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________________ २९० : परिशिष्ट २ आभिणिबोहिय (आभिनिबोधिक) आभिनिबोधिक शब्द मतिज्ञान का पर्याय है। इसके पर्याय शब्दों में कुछ-कुछ भेद है, लेकिन समष्टि रूप में सभी मतिज्ञान के वाचक १. ईहा-वस्तु को जानने की चेष्टा । २. अपोह-ज्ञान का निश्चय । ३. विमर्श-चिन्तन करना । यह ईहा और अवाय की मध्यवर्ती अवस्था ४. मार्गणा-अन्वय धर्म की खोज करना। ५. गवेषणा–व्यतिरेक धर्म की आलोचना। ६. संज्ञा-व्यञ्जनावग्रह के पश्चात् होने वाली बुद्धि । ७. स्मृति–पूर्वानुभूत पदार्थों के आलम्बन से होने वाला ज्ञान । ८. मति-सूक्ष्म धर्मों को जानने वाली बुद्धि । ६. प्रज्ञा-विशिष्ट क्षयोपशम जन्य वस्तु को यथार्थ रूप में जानने वाला ज्ञान। इस प्रकार ये सभी शब्द मतिज्ञान की विविध अवस्थाओं के वाचक आभोग (आभोग) प्रतिलेखना का अर्थ है--निरीक्षण । जैन पारिभाषिक शब्दावलि में 'प्रतिलेखना' मुनि की एक चर्या है, जिसमें मुनि अपने उपयोग में आने वाली समस्त वस्तुओं का निरीक्षण करता है । यह शब्द उसी अर्थ में रूढ है । यहां उसकी विभिन्न अवस्थाओं के द्योतक दस पर्याय शब्दों का उल्लेख है१. आभोग-विधिपूर्वक निरीक्षण । २. मार्गणा-किसी को पीड़ा पहुंचाए बिना निरीक्षण । ३. गवेषणा-दोष रहित शुद्ध वस्तु की याचना । १. नंवीटी पृ ५८ : किञ्चिद्भवाद् भेदः प्रदर्शितः, तत्त्वतस्तु मतिवाचका सर्व एते पर्यायशब्दाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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