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________________ आगम विषय कोश - २ सूत्र और अर्थपौरुषी में भी कोई बाधा नहीं है। इन सबमें आचार्य ही प्रमाण होते हैं। गण - परस्पर सापेक्ष अनेक कुलों का समुदाय । गीतत्थउज्जुयाणं, गीतपुरोगामिणं चऽगीताणं । एसो खलु भावगणो, नाणादितिगं च जत्थत्थि ॥ (व्यभा १३६७) १९५ जहां गीतार्थ और गीतार्थनिश्रित अगीतार्थ अपनी शक्ति का गोपन न करते हुए सदा संयम में प्रवर्तमान रहते हैं, वह गण वास्तव में गण है । अथवा जहां ज्ञान, दर्शन और चारित्र - ये तीनों प्रवर्धमान हैं, वह वास्तविक गण है । * गणिविहीन गण नही द्र संघ गणधर - जो आचार्य-तुल्य होता है तथा जो आचार्य के आदेश से साधु संघ को लेकर पृथक् विहरण करता है। गणधर एक पद है। द्र संघ द्र स्थविरकल्प * गणधर : साध्वीवर्ग-व्यवस्थापक. गणावच्छेदक - जो गण के कार्य के विषय में चिन्तन करता रहता है। आचार्य आदि पंचक में से एक । द्र संघ द्र आचार्य द्र क्षेत्रप्रतिलेखना * गणावच्छेदक : न्यूनतम पर्याय श्रुत * गणावच्छेदक द्वारा क्षेत्र प्रतिलेखना * गणावच्छेदक : जिनकल्प के लिए अधिकृत द्र जिनकल्प गणिसम्पदा - आचार्य की संपदा । आचार्य के अतिशय । १. गणिसम्पदा के प्रकार • आचारसम्पदा : संयमध्रुवयोग आदि * आचारविनय : सामाचारी में नियोजन द्र आचार्य २. श्रुतसम्पदा : घोषविशुद्धि आदि ३. शरीरसम्पदा : आरोह- परिणाह आदि * आचार्य सुलक्षण हो ४. वचनसम्पदा के प्रकार ५ वाचना सम्पदा : उद्देशन आदि * वाचना से महानिर्जरा ६. मतिसम्पदा : अवग्रह आदि Jain Education International द्र आचार्य द्रवैयावृत्त्य ● अवग्रह- ईहा - अवायमति : क्षिप्र, बहु • धारणामति के प्रकार ७. प्रयोगसम्पदा : परिषद्परिज्ञान आदि ८. संग्रहपरिज्ञा : क्षेत्र आदि की व्यवस्था १. गणिसम्पदा के प्रकार ...अट्ठविहा गणिसंपदा पण्णत्ता, तं जहा - आयारसंपदा सुतसंपदा सरीरसंपदा वयणसंपदा वायणासंपदा मतिसंपदा पओगसंपदा संगहपरिण्णा णामं अट्ठमा ॥ (दशा ४ / ३ ) गणसंपदा के आठ प्रकार हैं १. आचारसंपदा २. श्रुतसंपदा ३. शरीरसंपदा ४. वचनसंपदा गणिसम्पदा ५. वाचनासंपदा ६. मतिसंपदा ७. प्रयोगसंपदा ८. संग्रहपरिज्ञा । • आचारसम्पदा : संयमधुवयोग आदि ...आयारसंपदा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - संजम - धुवजोगजुत्ते यावि भवति, असंपग्गहियप्पा, अणियतवित्ती, वुडसीले यावि भवति । ...... ''असंपग्गहितप्पत्ति - अनुत्सेकः, अहमाचार्यो बहुश्रुतस्तपस्वी वा सामायारिकुसलो वा, जात्यादिमदेहि वा अमत्तो । अणिएतवत्तित्ति गामे एगरातिए नगरे पंचरातिए अन्न अन्नाए भिक्खायरियाए अडति चउत्थादीहि वा एषणाविसेसेहि वा जतति । विसुद्धसीलो निहुतसीलो अबालसीलो अचंचलसीलो मज्झत्थसील इत्यर्थः । (दशा ४/४ चू) ......चरणं तु संजमो तू, तहियं निच्वं तु उवउत्तो ॥ आयरिओ उ बहुस्सुत, तवस्सि जच्चादिगेहि व मदेहिं । जो होति अणुस्सित्तो, संपग्गहितो भवे सो उ ॥ अणिययचारि अणिययवित्ती अगिहितो वि होति अणिकेतो। निहुयसभाव अचंचल, नातव्वो वुडसील त्ति ॥ (व्यभा ४०८४-४०८६) For Private & Personal Use Only आचारसंपदा के चार प्रकार हैं १. संयम ध्रुवयोगयुक्तता - चारित्र में सदा समाधियुक्त होना । www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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