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________________ ३२४ : परिशिष्ट २ १. पंड २. वातिक ३. क्लीब ४. कुंभी ५. ईर्ष्यालुक ६. शकुनि ७. तत्कर्मसेवी णमोक्कत ( नमस्कृत) ८. पक्ष- अपक्ष ६. सौगन्धिक १०. आसक्त इन सबकी व्याख्या निशीथ भाष्य में प्राप्त है । प्रस्तुत कोश में 'णपु'सक' के एकार्थं नामों में अनेक नाम संवादी हैं । कुछेक शब्दों की व्याख्या इस प्रकार है— १. चिल्लिक - (चिप्पित) जिसके जन्म से ही अंगुष्ठ व अंगुलियां चढी रहती हैं । २. पंडक - महिला स्वभाव वाला, मृदु वाणी वाला, सशब्द मूत्र करने वाला आदि आदि । ३. वातिक – जिसकी जननेन्द्रिय वायु के कारण स्तब्ध रहती है । ४. क्लीब - जो शीघ्र स्खलित हो जाता है । ५. कुंभी - जिसकी जननेन्द्रिय सूजन से युक्त होती है । ६. ईर्ष्यालुक - बलात् ब्रह्मचर्य का पालन करने के कारण जो नपुंसक हो जाता है । ७. पाक्षिक - अपाक्षिक - शुक्ल या कृष्णपक्ष में जिसके मोह उदय अति तीव्र होता है और अपाक्षिक में कम होता है । निरोध करने के कारण कालान्तर में वह नपुंसक हो जाता है | णाण (ज्ञान) इस प्रकार अन्यान्य शब्द भी विभिन्न प्रकार के नपुंसकों के वाचक हैं । कुछ नाम उनके स्वभाव की सूचना देते हैं और कुछ उनकी शरीरगत अवस्थाओं के द्योतक हैं । विशेष विवरण के लिए देखें - निभा ३५६१-३६०० । देखें-- ' अच्चिय' | Jain Education International ११. बचित १२. चिप्पित १३, मंत्र से वेदोपहत १४. औषधि से वेदोपहत १५. ऋषि द्वारा शप्त १६. देव द्वारा शप्त । ज्ञान, संवेदन, अधिगम, चेतना और भाव — ये पांचों शब्द ज्ञान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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