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________________ आगम विषय कोश-२ २४१ छेदसूत्र एवं दप्पपणासित, न वि देंति गणं पकप्पमझयणे" वा। सा य वएज्जा-आबाहेणं, नो पमाएणं। सा य गेलण्णे असिवे वा, ओमोयरियाय रायडे य। संठवेस्सामी ति संठवेज्जा, एवं से कप्पड़ पवत्तिणित्तं। एतेहि नासियम्मी, संधेमाणीय देंति गणं॥ सा य संठवेस्सामी ति नो संठवेज्जा, एवं से नो कप्पड़ एमेव य साधूणं, वाकरणनिमित्तछंद कधमादी" पवत्तिणित्तं ॥ (व्यभा २३२०, २३२१, २३२४, २३२७-२३२९) निग्गंथस्स नवडहरतरुणस्स आयारपकप्पे नाम धर्मकथा-मलयवती, मगधसेना, तरंगवती, वसुदेवहिण्डी आदि अज्झयणे परिब्भटे सिया।""जावज्जीवं तस्स तप्पत्तियं कथा-उपन्यासों को पढ़ना, निमित्त-ज्योतिष्क-अतीत-अनागत नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा भावों को बताना, विद्या, मंत्र, योगचूर्ण आदि का प्रयोग उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥ (व्य ५/१५, १६) करना, कुहुकशास्त्र पढ़ना आदि-इन कारणों से साध्वी के नवदीक्षिता (तीन वर्ष की दीक्षिता), डहरिका (अठारह आचारप्रकल्प विस्मृत हो जाता है। वह उसे पुन: सीखे या न वर्ष तक की वय वाली) और तरुणी (चालीस वर्ष तक की सीखे, जीवनभर गण धारण नहीं कर सकती। वैद्य दृष्टांत-एक वैद्य राजा के यहां नियुक्त था। वह द्यूत, अवस्था वाली) निग्रंथी निशीथ अध्ययन सीख कर भूल जाती है विषय आदि प्रमादों के कारण अपनी विद्या भूल गया। एक तो उससे पूछना चाहिए-आर्ये! किस कारण से निशीथ भूल गई बार राजा ने चिकित्सा हेतु बुलाया। वह चिकित्सा कर नहीं हो-आबाधा (रोग आदि के कारण) से या प्रमाद से? सका। उसने कहा-मेरे वैद्यकशास्त्र चोरों ने चुरा लिए हैं। साध्वी कहे-प्रमाद से यह अध्ययन विस्मृत हो गया राजाज्ञा से शास्त्रकोश वहां लाया गया। राजा ने देखा-कोश ह, आबाधा से नहीं तो उसे जीवनपर्यंत प्रवर्तिनी या के जंग लग गया है, पुस्तकें कीड़ों द्वारा खाई हुई हैं। राजा ने । गणावच्छेदिका पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता, वह उसे धारण नहीं कर सकती। प्रमाद के कारण वैद्य को राजवैद्य के पद से मुक्त कर दिया। वह अन्यत्र गया, विद्या सीख कर आया। नियुक्ति की याचना यदि वह कहे-प्रमाद से नहीं, आबाधा से विस्मृत की। राजा ने पुन: नियुक्ति नहीं की। हुआ है। अब मैं इसे पुन: संस्थापित कर लूंगी, तो संस्थापित इसी प्रकार प्रमाद से प्रकल्पाध्ययन विस्मत होने पर करने पर उसे प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिका का पद दिया जा गण नहीं दिया जाता। रोग, रोगी का वैयावत्त्य. अशिव. सकता है, वह उसे धारण कर सकती है। दुर्भिक्ष, राज्य-प्रद्वेष आदि कारणों से निशीथ विस्मृत होने पर निग्रंथ के लिए भी यही विधि है। प्रमाद से निशीथ आर उसका पन: संधारण करने पर गण (आचार्य आदि का का विस्मृति होने पर वह जीवनपर्यत आचार्य यावत गणापद) दिया जा सकता है। वच्छेदक नहीं बन सकता। इसी प्रकार साधु व्याकरण, निमित्त, छन्दशास्त्र, ० स्थविर के लिए निषेध नहीं धर्मकथा आदि के अध्ययन के कारण निशीथ को भूल जाता थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे, है, तो उसे भी गण नहीं दिया जाता। परिभट्टेसिया।कप्पइ तेसिंसंठवेमाणाणवा असंठवेमा-णाण २०. निशीथ की विस्मृति : गणदायित्व का निषेध वा आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा निग्गंथीए नवडहरतरुणियाए आयारपकप्पे नामं धारेत्तए वा॥ थेराणं थेरभूमिपत्ताणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भटे सिया। सा य पुच्छियव्वा-केण ते अज्झयणे परिब्भटे सिया। कप्पइ तेसिं सन्निसण्णाण वा अज्जे! कारणेणं आयारपकप्पे नामं अज्झयणे परिब्भटे? संतुयाण वा उत्ताणयाण वा पासिल्लयाणवा आयारपकप्पं किं आबाहेणं उदाह पमाएणं? सा य वएज्जा-नो नामंअज्झयणंदोच्चं पितच्चं पिपडिच्छित्तए वा पडिसारेत्तए आबाहेणं, पमाएणं। जावज्जीवंतीसेतप्पत्तियं नो कप्पड़ वा॥ (व्य ५/१७, १८) पवत्तिणित्तं वा गणावच्छेइणित्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए स्थविरभूमि को प्राप्त स्थविरों के आचारप्रकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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