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________________ आगम विषय कोश - २ २. बाह्य - शरीर द्वारा अगृहीत द्रव्यों का परिणाम । शीतोष्णता के आधार पर स्वाभाविक या पारिणामिक परिणमन के दो प्रकार हैं ११३ १. आगंतुक - असदृश वस्तु के मिलने से जिसका पर्याय परिवर्तित हो जाता है। जैसे पानी शीत होता है लेकिन अग्नि या सूर्य के ताप से वह उष्णता को प्राप्त हो जाता है। द्रव्यांतर के संयोग से -जैसे अग्नि, जल आदि । काल से-जैसे ग्रीष्म, हेमन्त आदि। इनके निमित्त से उष्ण द्रव्य शीतता को और शीत द्रव्य उष्णता को प्राप्त हो जाते हैं। २. तदुद्भव - जिस द्रव्य के शीत आदि परिणाम स्वाभाविक होते हैं। यथा- हिम स्वभाव से शीत होता है। तापोदक स्वभाव से ही उष्ण होता है । ४. पुलाक आहार के प्रकार तिविहं होइ पुलागं, धण्णे गंधे य रसपुलाए य।'' निप्फावाई धन्ना, गंधे वाइ-लंडु-लसुणाई । खीरं तु रसपुलाओ, चिंचिणि दक्खारसाईया ॥ (बृभा ६०४८, ६०४९) पुलाक के तीन प्रकार हैं १. धान्य पुलाक - वल्ल, चने आदि । २. गंध पुलाक - मद्य, प्याज, लहसुन आदि । ३. रस पुलाक - क्षीर, अम्लिका रस, द्राक्षा रस आदि । ( धान्यपुलाक सेवन से वायुप्रकोप, गंधपुलाक से उन्मत्तता तथा शरीर से वायनिस्सरण, रसपुलाक से अतिसार आदि रोग उत्पन्न होते हैं। यहां पुलाक का अर्थ है असार ।) ५. कवल-परिमाण एवं ऊनोदरी तप अट्ठ कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे अप्पाहारे । बारस कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे अवड्डोमोयरिए । सोलस कुक्कुडिअंडगपमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे दुभागपत्ते । चडवीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे ओमोयरिए। एगतीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे किंचूणोमोयरिए । बत्तीसं कुक्कुडिअंडगप्पमाणमेत्ते कवले आहारं आहारे Jain Education International आहार माणे समणे निग्गंथे पमाणपत्ते। एत्तो एगेण वि घासेणं ऊणगं आहारं आहारेमाणे समणे निग्गंथे नो पकामभोइ त्ति वत्तव्वं सिया ॥ (व्य ८/१७) निययाहारस्स सया, बत्तीसइमो उ जो भवे भागो । तं कुक्कुडिप्पमाणं, नातव्वं बुद्धिमंतेहिं ॥ कुच्छियकुडी तु कुक्कुडि, सरीरगं अंडगं मुहं तीए । जायति देहस्स जतो, पुव्वं वयणं ततो सेसं ॥ थलकुक्कुडिप्पमाणं, जं वाणायासिते मुहे खिवति। अयमन्नो तु विगप्पो, कुक्कुडिअंडोवमे कवले ॥ (व्यभा ३६८२-३६८४) मुर्गी के अण्डे जितने (अपने मुखप्रमाण) आठ कवल खाने वाला श्रमण निर्ग्रथ अल्पाहारी, बारह कवल आहार करने वाला अपार्धअवमौदर्य, सोलह ग्रास खाने वाला अर्धअवमौदर्य, चौबीस ग्रास खाने वाला अवमौदर्य तथा इकतीस ग्रास खाने वाला किंचित् ऊनअवमौदर्य होता है। बत्तीस कवल आहार करने वाला श्रमण निर्ग्रथ प्रमाणप्राप्त आहारी होता है। इससे एक भी ग्रास न्यून खाने वाला प्रकामभोजी नहीं कहलाता । कुक्कुटी अण्डकप्रमाण- जिसका जितना आहार है, उतने आहार का बत्तीसवां भाग कुक्कुटी अण्डक का प्रमाण जानना चाहिए। अथवा कुक्कुटी का अर्थ है शरीर और अण्डक का अर्थ है। मुख । चित्र बनाते समय या गर्भोत्पत्तिकाल में सर्वप्रथम शरीर का मुख भाग निष्पन्न होता है, इसलिए मुख को अण्डक कहा गया है। कवलप्रक्षेप के लिए मुख खोलने पर उसमें जो आकाश होता है, वह स्थल कहलाता है। जितने प्रमाण का कवल मुख में रखने पर मुख विकृत नहीं होता, वह स्थल कुक्कुटीअण्डकप्रमाण है - यह कुक्कुटी अण्डकोपम कवल का वैकल्पिक अर्थ है। ६. प्रकाम - निकामभोजी कौन ? छम्मासखवणंतम्मि, सित्थादहा लंबणं । तत्तो लंबणवड्डीए, जावेक्कतीस संथरे ॥ एक्कमेक्कं तु हावेत्ता, दिणं पुव्वेक्कमेव उ। दिणे दिणे उ सित्थादी, जावेक्कतीस संथरे ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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