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________________ क्षेत्रप्रतिलेखना १९४ आगम विषय कोश-२ कामं तु रसच्चागो, चतुत्थभंगं तु बाहिरतवस्स। ४. भावागाढ-ग्लान आदि के पथ्य की अप्राप्ति वाला क्षेत्र। सो पुण सहूण जुज्जति, असहूण य सज्जवावत्ती॥ ५. पुरुषागाढ-आचार्य आदि के लिए अकारक क्षेत्र। अगिलाय तवोकम्मं, परक्कमे संजतो त्ति इति वुत्तं। ६. चिकित्सागाढ-वैद्य आदि की दुर्लभता वाला क्षेत्र । तम्हा उ रसच्चाओ, नियमातो होति सव्वस्स॥ ७. सहायागाढ-सहायक के अभाव वाला क्षेत्र । जस्स उ सरीरजवणा, रिते पणीयं न होति साहुस्स। १०. प्रत्युपेक्षित क्षेत्र-समीक्षा : आचार्य द्वारा निर्णय सो वि य हु भिण्णपिंडं, भुंजउ अहवा जधसमाधी॥ पढमाएँ नत्थि पढमा, तत्थयघय-खीर-कूर-दधिमाई। (व्यभा १७७५-१७७८) बिडयाएँ बीय तइयाएँ दो वि तेसिं च धव लंभो॥ शिष्य ने पूछा-गोरस भावित क्षेत्र उत्कृष्ट क्यों? ओभासिय धुव लंभो, पाउग्गाणं चउत्थिए नियमा। आगम तो रस-परित्याग का विधान करते हैं। प्रणीत रस के इहरा वि जहिच्छाए, तिकाल जोगं च सव्वेसिं॥ आहार से कामोद्रेक आदि दोष उत्पन्न होते हैं। इच्छागहणं गुरुणो, कत्थ वयामो त्ति तत्थ ओअरिया। गुरु ने कहा- यद्यपि रसपरित्याग उत्कृष्ट है, शास्त्र- खुहिया भणंति पढम, तं चिय अणुओगतत्तिल्ला॥ विहित है, षड्भेदात्मक बाह्य तप का चौथा भेद है, फिर भी बिइयं सुत्तग्गाही, उभयग्गाही य तइयगं खेत्तं। वह सबके लिए समान रूप से नियमतः करणीय नहीं है। जो आयरिओ उ चउत्थं, सो उ पमाणं हवइ तत्थ॥ समर्थ हैं, सहिष्णु हैं, उन्हीं के लिए उपयुक्त है। जो असमर्थ (बृभा १५२३-१५२६) हैं, दुर्बल हैं, उनकी रस के अभाव में मृत्यु भी हो सकती है। क्षेत्र की प्रतिलेखना करके आने वाले मुनि आचार्य इसीलिए भगवान ने कहा है-'संयमी अग्लानभाव से तप में के समक्ष अपने-अपने क्षेत्र की स्थिति निवेदित करते हैंपराक्रम करे।' प्रथम दिशा (पूर्व) में घृत, दुग्ध, दधि, चावल आदि जो साधु प्रणीत रस के बिना शरीरयापन न कर सके, की उपलब्धि पर्याप्त है किन्तु सूत्रपौरुषी का समय वहां भिक्षा वह भी भिन्नपिण्ड (घृत आदि से मिश्रित गलित पिण्ड) का समय है। दूसरी दिशा (पश्चिम) में घृत, दुग्ध आदि का भोजन करे। अथवा जैसे समाधि हो, वैसे क्षीर आदि का की उपलब्धि पर्याप्त है किन्तु अर्थपौरुषी का समय वहां भोजन करे। भिक्षा का समय है। ९. आगाढ क्षेत्र तीसरी (उत्तर) दिशा में सूत्र पौरुषी और अर्थ पौरुषी आगाढं सप्तधा, तद्यथा-द्रव्यागाढं, क्षेत्रागाढं, निर्बाध हो सकती है। वहां मध्याह्न का समय भिक्षा का समय कालागाढं, भावागाढं, पुरुषागाढं, चिकित्सागाढं, सहाया- है। चतुर्थ (दक्षिण) दिशा में पूर्वाह्न, मध्याह्न और अपराह्न तीनों गाढं। तत्र द्रव्यागाढमेषणीयं द्रव्यं तत्र न लभ्यते। क्षेत्रागाढं ही कालों में बाल, वृद्ध और ग्लान प्रायोग्य भक्त-पान की नाम तदतीव खुलक्षेत्रम्, स्वल्पभैक्षदायकमित्यर्थः ।काला- प्राप्ति याचित अथवा अयाचित अवस्था में हो सकती है। गाढं तत् क्षेत्रं न ऋतुक्षमम्। भावागाढं ग्लानादिप्रायोग्यं तत्र शिष्यों से क्षेत्र की अवगति हो जाने पर आचार्य शिष्यों न लभ्यते। पुरुषागाढमाचार्यादिपुरुषाणां तदकारकम्। से पूछते हैं-आर्यो! बोलो, हमें किस दिशा में जाना चाहिए। चिकित्सागाढं वैद्यास्तत्र न प्राप्यन्ते।सहायागाढं सहायास्तत्र जो औदरिक-प्रथम प्रहर में पर्याप्त आहार करना चाहते न सन्ति । हैं और जो अनुयोगग्रहण में एकनिष्ठ हैं, वे प्रथम दिशा की आगाढ क्षेत्र के सात प्रकार हैं अनुमोदना करते हैं। अर्थपौरुषी के लिए वह क्षेत्र निर्बाध है। १. द्रव्यागाढ-एषणीय द्रव्य की अप्राप्ति वाला क्षेत्र। जो सूत्रपौरुषी के इच्छुक हैं, वे दूसरी दिशा में जाना २. क्षेत्रागाढ-अल्प भिक्षादायक क्षेत्र। चाहते हैं। आचार्य चतुर्थ दिशा में जाना चाहते हैं वहां तीनों ३. कालागाढ-ऋतु के प्रतिकूल क्षेत्र। कालों में रुग्ण-बाल-वृद्ध प्रायोग्य आहार-पानी मिल सकता भास 18 की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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