SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 675
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक ८. साधु और श्रावक में अंतर संति गेहि भिक्खूहि, गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थे हि य सव्वेहि, साहवो संजमुत्तरा ॥ (उ ५।२० ) कुछ भिक्षुओं से गृहस्थों का संयम प्रधान होता है । किन्तु साधुओं का संयम सब गृहस्थों से प्रधान होता है । मासे मासे तु जो बालो कुसग्गेण तु भुंजए । न सो सुक्खायधम्मस्स कलं अग्धइ सोलसि ॥ की ( उ ९।४४ ) कोई बाल (गृहस्थ ) मास मास तपस्या के अनन्तर कुश की नोक पर टिके उतना सा आहार करे तो भी वह सु-आख्यात धर्म चारित्र धर्म की सोलहवीं कला को भी प्राप्त नहीं होता । तथा च वृद्धसम्प्रदायः - एगो सावगो साहुं पुच्छति - सावगाणं साहूणं किमंतरं ? साहुणा भण्णति सरिसवमंदरंतरं ततो सो आउलीहूओ पुणो पुच्छति कुलिगीणं सावगाण य किमंतरं ?, तेण भण्णति--तदेव सरिसवमंदरंतरं ति, ततो समासासितो । में देसेक्सविरया समणाणं सावगा सुविहियाणं । जेसि परपासंडा सतिमपि कलं न अग्घंति ।। ( उशावृ प २५० ) एक श्रावक ने साधु से पूछा -- श्रावक और साधु कितना अन्तर है ? साधु ने कहा- 'सरसों और मन्दर पर्वत जितना ।' तब उसने पुनः आकुल होकर पूछा - कुलिंगी ( वेषधारी) और श्रावक में कितना अन्तर है ? साधु ने कहा - वही, सरसों और मन्दर पर्वत जितना । उसे समाधान मिल गया । सुविहित आचार वाले मुनियों के श्रावक देशविरत | कुतीर्थिक उनकी सौवीं कला को भी प्राप्त नहीं होते होते. । अंतर के पांच बिन्दु - तस्स पंचसमियत्तणं पित्तिरियं ण आवकहियं, साहुस्स पुण आवक हितं । ........सिक्खा दुविहा – आसेवणसिक्खा । साहू आसेवणं सिक्खं दसविहचक्क - बालसामायारि सव्वं सव्वकालं अणुपालेइ, सावतो देसं इत्तिरियं अणुपालेति । गहणसिक्खं साहू जहष्णेणं अट्ठपव मायातो सुत्तमवि अत्थतोवि उक्कोसेण दुवाल संगाणि । सावगस्स जहणेणं तं चेव उक्कोसेणं छज्जीवणिकायं सुत्ततोवि अत्थओऽवि पिडेसणज्भवणं ण सुत्ततो, अत्थतो पुण उल्लावेण सुणदि । Jain Education International ६३० साधु और श्रावक में अन्तर बंधति साधु सत्तविहं वा अदुविहं वा छव्विहं वा एगविहं वा अबर्द्धतो वा उवासतो सत्त वा अट्ठ वा । वेदन्ति साहवो सत्त वा अट्ठ वा चत्तारि वा सावतो अट्ठ वेदेति । पडिवत्तीए साहू नियमा रातीभोयणवेरमणछट्टाणि पंच महव्वयाणि, सावगो एगं वा २-३-४-५ अहवा साधू सामातियं एक्कसि पडिवन्नो, सावतो पुणो पुणो पडिवज्जति । साहुस्स एगंमि वते भग्गे सव्वाणि भज्जति सावगस्स एवं चैव भज्जति । जहणेणं सोधम्मे उक्कोसेणं सावगस्स अच्चुते, साहुस्स जहणणं सोहम्मे उक्कोसेणं सव्वट्टसिद्धी ।'' गतिपि पहुच्च साधू पंचमंपि गति गच्छति । ( आवचू २ पृ ३००, ३०१ ) ..... भिक्खाए वा गिहत्थे वा, सुब्बए कम्मई दिवं ॥ (उ ५।२२) अविराहियसामण्णस्स साहुणो, सावगस्स य जहण्णो । उववातो सोहम्मे भणितो तेलोक्कदंसीहि || ( उशावृप २५१ ) समिति - सामाचारी- साधु के समिति यावत्कंथिक होती है। और श्रावक के इत्वरिक । साधु दसविध चक्रवाल सामाचारी का सम्पूर्ण रूप से सदा पालन करता है । श्रावक उसका देशतः कदाचित् पालन करता है । श्रुत अध्ययन - साधु जघन्यतः आठ प्रवचनमाता का का सूत्रतः और अर्थत: तथा उत्कृष्टत: द्वादशांग अध्ययन करता है । श्रावक जघन्यतः और उत्कृष्टत: षड्जीवनिका के सूत्र और अर्थ को पढ सकता है । पिण्डेषणा अध्ययन को सूत्रतः नहीं पढ सकता किंतु उसका अर्थ सुन सकता है। कर्मबंध और वेदन साधु के चार प्रकार का कर्मबंध हो सकता है- -- सात-आठ कर्मों का, छह कर्मों का ( मोह और आयुष्य वर्जित), एक कर्म ( सातवेदनीय) का अथवा वह अबंध भी होता है। श्रावक के सातआठ कर्मों का बंध होता है । सात-आठ कर्मों का अथवा चार कर्मों का ( केवली की अपेक्षा) वेदन करता है। श्रावक सातआठ कर्मों का वेदन करता है । प्रत्याख्यान-साधु पांच महाव्रत और रात्रिभोजनविरमण -छहों व्रत नियमतः यावज्जीवन के लिए स्वीकार करता है | श्रावक एक, दो अथवा सब व्रत स्वीकार कर सकता है। साधु एक बार सामायिक ग्रहण करता है, श्रावक पुनः पुनः ग्रहण करता है। साधु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy