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________________ २७४ ● परिशिष्ट २ तुच्छाहार — तुच्छ, अल्प या असारभोजी । अरसाहार - रसविहीन भोजन करने वाला । विरसाहार - विरस आहार करने वाला । कम्मवरिय (अकर्मवीर्य) जैन दर्शन में वीर्य / शक्ति के तीन प्रकार माने हैं - बालवीर्यं, पंडितवीर्य, बालपंडितवीर्यं । सूत्रकृतांग चूर्णि में अकर्मवीर्य और पंडितवीर्य को एकार्थक माना है । जो शक्ति कषाय और प्रमाद से संवलित नहीं होती, उससे कर्मबन्ध नहीं होता । वह अकर्मवीर्यं / पंडितवीर्यं कहलाती है । अकुसल ( अकुशल ) प्रश्न व्याकरण सूत्र में 'अकुसल' शब्द के पर्याय में चार शब्दों का उल्लेख है । यहां ये शब्द भाषा-विवेक से विकल व्यक्ति के लिए प्रयुक्त हैं— अकुशल - कथ्य और अकथ्य का विवेक न करने वाला । अनार्य - पापकारी भाषा बोलने वाला । अलीकाशा - पापकारी प्रवृत्तियों की आज्ञा देने वाला । अलीकधर्मनिरत---असत्य कथन में संलग्न रहने वाला । क्षक्कोस ( आक्रोश ) आक्रोश आदि शब्द क्रोध की विभिन्न अवस्थाओं के अर्थ में समानार्थक हैं । इनका अर्थभेद इस प्रकार है आक्रोश –— कुपित होकर 'तू मर जा' ऐसे वचन बोलना । परुष — कठोर वचन कहना । खिसन - 'तू चरित्रहीन है' ऐसे निदावचन कहना । अपमान - नीच सम्बोधन से पुकारना । तर्जन - तर्जनी अंगुली दिखाते हुए फटकारना । १. टीप ४० । २. प्रटी प १६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016050
Book TitleEkarthak kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1984
Total Pages444
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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