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________________ आगम विषय कोश-२ १९३ क्षेत्रप्रतिलेखना नहीं करते, क्योंकि नित्यवास के दोष से बचने के लिए गुरु जहां पीठ, फलक, शय्या और संस्तारक सुलभ हैं, प्रासुक का अन्यत्र विहार आवश्यक होता है। और यथा-एषणीय भिक्षा सुलभ है, जहां बहुत से श्रमण, ७. निर्दोष उपाश्रय की गवेषणा ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र और भिखारी आये हए नहीं हैं और न जेहिं कया उ उवस्सय, समणाणं कारणा वसहिहेउं। आयेंगे, मार्ग जनाकीर्ण नहीं है-प्राज्ञ मुनि के लिए गमन और परिपुच्छिया सदोसा, परिहरियव्वा पयत्तेणं॥ प्रवेश सुगम है, प्राज्ञ मुनि के वाचना, प्रच्छना, परिवर्तना, ..."परिपुच्छिय निहोसा, परिभोत्तुं जे सुहं होइ॥ अनुप्रेक्षा, धर्मानुयोगचिन्ता के लिए उपयुक्त स्थान है। वह जेहिँ कया पाडिया, समणाणं कारणा वसहिहेळं। इस प्रकार जानकर वैसे गांव यावत् राजधानी में वर्षाकाल में परिपुच्छिया सदोसा, परिहरियव्वा पयत्तेणं॥ संयमपूर्वक रहे। .."परिपुच्छिय निदोसा, परिभोत्तुं जे सुहं होइ॥ ० जघन्य-मध्यम-उत्कृष्ट वर्षाक्षेत्र (बृभा १४९०-१४९३) चतुग्गुणोववेयं तु, खेत्तं होति जहन्नगं। क्षेत्र में पहुंचकर मुनि पहले उपाश्रय की गवेषणा करते तेरसगुणमुक्कोसं, दोण्हं मज्झम्मि मज्झिमं॥ हैं। गृहस्थों से पृच्छा करके वे यह जान लेते हैं कि यह उपाश्रय महती विहारभूमी, वियारभूमी य सुलभवित्ती य। श्रमणों (तापस, शाक्य, परिव्राजक, आजीवक और निर्ग्रन्थ) के सुलभा वसधी य जहिं, जहण्णगं वासखेत्तं तु॥ रहने के लिए गृहस्थ द्वारा निर्मित है। मुनि उसे सदोष जानकर चिक्खल्ल पाण थंडिल, वसधी गोरस जणाउले वेज्जे। प्रयत्नपूर्वक उस उपाश्रय का परिहार करते हैं। मुनि पृच्छा से ओसधनिययाधिपती, पासंडा भिक्ख-सज्झाए॥ यह जान लेते हैं कि यह उपाश्रय निर्ग्रन्थ को छोड़कर शेष (व्यभा ३८९७-३८९९) श्रमणों के रहने के लिए गृहस्थ द्वारा निर्मित है। मुनि उसे क्षेत्रप्रत्युपेक्षक विधिपूर्वक क्षेत्र की जानकारी करते हैं। क्षेत्र निर्दोष जानकर सुखपूर्वक उसका उपभोग करते हैं। केतीन प्रकार हैं मुनि पृच्छा से यह जान लेते हैं कि मुनि के निमित्त १. जघन्य क्षेत्र-यह क्षेत्र चार गुणों से युक्त होता हैइस उपाश्रय में उपलेपन-धवलन आदि किया गया है। मुनि १. विहारभूमि विशाल हो। २. विचारभूमि की सुविधा हो। उसे उत्तरगुणों से अशुद्ध जानकर प्रयत्नपूर्वक उसका परिहार ३. भिक्षा सुलभ हो। ४. वसति सुलभ हो।। करते हैं। मुनि पृच्छा से यह जान लेते हैं कि निर्ग्रन्थ को मुनि पृच्छा स यह जान लत ह कि निग्रन्थ को २. उत्कृष्ट वर्षाक्षेत्र-जो तेर स्त हो- १. पंकबहुल छोड़कर शेष श्रमणों के निमित्त उपाश्रय में उपलेपन-धवलन न हो। २. सम्मूर्छिम जीवों का उपद्रव न हो। ३. स्थंडिलभूमि आदि किया गया है। मुनि उसे उत्तरगुणों से निर्दोष जानकर एकांत में तथा महास्थंडिलभूमि ईप्सित दिशा में हो। ४. वसति सुखपूर्वक उसका उपभोग करते हैं। सुलभ हो। ५. गोरस की प्रचुरता हो। ६. जनाकुल हो तथा ८. वर्षावासयोग्य क्षेत्र जनता भद्र हो। ७. चिकित्सक भद्र हो। ८. औषध सुलभ _ ...."महती विहारभूमी, महती वियारभूमी, सुलभेजत्थ हो। ९. अन्न-भण्डार प्रचुर हों। १०. शासक भद्र हों। पीढ-फलग-सेज्जा-संथारए, सुलभे फासुए उंछे अहेस ११. अन्य- तीर्थिक कलहकारी न हों। १२. भिक्षा सुलभ णिज्जे, णो जत्थ बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण हो। तृतीय पौरुषी में पर्याप्त भिक्षा मिलती हो और अन्य वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य, अप्पाइण्णा वित्तो पौरुषियों में भी वह प्राप्त हो।१३. वसति में और अन्यत्र भी पण्णस्स निक्खमणपवेसाए, पण्णस्स वायण-पुच्छण स्वाध्याय की सुविधा हो। परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओग-चिंताए।सेवंणच्चा तहप्पगारं ३. मध्यम क्षेत्र-मध्यम गुणों वाला क्षेत्र । गामं वा जाव रायहाणिं वा, तओ संजयामेव वासावासं ___० गोरसभावित क्षेत्र उत्कृष्ट क्यों? उवल्लिएज्जा॥ (आचूला ३/३) नणु भणिय रसच्चाओ, पणीयरसभोयणे य दोसा उ। जहां विशाल विहारभूमि और विशाल विचारभूमि है, किं गोरसेण भंते!, भण्णति सुण चोयग! इमं तु॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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