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________________ आगम विषय कोश-२ ४८१ राज्य ० तलवर-राजा प्रसन्न होकर जिसके सिर पर रत्नखचित सोने का हाण वा असिग्गहाण वा धणुग्गहाण वा सत्तिग्गहाण वा पट्ट बांधता है।-अनु १९ टि कोतग्गहाण वा॥ (नि ९/२६७) • ईश्वर-युवराज। अमात्य। मांडलिक। अणिमा आदि आठ राजा के अधीनस्थ अनेक प्रकार के कर्मकर/अधिकारी होते लब्धियों से युक्त।-स्था ९/६२ टि थे। जैसे-शास्त्रवाहक या शास्त्रवाचक-राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र ० श्रेष्ठी-वणिक-ग्राम का महत्तर।-दचला १/५ व) आदि राज्यशास्त्रों का कथन करने वाले, संबाधक-पगचंपी करने ५. आरक्षकवर्ग वाले, अभ्यंगन-उबटन करने वाले, स्नान कराने वाले, मंडन ."रायारक्खियं""णगरारक्खियं ॥"णिगमारक्खियं करने वाले, छत्र-चामर वहन करने वाले, आभरण-मंजूषा रखने ""देसारक्खियं सव्वत्तरक्खियं"। सीमारक्खियं...॥ वाले, परिवर्तनवस्त्रगृह, दीपिकाग्रह (पिंजरे में तित्तिरि रखने वाले), रायारक्खिओ-सिरोरक्षः...णगररक्खिओ कोट्टपालो। तलवार, धनुष, शक्ति और भाला धारण करने वाले। सव्वपगइओ जो रक्खति णिगमारक्खिओ, सो सेट्ठी।" ...चिलाइयाण वा बब्बरीण वा पउसीण वा जोणिदेसारक्खिओ, चोरोद्धरणिकः । एताणि सव्वाणि जो रक्खति याण वा पल्हवियाण वा ईसिणीण वा थारुगिणीण वा सो सव्वारक्खिओ, एतेषु सर्वकार्येषु आपृच्छनीयः स च लासीण वा लउसीण वा सिंहलीण वा दमिलीण वा महाबलाधिकतेत्यर्थः। (नि ४/२-६, ४१ चू) आरबीण वा पुलिंदीण वा पक्कणीण वा बहलीण वा (निभा १५५५ की च) ""गोमिया दंडवासिया"। मरुडाण वा सबरीण वा पारसीण वा ॥ (नि ९/२९) प्रस्तुत सूत्र में विभिन्न देशों की दासियों का उल्लेख हैआरक्खि दंडवासिओ""चोरचारियं ति या णाऊणं...। किरातिका (किरात नामक देश में उत्पन्न), बर्बरी, बकुसी, योनिका, (निभा ३०७९ की चू) पल्हविका (पल्हविक देश की), ईशानिका, थारुकिनिका, ल्हासिका राज्य की रक्षा करने वाले आरक्षक सात प्रकार के हैं (ल्हासक देश की), लउसिया (लाओसिया/लकुस देश की), ० राजा आरक्षक-अंगरक्षक/शिरोरक्ष। सिंहली (सिंहल देश की), द्रविड़ देश की, आरबी (अरब देश • नगर आरक्षक-कोतवाल। की), पुलिन्दी (पुलिंद देश की), पक्कणी (पक्कण देश की), ० निगम आरक्षक-प्रजा की रक्षा करने वाला महापौर (मेयर)/श्रेष्ठी। बहली (बहल देश की), मुरुंडी (मुरुंड देश की), शबरी (शबर ० देश आरक्षक-देशरक्षक, चोरों से उद्धार करने वाला। देश की), पारसी (पारस देश की)। ० सर्व आरक्षक-सेनापति। नगर, निगम आदि सबकी रक्षा करने वाला। रक्षा संबंधी सब कार्यों में उससे परामर्श लिया जाता था। । ६. अंत:पुर और उसके रक्षक सेना में वरिष्ठ होने के कारण उसे महाबलाधिकृत कहा जाता था। अंतेउरं च तिविधं, जुण्ण णवं चेव कण्णगाणं च। ० सीमा आरक्षक-राज्यसीमा की रक्षा करने वाला। एक्केक्कं पि य दुविधं, सट्ठाणे चेव परठाणे॥ ० आरक्षक-दंडपाशिक, गौल्मिक (कोतवाल), रात्रि में बाहर दंडधरो दंडारक्खिओ उ दोवारिया उ दारिट्ठा। घूमने वाले चोर, गुप्तचर आदि को पकड़ कर राजा के समक्ष वरिसधर-बद्ध-चिप्पित, कंचुगिपुरिसा तु महतरगा। उपस्थित करने वाला। (निभा २५१३, २५१६) ० अन्य कर्मकर, दासीवर्ग राजा का अंत:पुर तीन प्रकार का होता था""सत्थाहाण वा संवाहाण वा अब्भंगाण वा उव्वट्टाण १.जीर्ण अंत:पुर-अपरिभोग्या वृद्धा रानियों का अंत:पुर। वा मज्जावयाण वा मंडावयाण वा छत्तग्गहाण वा चामर वा मडावयाण वा छत्तग्गहाण वा चामर- २. नव अंत:पुर-परिभोग्या युवा रानियों का अंत:पुर । ग्गहाण वा हडप्पग्गहाण वा परियट्टग्गहाण वा दीवियग्ग- ३. कन्या अंत:पुर-अप्राप्तयौवना राजकन्याओं का अंत:पुर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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