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________________ पिण्डैषणा ३७२ आगम विषय कोश-२ कोई भिक्षु सामान्य रूप से भिक्षा लेकर आता है, उन साधर्मिकों मुनि आहार उतना ही ग्रहण करे, जितना उपयोगी या को पूछे बिना जिस-जिसको देना चाहता है, उस-उसको प्रचुर- अपेक्षित है। निष्कारण प्रमाण से अतिरिक्त आहार ग्रहण करने पर प्रचुर दे देता है, वह मायास्थान का आचरण करता है, उसे इस संचय, परिष्ठापन, आज्ञाभंग आदि दोषों का प्रसंग आता है। प्रकार नहीं करना चाहिए। वह एषणीय भिक्षा लेकर आचार्य आदि अतिरिक्त पर्याप्त आहार-ग्रहण के अनेक कारण हैंके पास जाए, वहां जाकर कहे-आयुष्मन्! श्रमणो! यहां मेरे जहां स्थापनाकुल नहीं होते, वहां प्रत्येक संघाटक आचार्य, पूर्वपरिचित (दीक्षाचार्य आदि),पश्चात् परिचित (वाचनाचार्य आदि) ग्लान और अतिथि साधु के लिए आहार ले आता है। हैं, जैसे आचार्य, उपाध्यायः...-इनको प्रचुर-प्रचुर दूंगा। उसके ० कोई दाता दुर्लभ द्रव्यों से सहसा मुनि के भिक्षापात्र भर देता है। ऐसा कहने पर गुरु कहे-आयुष्मन् ! अपनी इच्छानुसार यथापर्याप्त भिक्षाग्रहण के पश्चात् उपवास की इच्छा हो जाती है। दो। गरु जितना-जितना कहे. उतना-उतना दे। गुरु सारा देने के इन कारणों से अतिरिक्त पर्याप्त आहार आ जाने पर जो मुनि लिए कहे तो वह सारा आहार दे दे। अन्य मुनियों को आमंत्रित किए बिना उसका परिष्ठापन करता है, २२. अतिरिक्त आहार-ग्रहण संबंधी निर्देश । वह दोषों का भागी होता है। जिन्हें बार-बार भख लगती है, वे ..."बहुपरियावण्णं भोयणजायं पडिगाहेत्ता साहम्मिया बाल-वृद्ध-शैक्ष पुनः खा सकते हैं, तपस्वी पारणक में दुबारा खा तत्थ वसंति संभोइया समणुण्णा अपरिहारिया अदूरगया।तेसिं सकता है, ग्लान प्रायोग्य द्रव्य ग्लान के काम आ सकता है, महोदर अणालोइया अणामंतिया परिट्ठवेइ।माइट्ठाणं संफासे, णो एवं मंडलीभोजन के पश्चात् भी खा सकता है, अतिथि साधु मार्ग की करेज्जा। (आचला १/१२७) थकान दूर होने पर पुनः खा सकता है, इसलिए बाल, वृद्ध, शैक्ष, तपस्वी, ग्लान और महोदर (अधिक खुराक वाले) को पूछे बिना भिक्षु प्रमाण से अधिक आहार ग्रहण कर लिए जाने पर आहार-व्युत्सर्ग करने वाले के द्वारा ये सब परित्यक्त-उपेक्षित होते (अतिरिक्त आहार-परिष्ठापन की स्थिति उत्पन्न होने पर) यदि वहां पास में रहने वाले समनुज्ञ साम्भोजिक अपारिहारिक साधुओं को बिना पूछे, बिना आमंत्रित किए उस आहार का व्युत्सर्ग करता अतिरिक्त आहार को कोई साधु न खाए, तब भी जो साधु आत्मशुद्धि की भावना से अतिरिक्त आहार लाता है, वह विपुल है, तो वह मायास्थान का संस्पर्श करता है। वह ऐसा न करे। निर्जरा का भागी होता है, अतः छद्मस्थ मुनि को अतिरिक्त आहार जावतियं उवयुजति, तत्तियमेत्ते तु भोयणे गहणं। अतिरेगमणट्ठाए, गहणे आणादिणो दोसा॥ लाना चाहिये। अतिशयज्ञानी के लिए यह विधि वैकल्पिक है-कोई खाता है तो वह अतिरिक्त लाता है, अन्यथा नहीं लाता। (अभिग्रहधारी आयरिए य गिलाणे, पाहुणए दुल्लभे सहसदाणे। पुव्वगहिते व पच्छा, अभत्तछंदो भवेज्जाहि॥ भिक्षु के ऐसा संकल्प होता है-मैं अपनी आवश्यकता से अधिक, एतेहिं कारणेहिं, अतिरेगं होज्ज पज्जयावण्णं । .... अपनी कल्प-मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय तथा अपने लिए लाए हुए अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य से निर्जरा के उद्देश्य से उन साधर्मिकों बाला वुड्डा सेहा, खमग-गिलाणा महोदरा एसा। की सेवा करूंगा-पारस्परिक उपकार की दृष्टि से।-आ ८/१२०) सव्वे वि परिच्चत्ता, परिट्ठवेंतेण ऽणापुच्छा॥ भुंजंतु मा व समणा, आतविसुद्धीए णिज्जरा विउला। २३. अचित्त अनेषणीय संबंधी विधि तम्हा छउमत्थेणं, णेयं अतिसेसिए भयणा॥ ...."गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविद्वेणं बाला वुड्डाऽभिक्खछुहा पुणो वि जेमेज्ज"खमगो वा अण्णयरे अचित्ते अणेसणिज्जे पाण-भोयणे पडिग्गाहिए पारणगे पुणो जेमेज्ज, गिलाणस्स वा तं पाउग्गं, महोदरा वा सिया, अस्थि या इत्थ केइ सेहतराए अणुवट्ठावियए, कप्पइ से मंडलीएण उवउट्टा जेमेज्जा, आदेसा वा तेहि आगता होज्ज, तस्स दाउं वा अणुप्पदाउं वा।"अणुवट्ठावियए, तं नो अप्पणा अद्धाणखिन्ना वाण जिमिता पुणो जेमेज्ज। भुंजेज्जा नो अण्णेसिंदावए, एगते बहुफासुए थंडिले पडिलेहित्ता (निभा ११२३, ११२६-११२८, ११३१ चू) पमज्जित्ता परिट्ठवेयव्वे सिया॥ (क ४/१४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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