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________________ राज्य सीमापर्यंतवर्ती प्रजा को क्षुब्ध करने वाला, दुर्दान्त का दमन करने वाला तथा रणनीति में कुशल - ऐसा होता है कुमार । ४. प्रग्रहस्थान : राजा आदि, आचार्य आदि पग्गह लोइय इतरे, एक्केक्को तत्थ होइ पंचविहो । राय - जुवरायऽमच्चे, सेट्ठी पुरोहि लोगम्मि ॥ आयरिय उवज्झाए, पवत्ति थेरे तहेव गणवच्छे । सो लोगुत्तरिओ, पंचविहो पग्गहो होति ॥ प्रकर्षेण प्रधानतया वा गृह्यते उपादीयते इति प्रग्रहः प्रभूतजनमान्यः प्रधानपुरुषः । (व्यभा २१६, २१७ वृ) जो प्रकृष्टरूप से अथवा प्रधानरूप से ग्रहण किया जाता है, जो बहुजनमान्य तथा मुख्य होता है, वह प्रग्रह कहलाता है । प्रग्रह के दो प्रकार हैं- लौकिक और लोकोत्तर । प्रत्येक के पांच-पांच प्रकार हैं। लौकिक प्रग्रह के पांच प्रकार हैं - १. राजा । २. युवराज । ३. अमात्य -: -राजकार्यचिन्ताकृत् । ४. श्रेष्ठी । ५. पुरोहित - शांति - कर्मकारी । लोकोत्तर ग्रह के पांच प्रकार हैं- १. आचार्य २. उपाध्याय ३. प्रवर्त्तक ४. स्थविर और ५. गणावच्छेदक । रायामच्च पुरोहिय, सेट्ठी सेणावती य लोगम्मि।'''''' ( निभा ६२९९ ) पग्गहट्ठाणं "पंचविधं, तं जधा - राया जुवराया सेणावती महत्तरो कुमाराऽमच्चो उ । (दशानि १० की चू) लोक में प्रग्रहस्थान पांच हैं - राजा, अमात्य, पुरोहित, श्रेष्ठी और सेनापति अथवा राजा, युवराज, सेनापति, महत्तर और कुमार- अमात्य | रायाऽमच्चे सेट्टी, पुरोहिते सत्थवाहपुत्ते या ''अट्ठारसह पगतीणं जो महत्तरो सेट्ठी, सपुरजणवयस्स रण्णो जो होमजावादिएहिं असिवादि पसमेति सो पुरोहितो, जो सत्थं वाहेति सो सत्थवाहो । (निभा १७३५ चू) राजा, मंत्री, श्रेष्ठी, पुरोहित और सार्थवाहपुत्र महर्द्धिक हैं । ० श्रेष्ठी - अठारह श्रेणियों में महत्तर । Jain Education International आगम विषय कोश - २ ० पुरोहित-पुर- जनपदसहित राजा के अशिव आदि उपद्रवों का यज्ञ, जप आदि के माध्यम से शमन करने वाला। ० सार्थवाह - सार्थ का नायक । (द्र सार्थवाह ) ४८० ईसर - तलवर - माडंबिएहिं सेट्ठीहिं सत्थवाहेहिं |'''''' ईसरभोइयमादी, तलवरपट्टेण तलवरो हो । वेंट बद्धो सेट्टी, पच्चंतणिवो माडंबी ॥ ऐश्वर्येण युक्तः ईश्वरः, सो य गामभोतियादिपट्टबंधो। रायप्रतिमो चामरविरहितो तलवरो भण्णति । जम्मिय पट्टे सिरिया देवी कज्जति तं वेंणगं, तं जस्स रण्णा अणुन्नातं सो सेट्ठी भण्णति । (निभा २५०२, २५०३ चू) मडम्बं नाम यत् 'सर्वतः ' सर्वासु दिक्षु छिन्नम् अर्द्धतृतीयगव्यूतमर्यादायामविद्यमानग्रामादिकमिति भावः । अन्ये तु व्याचक्षते - -यस्य पार्श्वतोऽर्द्धतृतीययोजनान्तर्ग्रामादिकं न प्राप्यते तद् मडम्बम् । (बृंभा १०८९ की वृ) ईश्वर - ऐश्वर्ययुक्त व्यक्ति। ग्राम का पट्टधारक अधिपति । ० तलवर - तलवरपट्टभूषित। राजा के समान ऐश्वर्यसम्पन्न व्यक्ति, केवल उसके पास चामर नहीं होता है। 1 ० माडंबिक- मडंब का अधिपति। जो सब दिशाओं में छिन्न हो, जिसके आसपास ढाई गव्यूत अथवा ढाई योजन तक कोई ग्राम आदि न हो, वह स्थान मडंब कहलाता है । श्रेष्ठी - राजा द्वारा जिसे श्रीदेवी के चिह्न से अंकित शिरोवेष्टन की अनुज्ञा प्राप्त 1 सार्थवाह - सार्थ का अधिपति । O ( ० राजा - जो नम्रीभूत अठारह श्रेणियों का अधिपति हो, मुकुट को धारण करने वाला हो और सेवा करने वालों के लिए कल्पतरु के समान हो, उसे राजा कहा गया है। अठारह श्रेणियां ये हैंघोड़ा, हाथी और रथ के अधिपति, सेनापति, मंत्री, श्रेष्ठी, दण्डपति, शूद्र, क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, महत्तर, गणराज, अमात्य, तलवर, पुरोहित, स्वाभिमानी महामात्य और पैदल सेना । - षट्खण्डागम, धवला १ / १, १, १, गा ३६-३८/५७ o सेनापति - हाथी, घोड़ा, रथ और पदाति- इस चतुरंगिणी सेना का अधिपति । - अनु १९ टि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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