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________________ आहार ११२ पदार्थ क्षुधा को सर्वथा नहीं मिटा सकते, फिर भी वे आहार में गिने जाते हैं। इसी प्रकार पानी में कपूर आदि, फली में राई आदि, सूंठ में गुड़ आदि संयुक्त होते हैं। यद्यपि ये अकेले भूख नहीं मिटाते, परन्तु भोजन के उपकारी होने के कारण ये भी आहार में माने जाते हैं। अथवा क्षुधार्त्त व्यक्ति मिट्टी आदि को पेट में डालता है, वह भी आहार ही है। औषधि आहार भी होती है और अनाहार भी । शर्करा आहार है। सर्पदंश में खिलाई जाने वाली मृत्तिका आदि औषधि अनाहार है। (मांस शब्द की अर्थमीमांसा - आयुर्वेदीय ग्रंथों में छाल के लिए त्वचा और गूदे के लिए मांस शब्द का प्रयोग किया जाता है। अष्टांग संग्रह ( ८ / १६८) में भिलावे के गूदे के लिए मांस शब्द का प्रयोग किया गया है भल्लातकस्य त्वग् मांसं बृंहणं स्वादु शीतलम् ॥ आयुर्वेदीय ग्रंथों में गूदे के लिए मांस शब्द का प्रयोग अपवादस्वरूप नहीं है। यह एक वनस्पतिशास्त्रीय सामान्य प्रयोग है। कैयदेव निघण्टु (श्लोक २५५, २५६ औषधिवर्ग) में भी गूदे के लिए मांस शब्द का प्रयोग मिलता हैउष्णवात-कफ-श्वास-कास- तृष्णा- वमिप्रणुत । तस्य त्वक् कटुतिक्तोष्णा, गुर्वी स्निग्धा च दुर्जरा ॥ कृमिश्लेष्मानिलहरः मांसं स्वादु हिमं गुरु । बृंहणं श्लेष्मलं स्निग्धं पित्तमारुतनाशनम् ॥ वनस्पतिशास्त्र में मांसल फल का मतीरे के अर्थ में प्रयोग हुआ है - मांसलफलः कालिन्दी । अनेक शब्द ऐसे हैं, जिनका प्रयोग प्राणिशास्त्र और वनस्पतिशास्त्र - दोनों में समान रूप हुआ है। कुक्कुट ..... मांस का अर्थ चोपतिया शाक है । - जैनभारती, नवंबर २००१, आचार्य श्री महाप्रज्ञ के 'मांसाहार : एक विवेचना' लेख से उद्धृत) सक्कर- घत- गुलमीसा, अगंठिमा खज्जूरा व तम्मीसा । सत्तू पण्णागोवा, घत गुलमिस्सो खरेणं वा ॥ थोवा विहति खुहं, न य तण्ह करेंति एते खज्जता ।" (बृभा ३०९३, ३०९४) Jain Education International आगम विषय कोश - २ शर्करा और घी अथवा गुड़ और घी से मिश्रित कदली फल अथवा गुड़ और घी से मिश्रित खर्जूर या सक्तू अथवा घी - गुड़ मिश्रित पिण्याक, घी के अभाव में खरतेल से मिश्रित पिण्याक – इनको थोड़ी मात्रा में खाने पर भी भूख मिट जाती है और प्यास नहीं सताती । २. आहार द्रव्य : शीत-उष्ण - परिणामी दव्वं तु उण्हसीतं, सीउण्हं चेव दो वि उण्हाई । दुण्णि वि सीताइँ, चाउलोद तह चंदण घते य ॥ आयाम अंबकंजिय, जति उसिणाणुसिण तो विवागेवी । उसिणोदग पेज्जाती, उसिणा वि तप्णुं गता सीता ॥ सुत्ताइ अंबकंजिय- घणोदसी तेल्ल-लोण - गुलमादी । सीता वि होंति उसिणा, दुहतो वुण्हा व ते होंति ॥ (बृभा ५९०२-५९०४) द्रव्य के चार प्रकार हैं - १. उष्ण शीत-शीत परिणाम वाले उष्ण द्रव्य । उष्णोदक, पेया आदि द्रव्य उष्ण होने पर भी शरीरगत होने पर शीत हो जाते हैं। २. शीत उष्ण - मदिराखोल, अम्लकांजी, अम्ल घनविकृति, अम्लतक्र, तेल, लवण, गुड़ आदि द्रव्य शीत होने पर भी परिणामतः उष्ण होते हैं । ३. उष्ण उष्ण-अम्लकांजी आदि द्रव्य यदि उष्ण हैं तो वे परिणाम में भी उष्ण ही होते हैं। ४. शीत शीत - चावल, चन्दन, घृत आदि शीत द्रव्य शीतपरिणामी हैं । ३. द्रव्य परिणमन के प्रकार परिणामो खलु दुविहो, कायगतो बाहिरो य दव्वाणं । सीओसिणत्तणं पि य, आगंतु तदुब्भवं तेसिं ॥ साभाविया व परिणामिया व सीतादतो तु दव्वाणं । असरिससमागमेण उ, णियमा परिणामतो तेसिं ॥ सीया वि होंति उसिणा, उसिणा वि य सीयगं पुणरुवेंति । दव्वंतरसंजोगं, कालसभावं च आसज्ज ॥ (बृभा ५९०५-५९०७) द्रव्य - परिणाम के दो प्रकार हैं- १. कायगत - शरीर द्वारा गृहीत द्रव्यों का शीत या उष्ण परिणाम । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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