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________________ परिशिष्ट २ आधाकर्म कहलाती । यह भिक्षा के ४२ दोषों में प्रथम दोष है । आत्मा का हनन करने से आया हम्म ( आत्मघ्न), साधुओं के लिए दोष पूर्ण होने से अधः कर्म तथा संयमी के निमित्त से बनाये जाने के कारण आत्मकर्म आदि इसके पर्यायनाम हैं । २६४ आहेवच्च (आधिपत्य ) नेतृत्व के द्योतक 'आहेवच्च' शब्द के पर्याय में ५ शब्द प्रयुक्त हैं । इनका अर्थ-भेद इस प्रकार है १. आधिपत्य - अनुशासन । २. पौरपत्य - अग्रगामिता । ३. भर्तृत्व - संरक्षण व पोषण । ४. स्वामित्व - स्वामिभाव । ५. महत्तरकत्व - श्रेष्ठीभाव । इंद (इन्द्र) देखें— 'सक्क' | इज्जा (दे) माता के अर्थ में 'इज्जा' शब्द देशी है । उस समय वज्रा आदि विविध प्रकार की देवियां माता के रूप में प्रसिद्ध थीं । चूर्णिकार ने इसका एक अर्थ यज्ञ भी किया है ।' गर्भ निर्गमन के समय बच्चे का जो आकार होता है वह आकार देवपूजा में होना चाहिए । अनुयोग द्वार सूत्र में इज्याञ्जलि शब्द का प्रयोग उसी रूप में हुआ है । प्राचीन काल में हर पूजा के साथ विशेष प्रकार की देवियां सम्बन्धित रहती थीं, इसलिए संभव है ये चारों शब्द किसी एक देवी विशेष के लिए प्रयुक्त हों । इट्ठ (इष्ट) sg के पर्यायवाची शब्दों का अनेक स्थलों से संग्रहण है । ये पर्यायवाची शब्द भिन्न- २ स्थलों पर भिन्न- २ वस्तु के विशेषण के रूप १. अनुद्वाच् पृ १३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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