SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट २ : ३२३ ३. सत्थिय-स्वस्तिक के आकार का आसन । ४. तलिक(म)-सोने का बिछौना । ५. मसूरक-वस्त्र या चर्म का वृत्ताकार आसन । ६. आशालक–अवष्टम्भ वाला—जिसके पीछे सहारा हो वह आसन । ७. मंचक-दो लट्ठों को बांधकर बैठने के लिए बनाया जाने वाला आसन । गंदी (नन्दि) प्रमोद व प्रसन्नता के अर्थ में नंदी शब्द के पर्याय प्रयुक्त हैं । कंदर्प प्रमोद का कारण है अतः कारण में कार्य का उपचार से यह नंदी का एकार्थक है। गग (नग) ‘णग' शब्द के पर्याय में प्रयुक्त सभी शब्द सामान्यतः पर्वत के एकार्थक हैं । भगवती सूत्र में पर्वत, गिरि, डुंगर, उच्छल (उत्स्थल) भट्ठि (दे) आदि को एकार्थक मानते हुए भी इनमें भेद स्वीकार किया है, जैसेपर्वत–जहां उत्सव मनाये जाते हैं। जैसे वैजयन्त, वैभारगिरि पर्वत आदि । गिरि–लोगों के निवास के कारण जहां कोलाहल रहता है । जैसे गोपालगिरि, चित्रकूट आदि । डुगर-शिला समूह से निर्मित अथवा जहां चोर निवास करते हैं । उत्स्थल-रेतीला टीला जो पर्वत के आकार का प्रतीत होता है । भट्ठि-धूल से रहित पर्वत ।। णपुंसक (नपुंसक) निशीथ भाष्य में नपुंसक के १६ भेद प्राप्त हैं १. भटी पृ ३०६ : पर्वतादयोऽन्यत्रैकार्थतया रूढास्तथापीह विशेषो दृश्यः । २. भटी प ३०६-७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy