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________________ परिशिष्ट २ । २९५ में प्रयुक्त हैं । औपपातिक सूत्र में 'इट्र' से लेकर हिययपल्हायणिज्ज तक के शब्द वाणी के विशेषण के रूप में एकार्थक हैं। इनका अर्थ-बोध इस प्रकार है१. इष्ट-मन को प्रीतिकर । २. कान्त-कमनीय, सहज सुन्दर । ३. प्रिय-प्रियता पैदा करने वाली। ४. मनोज्ञ--मनोहर, भावों से सुन्दर । ५. मणाम-मन को भाने वाली। ६. मनोभिराम-चिरकाल तक मन को प्रसन्न करने वाली। ७. उदार-महान् शब्द और अर्थ वाली। ८. कल्याण-शुभप्राप्ति की सूचना देने वाली। ६. शिव-उपद्रव रहित, शब्द और अर्थ के दोषों से रहित । १०. धन्य-धन्यता प्राप्त कराने वाली। ११. मंगल-अनर्थ का प्रतिघात करने वाली। १२. हृदयगमनीय-सुबोध, शीघ्र समझ में आने वाली। १३. हृदयप्रल्हादनीय हृदय गत क्रोध, शोक आदि की ग्रंथि को नष्ट करने वाली। ईसिपग्भारपुढवी (ईषत्प्राग्भारापृथ्वी) ईषत्प्राग्भारापृथ्वी समय क्षेत्र के बराबर लम्बी चौडी है । उसके मध्य भाग की लम्बाई आठ योजन की है और उसका अन्तिम भाग मक्खी के पंख से भी अधिक पतला है। इसका आकार सीधे छत्ते जैसा है तथा यह श्वेत स्वर्णमयी है। वहां सिद्ध/मुक्त जीव निवास करते हैं अतः सिद्धालय, सिद्धि, मुक्तालय, मुक्ति आदि इसके पर्याय हैं । यह अन्य पृथ्वियों से छोटी है अतः तनु, तनुतरी, आदि नाम हैं। लोकाग्र में स्थित होने से लोकाग्र, लोकान चूलिका भी इसके पर्याय हैं। यह समस्त देवलोकों से ऊपर है इसलिए इसका एक नाम ब्रह्मा१. औपटी प १३८-३६ : एकाथिकानि वा प्रायः इष्टादीनि वाग्विशेषणा. नीति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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