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________________ परिशिष्ट २ । २७५ निर्भर्त्सन–'मेरी दृष्टि से दूर हो जा' इस प्रकार कहकर अपमान करना। त्रासन-पीड़ादायक और भयोत्पादक शब्दोच्चारण करना। उत्कूजित-अव्यक्त ध्वनि करना, क्रोध में बड़बड़ाना। अक्कोह (अक्रोध) ये तीनों शब्द क्रोध के अभाव के द्योतक हैं१. अक्रोध-प्रतिकूल परिस्थिति में क्रोध आ जाने पर भी सन्तुलन न खोना। २. निक्रोध-किसी भी स्थिति में क्रोध न करना । ३. क्षीणक्रोध-क्रोध मोहनीय कर्म का क्षय हो जाना। वृत्तिकार ने इनको एकार्थक माना है।' अग्गि (अग्नि) 'अग्गि' शब्द के सभी पर्याय अग्नि के स्पष्ट वाचक हैं। सभी नाम उसकी भिन्न-भिन्न विशेषता के द्योतक हैं। कुछ शब्दों का वाच्यार्थ इस प्रकार है१. अग्नि-जो ऊर्ध्व गति करती है।' २. जाततेज--जो प्रारम्भ से ही तेजस्वी हो । ३. हुतवह-हुत/हवन द्रव्य को वहन करने वाली। ४. ज्वलन-सबको जलाने वाली, ज्वलनशील । ५. पवन-पवित्र करने वाली। अच्चिय (अचित) ___'अच्चिय' आदि शब्द सम्मान व्यक्त करने के अर्थ में समानार्थक हैं । उनका अर्थबोध इस प्रकार है---- १. अर्चना-चंदन, गंध आदि द्रव्यों का लेप करना। २. वंदना-स्तुति करना। ३. पूजा-अक्षत आदि से पूजा करना । १. औपटी पृ २०२ : एकार्था वैते शब्दाः । २. अचि पृ २४५ : अगत्यूवं याति अग्निः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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