनकर चन्द्रगति बोला कि वह तो भूमिगोचरी है, उससे क्या अभीष्ट सिद्ध हो सकता है। इस प्रकार चन्द्रगतिके द्वारा की गई भूमिगोचरियोंकी निन्दाको सुनकर जनकने कहा- विद्याधर कौन-से महान् हैं, उनमें और आकाशमें संचार करनेवाले पक्षियोंमें कोई विशेषता नहीं है। क्या आपको यह ज्ञात नहीं है कि तीर्थंकर आदि सब शलाकापुरुष भूमिगोचरी ही होते हैं ? इसपर विद्याधरोंके स्वामी चन्द्रगतिने कहा कि अधिक प्रशंसा करनेसे कुछ लाभ नहीं है, यहाँपर जो ये वज्रावर्त और सागरावर्त धनुष हैं उन्हें यदि वह राम चढ़ा देता है तो उसके लिये सीताको दे देना। इस बातको जनकने स्वीकार कर लिया। तब चन्द्रगतिका महत्तर ( सेवक ) चन्द्रवर्धन उन दोनों धनुषोंको लेकर जनकके साथ मिथिलापुर गया । इस वृत्तान्तको सुनकर विदेही आदिकों को बहुत दुख हुआ । स्वयंवरभूमिमें उन दोनों धनुषोंके घटाटोपको देखकर क्षत्रियों का समूह भयभीत हुआ। परन्तु इस स्वयंवरमें आये हुए उन राजाओंके समूहमें रामने वज्रावर्त धनुषको तथा लक्ष्मणने दूसरे सागरावर्त धनुषको चढ़ा दिया। उनकी असाधारण शक्तिको देखकर चन्द्रवर्धनको बहुत सन्तोष हुआ। तब वह मैं लक्ष्मणके लिये अपनी आठ पुत्रियाँ दूंगा, यह कहकर विजयार्धपर वापिस चला गया। राम आदि भी अपने नगरको वापिस चले गये । तत्पश्चात् जब प्रभामण्डलको दोनों धनुषोंके जाने एवं राम-सीताके विवाहका समाचार ज्ञात हुआ तब वह एक हजार अक्षौहिणी प्रमाण सेनाके साथ युद्धके लिये चल पड़ा। इस प्रकार १. प मया वशो नीयते लब्धादेशे श मयात्र स नीयते लब्धादेशो ब मया सात्रानीयते लब्धादेशो। २. फ श महत्तरं। ३. ब स्फुटाटोप । ४. ब-प्रतिपाठोऽयम् । श भीति जगाम क्षत्रियसमहे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016057
Book TitlePunyasrav Kathakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Mumukshu, A N Upadhye, Hiralal Jain, Balchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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