SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छेदसूत्र अध्ययन विस्मृत हो गया हो, वे उसे पुनः कण्ठस्थ करते हैं या नहीं भी करते हैं, उन्हें आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद दिया जा सकता है, वे उसे धारण कर सकते हैं। यदि स्थविरभूमि को प्राप्त स्थविर निशीथ अध्ययन को भूल जाते हैं तो बैठे हुए, लेटे हुए, उत्तानशयन या पार्श्वशयन करते हुए अवमरालिक से दो बार, तीन बार सूत्रअर्थ का श्रवण और पृच्छा कर सकते हैं, परावर्तन कर सकते हैं । ० विस्मृतश्रुता को जानने की प्रक्रिया दंडग्गहनिक्खेवे, आवसियाए निसीहियाऽकरणे । गुरुणं च अप्पणामे, य भणसु आरोवणा का उ ॥ (व्यभा २३१८) अमुक साध्वी को निशीथ याद है या नहीं ? यह जानने के लिए आचार्य पूछते हैं - आर्ये! प्रतिलेखन- प्रमार्जन किए बिना दण्डक का ग्रहण- निक्षेपण करने पर, आवश्यकीनैषेधिकी न करने पर और वसति में प्रवेश करते हुए गुरु को प्रणाम न करने पर क्या प्रायश्चित्त प्राप्त होता है ? इन प्रश्नों का यथावस्थित उत्तर न देने पर ज्ञात जाता है कि वह निशीथ अध्ययन भूल चुकी है । २१. दशा-कल्प-व्यवहार के निर्यूहणकर्त्ता वंदामि भद्दबाहुं, पाईणं चरिमसयलसुयनाणि । सुत्तस्स कारगमिसिं, दसासु कप्पे य ववहारे ॥ बाहुनामे पाईणो गोत्तेण चरिमो - अपच्छिमो सगलाई चोइसपुव्वाई | (दशानि १ चू) प्राचीनगोत्रीय अंतिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु को मैं वंदना करता हूं। उन्होंने दशाश्रुतस्कंध, कल्प और व्यवहारइन तीन सूत्रों का प्रणयन किया। २२. कल्प- व्यवहार का प्रणयन क्यों ? पूर्वेषु यद् नवमं प्रत्याख्याननामकं पूर्वं तस्य यत् तृतीयमाचाराख्यं वस्तु तस्मिन् विंशतितमे प्राभृते मूलगुणेषूत्तरगुणेषु चापराधेषु दशविधमालोचनादिकं प्रायश्चित्तमुपवर्णितम्, कालक्रमेण च दुःषमानुभावतो धृति-बलवीर्य - बुद्ध्याऽऽयुःप्रभृतिषु परिहीयमानेषु पूर्वाणि दुरवगाहानि Jain Education International आगम विषय कोश - २ जातानि ततो मा भूत् प्रायश्चित्तव्यवच्छेदः - इति साधूनामनुग्रहाय चतुर्दशपूर्वधरेण भगवता भद्रबाहुस्वामिना कल्पसूत्रं व्यवहारसूत्रं चाकारि, उभयोरपि च सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्तिः । (बृभावृ पृ २) २४२ प्रत्याख्यान नामक नौवें पूर्व की तीसरी वस्तु है - आचार । उसके बीसवें प्राभृत में मूलगुणों और उत्तरगुणों में अपराध होने पर आलोचना आदि दस प्रकार के प्रायश्चित्त का वर्णन है । क्रम से दुःषमअर के प्रभाव से मनुष्य की धृति, बल, वीर्य, बुद्धि, आयुष्य आदि की परिहानि हो जाने पर पूर्वी का अवगाहन कष्टसाध्य हो गया है, इसलिए प्रायश्चित्त विधि का व्यवच्छेद न हो जाए - यह सोचकर चौदहपूर्वी भगवान भद्रबाहु ने साधुओं के अनुग्रह के लिए कल्प और व्यवहार सूत्र तथा दोनों की ही सूत्रस्पर्शी निर्युक्ति का प्रणयन किया। २३. दशा - कल्प-व्यवहार का उद्गम ....... भद्दबाहुस्स ओसप्पिणीए पुरिसाणं आयुबलपरिहाणि जाणिऊण चिंता समुप्पन्ना। पुव्वगते वोच्छिन्ने मा साहू विसोधिंण याणिस्संतित्ति काउं अतो दसाकप्पववहारा निज्जूढा पच्चक्खाणपुव्वातो। (दशाचू प ५) इस अवसर्पिणी कालखंड में पुरुषों का आयुष्य और बल क्षीण हो रहा है - यह जानकर भद्रबाहु को चिंता उत्पन्न हुई । पूर्वगत की विशाल ज्ञानराशि विच्छिन्न होने पर साधु विशोधि को नहीं जान पायेंगे - यह सोचकर उन्होंने प्रत्याख्यानपूर्व से दशाश्रुतस्कंध, कल्प और व्यवहार - इन तीन सूत्रों का निर्यूहण किया। २४. दशाश्रुतस्कंध का निर्यूहण हरीओ तु इमाओ, अज्झयणेसु महईओ अंगेसु । छसु णायादीएसुं, वत्थविभूसावसाणमिव ॥ डहरीओ तु इमाओ, निज्जूढाओ अणुग्गहट्ठाए । थेरेहिं तु दसाओ दिट्टिवायातो नवमातो पुव्वातो असमाधिद्वाणपाहुडातो असमाधिद्वाणं, एवं सेसाओवि सरिसनामेहिं पाहुडेहिं ******** Il For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy