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________________ आगम विषय कोश-२ ४८३ ० राजा प्रजा से दस प्रतिशत कर लेकर संतुष्ट हो जाता था। ११. राज्य में परिक्षेप के प्रकार : द्रव्य... भाव • गांव में १८ प्रकार के कर लगते थे। नाम ठवणा दविए, खित्ते काले तहेव भावे य। ० नगर कर से मुक्त होता था। एसो उ परिक्खेवे, निक्खेवो छव्विहो होइ॥ भीताइ करभयस्सा, अंतो बाहिं व होज्ज एगपया।.... सच्चित्तादी दव्वे, सच्चित्तो दुपयमायगो तिविहो। (व्यभा ३७२१) मीसो देसचियादी, अच्चित्तो होइमो तत्थ ॥ अनेक लोग एक साथ मिलकर चुल्ली-कर के भय से एक पासाणिट्टग-मट्टिय-खोड-कडग-कंटिगा भवे दव्वे। खाइय-सर-नइ-गड्डा-पव्वय-दुग्गाणि खेत्तम्मि॥ ही चूल्हे पर अपना खाना पकाते थे। वासारत्ते अइपाणियं ति गिम्हे अपाणियं नच्चा। १०. चक्रवर्ती और राजधानियां कालेण परिक्खित्तं, तेण तमन्ने परिहरंति॥ ......... वसई....."रायहाणि जहिं राया।......" नच्चा नरवइणो सत्त-सार-बुद्धी-परक्कमविसेसे। ___ (बृभा १०९१) भावेण परिक्खित्तं, तेण तमन्ने परिहरंति॥ जहां राजा वास करता है, वह राजधानी है। ___ (बृभा ११२१-११२५) "दस अभिसेयाओ रायहाणीओ"तं जहा-चंपा परिक्षेप (परिधि, परिवेष्टन) के छह प्रकार हैं-नाम, महुरा वाराणसी सावत्थी साएयं कंपिल्लं कोसंबी मिहिला स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। हत्थिणापुरं रायगिहं॥ (नि ९/२०) - द्रव्य परिक्षेप के तीन भेद हैं-सचित्त, अचित्त, मिश्र। संती कुंथूय अरो, तिण्णि वि जिणचक्की एक्कहिं जाया।" सचित्त परिक्षेप के तीन प्रकार हैंबारसचक्कीण एया राजहाणीओ। (निभा २५९१ चू) द्विपद-मनुष्य के द्वारा परिक्षेप। चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, कांपिल्य, चतुष्पद-हस्ति, अश्व आदि के द्वारा परिक्षेप। कौशाम्बी, मिथिला, हस्तिनापुर और राजगृह-ये बारह अपद-वृक्ष के द्वारा परिक्षेप। चक्रवर्तियों की दस अभिषेक राजधानियां थीं। अर्हत् शांति, मिश्र के भी ये ही तीन भेद होते हैं किन्तु यह एक देश से अर्हत् कुंथु और अर्हत् अर-इन तीनों ही एक ही राजधानी सचेतन और एक देश से अचेतन होता है। (हस्तिनापुर) थी। ___ अचित्त परिक्षेप के छह प्रकार हैं-१. पाषाणमय प्राकार, यथा द्वारिका। २. इष्टकामय प्राकार, यथा नन्दपुर। ३. मृत्तिकामय • चक्रवर्ती आदि के भवनों की ऊंचाई प्राकार, यथा सुमनोमुख नगर। ४. काष्ठमय प्राकार । ५. वंशमय अट्ठसतं चक्कीणं, चोवट्ठी चेव वासुदेवाणं। प्राकार । ६. बबूल आदि कंटिका का प्राकार। बत्तीसं मंडलिए, सोलसहत्था उ पागतिए॥ ० क्षेत्र परिक्षेप-परिखा, सरोवर, नदी, गर्त, पर्वत, दुर्ग आदि के भवणज्जाणादीणं, एसुस्सेहो उ वत्थुविज्जाए। द्वारा नगर आदि को परिवेष्टित करना। भणितो सिप्पनिधिम्मि उ, चक्कीमादीण सव्वेसिं॥ . काल परिक्षेप-वर्षा में पानी की अधिकता और ग्रीष्म में (व्यभा ३७४८, ३७४९) जलाभाव के कारण अन्य राजों द्वारा उस नगर का परिहार कर चक्रवर्ती, वासुदेव, माण्डलिक राजा और सामान्य जन (प्रजा) देते हैं। के प्रासाद क्रमश: एक सौ आठ, चौसठ, बत्तीस और सोलह हाथ ० भाव परिक्षेप-राजा को धैर्यशाली, बाह्यसार-बल-वाहन आदि ऊंचे होते हैं। वास्तुविद्या-नैसर्प महानिधि में चक्रवर्ती आदि सभी और आभ्यन्तर सार-रत्न, स्वर्ण आदि से युक्त तथा बुद्धि और के भवन, उद्यान आदि की यही ऊंचाई प्रतिपादित है। पराक्रम से सम्पन्न जानकर अन्य राजा उसका परिहार कर देते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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