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________________ आगम विषय कोश-२ ४७९ राज्य ० धनवान, नैयतिक, रूपयक्ष जो गम्भीर, मृदु, नीतिविशारद, जातिसम्पन्न और विनयकोडिग्गसो हिरण्णं, मणि-मुत्त-सिल-प्पवाल-रयणाई। सम्पन्न होता है तथा युवराज के साथ मिलकर जो राज्यकार्यों को अजय-पिउ-पज्जागय, एरिसया होंति धणमंता॥ सम्पादित करता है, वह महत्तरक है। सणसत्तरमादीणं, धन्नाणं कुंभकोडिकोडीओ। जो जनपदसहित पुर एवं राजा की चिंता करता है, व्यवहारजेसिं तु भोयणट्ठा, एरिसया होंति नेवतिया॥ कुशल और नीतिनिपुण होता है तथा जो समय पर राजा को भी भंभीय मासुरुक्खे, माढरकोडिण्णदंडनीतीसु। शिक्षा देता है, वह अमात्य (मंत्री) है। अधऽलंचऽपक्खगाही, एरिसया रूवजक्खा तु॥ ० गुप्तचर के प्रकार रूपयक्षाः मूर्तिमन्तो धमैकनिष्ठा देवा इत्यर्थः। सूयग तहाणुसूयग, पडिसूयग सव्वसूयगा चेव। (व्यभा ९५०-९५२ वृ) पुरिसा कतवित्तीया, वसंति सामंतरज्जेसु॥ सूयिग तहाणुसूयिग, पडिसूयिग सव्वसूयिगा चेव। जिनके पास पिता-दादा-परदादा से प्राप्त कोटि-परिमाण में . महिला कयवित्तीया, वसंति सामंतरज्जेसु॥ सोना-चांदी, मणि (चन्द्रकान्त आदि), मुक्ता, शिला, प्रवाल और ......"सामंतनगरेसु।।..."नियगम्मि रज्जम्मि॥ रत्न (कर्केतन आदि) हों, वे धनवान हैं। ..."नियगम्मि नगरम्मि॥..."अंतेउरे रणो॥ जिनके घरों में भोजन के लिए सण आदि सतरह प्रकार के (व्यभा ९३८-९४०, ९४२, ९४४, ९४६) धान्यों की कुम्भकोटिकोटियां (विपुल कोष्ठागार) हों, वे नैयतिक गुप्तचरों में पुरुष और स्त्री दोनों होते थे, जिनकी नियुक्ति हैं। (सत्रह प्रकार के धान्य ये हैं-शालि, यव, कोद्रव, व्रीहि, अमात्य करता था। उन्हें उचित वेतन मिलता था। वे पड़ोसी राज्य रालक, तिल, मूंग, उड़द, चवला, चना, तुवरी, मसूर, कुलत्थ, और नगर, अपने राज्य-नगर एवं अन्तःपुर में रहते थे। गेहूं, निष्पाव, अतसी और सन।) गुप्तचर (चारपुरुष) के चार प्रकार हैं-सूचक, अनुसूचक, जो भंभी, आसुरुक्ष, माठर और कोण्डिन्य (कौटिल्य) द्वारा प्रतिसूचक और सर्वसूचक । गुप्तचरस्त्री के चार प्रकार हैं-सूचिका, प्रणीत दण्डनीतियों में कुशल होते हैं, रिश्वत नहीं लेते, यह मेरा अनुसूचिका, परिसूचिका और सर्वसूचिका। अपना है-ऐसा सोचकर जो पक्षपात नहीं करते, वे रूपयक्ष/धर्म- १. सूचक पड़ोसी राज्यों में जाकर अन्तःपुरपालक के साथ मैत्री पाठक/मूर्तिमान् धर्मैकनिष्ठ देव हैं। कर वहां के सारे रहस्यों को जान लेते थे। ३. युवराज, महत्तरक, अमात्य २. अनुसूचक नगर के अन्दर की गुप्त बातों को ज्ञात करते थे। आवस्सयाइ काउं, जो पव्वाडं त निरवसेसादं। ३. प्रतिसूचक नगरद्वार के समीप अवस्थित होकर पडौसी राज्य से आने-जाने वाले शत्रु की घात में रहते थे। अत्थाणी मज्झगतो, पेच्छति कज्जाइँ जुवराया॥ गंभीरो मद्दवितो, कसलो जो जातिविणयसंपन्नो। ४. सर्वसूचक अपने नगर में बार-बार आते-जाते रहते थे। जुवरण्णाए सहितो, पेच्छइ कज्जाइ महतरओ॥ . (इन गुप्तचरों का आपस में गहरा संबंध रहता था। सूचक सजणवयं च पुरवरं, चिंतंतो अच्छई नरवतिं च। जो कुछ भी नयी बात सुनते या देखते, वे अनुसूचक को, अनुसूचक ववहारनीतिकुसलो, अमच्चो एयारिसो अधवा॥ प्रतिसूचक को तथा प्रतिसूचक सारे वृत्तान्त के साथ-साथ स्वयं "यो राज्ञोऽपि शिक्षा प्रयच्छति।(व्यभा ९२९-९३१ वृ) द्वारा गृहीत तथ्य भी सर्वसूचक को बता देते और फिर सर्वसूचक अमात्य तक सारा रहस्य पहुंचा देते।) जो प्रातः उठकर सर्वप्रथम देहचिन्ता, देवपूजा आदि समस्त ० कुमार आवश्यक कार्यों को सम्पन्न कर आस्थानिका (राज्यसभा) में पच्चंते सव्वतो दमेमाणो। बैठकर राज्यव्यवस्था सम्बन्धी कार्यों को देखता है, चिन्तन-विमर्श संगामनीतिकुसलो, कुमार एतारिसो होति॥ करता है, वह युवराज है। (व्यभा ९४८) त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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