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________________ उपधि १२८ आगम विषय कोश-२ मांगा, जो इस प्रक्रिया से त्रस्त नहीं हुए थे। स्वामी ने १. उद्दिष्ट वस्त्र-गुरु के समक्ष प्रतिज्ञात वस्त्र को गृहस्थों से सोचा-ये दोनों अश्व समस्त लक्षणों से युक्त हैं। इन्हें दे मांगना। देने पर शेष क्या रहेगा? इसलिए उससे कहा-इन दो २. प्रेक्षावस्त्र-अवलोकन करते हुए वस्त्र की याचना करना। अश्वों के अतिरिक्त तुम दो, चार, दस अश्व ले लो। ३.अन्तरावस्त्र-गृहस्थ पुरातन अंतरीय-उत्तरीय वस्त्रयुगल को अश्वरक्षकं अपनी मांग पर अडिग रहा। अश्वस्वामी ने स्थापित करना चाहता है, किन्तु अभी तक स्थापित नहीं सोचा-यदि मैं इसका अपनी कन्या से विवाह कर इसे किया है और नया वस्त्रयुगल धारण कर लिया है-इस घरजामाता बनाऊं तो ये अश्व यहीं रह जाएंगे। उसने अपने अंतराल में उस वस्त्र की याचना करना। मन की बात अपनी पत्नी से कही। वह ऐसा करना नहीं ४. उज्झितधर्मा-परित्यागार्ह वस्त्र की गवेषणा करना। चाहती थी। तब अश्वस्वामी ने उसे समझाने के लिए एक अभिग्रह (प्रतिज्ञाविशेष) की भाषा में इन्हें इस प्रकार दृष्टांत कहा-एक बढ़ई ने अपनी कन्या का विवाह अपने कहा जा सकता हैभानजे से कर उसे गृहजामाता के रूप में घर में ही रखा। १. मैं उद्दिष्ट (नामोल्लेखपूर्वक संकल्पित) वस्त्र की याचना वह आलसी था। पत्नी के कहने पर वह कुठार लेकर करूंगा। जंगल में जाता परन्तु काष्ठ बिना लिए ही लौट आता। २. मै दृष्ट वस्त्रों की याचना करूंगा। छह महीने बीत गए। एक दिन उसे 'कृष्णचित्रकाष्ठ' ३. मैं शय्यातर के द्वारा भुक्त वस्त्रों की याचना करूंगा। प्राप्त हुआ। उसने उससे धान्य मापने का कुलक बनाया और ४. मैं छोड़ने योग्य वस्त्रों की याचना करूंगा। उसे एक लाख मद्राओं में बेचने के लिए अपनी पत्नी को ये वस्त्र की चार प्रतिमाएं-ग्रहण विधियां हैं। बाजार में भेजा। एक लाख मूल्य में उसे कौन खरीदे ? अंत में गच्छवासी (स्थविरकल्पी) मुनि के लिए ये चारों एक बुद्धिमान् ग्राहक वणिक् आया। वह पारखी था। उस प्रतिमाएं विहित हैं। जिनकल्पी मुनि के लिए यावज्जीवन धान्यमापक पात्र का यह गुण था कि उससे जो धान्य मापा अंतिम दो प्रतिमाएं विहित हैं, उनमें से भी एक का अभिग्रह जाता, वह कम नहीं होता था। उस वणिक् ने लाख मुद्राएं होता है (यदि तीसरी प्रतिमा का ग्रहण होता है तो चौथी का देकर पात्र खरीद लिया। वर्धकी के जामाता ने अपने कुटुम्ब नहीं होता और यदि चौथी का ग्रहण होता है तो तीसरी का को धन-धान्य से समृद्ध बना दिया। नहीं होता)। ११. वस्त्रैषणा की चार प्रतिमाएं १२. वस्त्र प्राप्ति के लिए निवेदन ..."भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं जं जस्स नत्थि वत्थं, सो उ निवेएड तं पवत्तिस्स। एसित्तए।"पढमा पडिमा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं सो वि गुरूणं साहइ, निवेइ वावारए वा वि॥ जाएज्जा ॥""दोच्चा पडिमा....पेहाए वत्थं जाएज्जा....॥ (बृभा ६१५) ""तच्चा पडिमावत्थं जाणेज्जा, तंजहा-अंतरिज्जगंवा जिसके पास जो वस्त्र नहीं है, वह उसकी प्राप्ति के उत्तरिज्जगंवा"॥"चउत्था पडिमा"उज्झियधम्मियं वत्थं लिए प्रवर्तक को निवेदन करता है। प्रवर्तक आचार्य को जाएज्जा"॥ (आचूला ५/१६-२०) कहता है। तब आचार्य आभिग्रहिक मुनि से (जिसने समस्त गच्छ के लिए वस्त्र-पात्रों की पूर्ति करने का अभिग्रह ले रखा उद्दिसिय पेह अंतर, उज्झियधम्मे चउत्थए होइ। हो) वस्त्र लाने के लिए कहते हैं। यदि आभिग्रहिक मुनि न चउपडिमा गच्छ जिणे, दोण्हऽग्गहऽभिग्गहऽन्नयरा॥ हो, तब आचार्य वस्त्रार्थी मुनि से वस्त्र की गवेषणा करने के __ (बृभा ६०९) लिए कहे और यदि वह लाने में समर्थ न हो तो दूसरे मुनि मुनि प्रतिमाचतुष्टयी से वस्त्र की एषणा करे- को वस्त्र-गवेषणा के लिए कहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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