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________________ आगम विषय कोश - २ ३७३ गृहपति के घर में आहार के लिए अनुप्रविष्ट निर्ग्रन्थ द्वारा कोई अचित्त अनेषणीय (आधाकर्मिक आदि) पान - भोजन का ग्रहण हो जाए और वहां कोई अनुपस्थापित शैक्ष हो तो उसे वह पानभोजन दिया जा सकता है। अनुपस्थापित शैक्ष न हो तो स्वयं उसे न खाए, न दूसरों को दिलाए । एकांत में बहुप्रासुक स्थंडिल का प्रतिलेखन प्रमार्जन कर परिष्ठापन करे । २४. अप्राक आहार परिष्ठापन विधि से य आहच्च पडिग्गाहिए सिया से तं आयाय एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता - अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्प - पाणे विगिंचिय-विगिंचिय, उम्मिस्सं विसोहिय-विसोहिय तओ संजयामेव भुंजेज्ज वा पीएज्ज वा ॥ जं च णो संचाएजा भोत्तए वा पायए वा, से तमायाय ..... एगतमवक्कमेत्ता - अहे झाम - थंडिलंसि वा तुस - रासिंसि वा, गोमय-रासिंसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय - पडिलेहिय पमज्जिय- पमज्जिय तओ संजयामेव परिवेज्जा ॥ (आचूला १/२, ३) मुनि ने कदाचित् अप्राक और अनेषणीय आहार ग्रहण कर लिया हो, उसे लेकर वह एकान्त में चला लाए। एकान्त में जाकर उद्यान या उपाश्रय, जहां जीवजंतु न हों, वहां उस आहार का विवेक (पृथक्करण) कर उन्मिश्र आहार का विशोधन कर संयमपूर्वक उसे खाए या पीए। जिस आहार का (विवेक और विशोधन कर) खाना-पीना शक्य न हो, उसे लेकर वह एकान्त में जली हुई भूमि, तुष के ढेर, उपल अथवा राख के ढेर या इसी प्रकार की अन्य अचित्त भूमि को देखकर उसका प्रतिलेखनप्रमार्जन कर संयमपूर्वक उस आहार का परिष्ठापन करे। २५. कसैले पानक के परिष्ठापन का निषेध ..... अण्णतरं भोयण - जायं पडिगाहेत्ता सुब्भिं- सुब्भिं भोच्या दुब्भिं दुब्भिं परिट्ठवेइ ॥ अण्णतरं वा पाणगजायं पडिगात्ता पुष्पं-पुष्पं आविइत्ता कसायं- कसायं परिवे । माइट्ठाणं संफासे, जो एवं करेज्जा । पुष्पं पुष्फे ति वा, कसायं कसाए त्ति वा सव्वमेयं भुंजेज्जा, णो किंचि वि परिवेज्जा ॥ (आचूला १ / १२५, १२६) भिक्षु किसी प्रकार के भोजनजात को प्राप्त कर सुगंधित 1 Jain Education International पिण्डैषणा सुगंधित खाकर दुर्गंधित-दुर्गंधित का परिष्ठापन करता है। इसी प्रकार विविध पानक प्राप्त कर अच्छे-अच्छे (वर्ण-गंधयुक्त) पानक को पीकर कसैले कसैले (दुर्वर्ण-दुर्गंध युक्त) पानक का परिष्ठापन करता है, वह मायास्थान का संस्पर्श करता है। वह ऐसा न करे। मधुर को मधुर और कसैले को कसैला जानकर सारे पानक को पी ले, थोड़ा भी परिष्ठापित न करे । तम्मि य गिद्धो अण्णं, णेच्छे अलभतो एसणं पेल्ले । परिठाविते य कूड, तसाण संगामदिट्ठतो ॥ कलुसे परिविए मच्छियाओ लग्गंति, तेसिं घरकोइला धावति, तीए वि मज्जारी, मज्जारीए सुणगो, सुणगस्स वि अण्णो सुणगो, सुणगणिमित्तं सुणगसामिणो कलहें ति । एवं पक्खापक्खीए संगामो भवति । (निभा ११०७ चू) जो मधुर मनोज्ञ पानक में गृद्ध होता है, वह कसैले पानक को पीना नहीं चाहता, अतः उसका विसर्जन कर मधुर पानक की अन्वेषणा करता है, इससे सूत्र - अर्थ पौरुषी की हानि होती है । इच्छित पानक न मिलने पर एषणा संबंधी दोषों का भी सेवन कर लेता । कटु पानक के परिष्ठापन में कूट दोष संभव है - जैसे जाल में प्राणी फंस जाते हैं, वैसे ही उस व्युत्सृष्ट पानक में मक्खियां, चींटियां आदि जंतु फंस जाते हैं। इस प्रकार त्रस जीवों के उपघात का प्रसंग आता है। मक्खियों के लिए गृहकोकिला और गृहकोकिला के लिए कुत्ता, कुत्ते के पीछे दूसरा कुत्ता दौड़ता है, तब कुत्ते के निमित्त दोनों कुत्तों के स्वामियों में कलह हो जाता । इस प्रकार अपने-अपने पक्ष की सुरक्षा के लिए संग्राम शुरू हो जाता है T २६. सचित्त जल - व्युत्सर्ग विधि से य आहच्च पडिग्गहिए सिया खिप्पामेव उदगंसि साहरेज्जा, सपडिग्गहमायाए पाणं परिट्ठवेज्जा, ससणिद्धाए वा भूमी यिज्जा । उदउल्लं वा, ससणिद्धं वा पडिग्गहं णो आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, संलिहेज्ज वा, णिल्लिहेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा, उवट्टेज्ज वा, आयावेज्ज वा पयावेज्ज वा ॥ (आचूला ६/४७, ४८ ) मुनि कदाचित् सचित्त जल ग्रहण कर ले, तो तत्काल उसे दाता के जलपात्र में डाल दे, (वैसा न हो सके तो ) पात्र को लेकर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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