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________________ परिशिष्ट २ : २८ १६. अई-जिससे गति की जाती है । १७. आधार-आधार देने वाला। १८. व्योम-जिसमें विशेष रूप से गमन किया जाता है । १९. भाजन-समस्त विश्व का आश्रयभूत । २०. अंतरिक्ष-जिसके बीच (नक्षत्र आदि) देखे जाते हैं । २१. श्याम-नीला होने के कारण श्याम । २२. अवकाशान्तर-दो अवकाशों के बीच होने वाला। २३. अगम-जो स्थिर है, गमन क्रिया से रहित है। २४. स्फटिक-स्फटिक की भांति स्वच्छ । २५. अनन्त-अन्त रहित ।' आघविय (आख्यापित) ___ 'आघविय' आदि शब्द कथन की विभिन्न अवस्थाओं के द्योतक हैं । इनका विशेष अर्थ इस प्रकार है१. आख्यापित-सामान्य कथन । २. प्रज्ञापित-भेदप्रभेद सहित कथन । ३. प्ररूपित-संदर्भ सहित कथन । ४. दशित-उपमा सहित व्याख्यान । ५. निदर्शित-हेतु, दृष्टान्त आदि के माध्यम से कथन । ६. उपदर्शित--उपनय, निगमन पूर्वक कथन, मतान्तर का कथन । आणा (आज्ञा) आज्ञा शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त होता है। जैसे—आदेश देना, उपदेश देना इत्यादि । इसके अतिरिक्त जैन आगमों में वीतराग व्यक्ति के उपदेश के अर्थ में भी आज्ञा शब्द का प्रयोग हुआ है । इसी दष्टि से आज्ञा को ज्ञान और श्रुत भी कहा जा सकता है। जिसके द्वारा जाना जाता है, वह आगम भी आज्ञा का पर्याय है। १. भटी पृ १४३१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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