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________________ २९६ : परिशिष्ट २ : : वतंसक भी है । यह ईषत्/कुछ, झुकी हुई है अतः ईषत् प्राग्भारा ; कहलाती है।' : . ईहा (ईहा) 'अमुकेन भाव्यमिति प्रत्यय ईहा' 'यह ही होना चाहिए' इस प्रकार निश्चयात्मक ज्ञान ईहा है । तत्त्वार्थसूत्र में ऊंह, तर्क, परीक्षा, विचारणा, जिज्ञासा ईहा के पर्यायवाची हैं। प्रस्तुत एकार्थक सामान्य रूप से ईहा के पर्याय हैं, लेकिन अर्थ के विकल्प से इनमें भिन्नता भी है'१. आभोगण-अर्थाभिमुख आलोचना। २. मार्गणा-अन्वय-व्यतिरेक पूर्वक समालोचन । ३. गवेषणा-व्यतिरेक धर्म को छोड़कर अन्वय धर्म के आधार पर समालोचन । ४. चिंता- पुनः पुनः समालोचन ।। ५. विमर्श-पदार्थ के अनित्य आदि धर्मों का विमर्श । ___ इस प्रकार सभी शब्द ईहा के अन्तर्गत क्रमिक भूमिकाओं के द्योतक हैं । इन भूमिकाओं को पार करने में अन्तर्मुहूर्त का समय लगता उउमास (ऋतुमास) प्रत्येक ऋतुमास ३० दिन का होता है । अतः एक युग के . (१८३०:३०) इकसठ ऋतुमास होते हैं। इसके दो नाम हैं-सावनसंवत्सर और कर्मसंवत्सर । स्थानांग सूत्र में कर्म-संवत्सर की व्याख्या • इस प्रकार है जिस संवत्सर में वृक्ष असमय में अंकुरित हो जाते हैं, असमय में । फूल तथा फल आ जाते हैं, वर्षा उचित मात्रा में नही होती, उसे कर्म संवत्सर कहते हैं । १. निपीचू पृ ३२ । २. त० भा० १११५ । - ३. नंदीचू पृ ३६ : ईहा सामण्णतो एगट्ठतिा चेव, अत्यविकप्पणातो पुण भिण्णत्था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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