SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 676
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रुतकेवली श्रुतज्ञान के एक व्रत का भंग होने पर सभी व्रतों का भंग हो ६. श्रुत के एकार्थक जाता है। श्रावक के एक व्रत का भंग होने पर एक | ७. श्रतज्ञान के प्रकार ही व्रत का भंग होता है, सबका नहीं। ८. अक्षरश्रुत की परिभाषा गति-भिक्षु हो या गृहस्थ, यदि वह सुव्रती है तो स्वर्ग | ० रूढि से वर्ण ही अक्षर में जाता है । जिसने संयम की विराधना नहीं की, ९. अक्षरश्रुत के प्रकार वैसा आराधक साधु जघन्यत: सौधर्मकल्प और • संज्ञाक्षर उत्कृष्टतः सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होता है • व्यञ्जनाक्षर अथवा पांचवीं गति-मोक्ष में जाता है। श्रावक • लब्ब्य क्षर जघन्यतः सौधर्मकल्प और उत्कृष्टत: अच्युतकल्प १०. लम्ब्यक्षर के भेद . लब्ब्यक्षर और संज्ञी-असंज्ञी जीव में उत्पन्न होता है। • एकेन्द्रिय में लब्ध्यक्षर (भावश्रुत) श्रुतकेवली-चतुर्दशपूर्वी। ११. अक्षरों के संयोग अनन्त श्रुतज्ञानी चेहाभिन्नदशपूर्वधरादिश्रुतकेवली परि- १२. अकार के स्व-पर पर्याय गृह्यते, तस्यैव नियमतः श्रुतज्ञानबलेन सर्वद्रव्यादिपरि- १३. एक का ज्ञान : सर्व का ज्ञान ज्ञानसम्भवात् । (नन्दीमवृ प २४९) | १४. अक्षर का पर्यवपरिमाण १५. अनक्षर श्रुत अभिन्न दशपूर्वी यावत् श्रुतकेवली-चतुर्दशपूर्वी अपने | श्रुतज्ञान से नियमतः सब द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावों को १६. संज्ञी-असंज्ञी श्रुत * कालिक्युपदेश (दीर्घकालिको) (. मन) जानते हैं। ० हेतूपदेश श्रुतकेवली प्राणियों के अतीत और अनागत के संख्या • दृष्टिवादोपदेश तीत भवों को जानते हैं। वे उत्कृष्ट बहुश्रुत होते हैं। * संज्ञा के स्वामी (द्र. संज्ञा) (द्र. बहुश्रुत) १७. सम्यक्-मिथ्याश्रुत वे अनेक अतिशयों से सम्पन्न होते हैं। (द्र. पूर्व) • सम्यक्-मिथ्या श्रुत के अधिकारी श्रुतज्ञान-शब्द, शास्त्र, संकेत, प्रकम्पन आदि के ___० सम्यक्-मिथ्या श्रुत के हेतु माध्यम से होने वाला ज्ञान । १८. सादि-सपर्यवसित तथा अनादि-अपर्यवसित श्रुत १९. गमिक-अगमिक श्रुत १. श्रुतज्ञान की परिभाषा -० गमिक श्रुत के प्रकार * श्रुतज्ञान : परोक्ष ज्ञान का एक भेद (द्र. ज्ञान) * अंगप्रविष्ट श्रुत, (द्र. अंगप्रविष्ट) * द्वादशांग ही श्रुतज्ञान (द्र. अंगप्रविष्ट) * अनंगप्रविष्ट श्रुत (द. अंगबाह्य) * श्रुतधर्म तीर्थ का पर्याय (द्र. तीर्थ) २०. श्रुतकरण : बद्ध-अबद्धश्रुत २. द्रव्यश्रुत और मावश्रुत . अबधुत : पांच सौ आदेश ३. द्रव्यश्रुत-भावभुत और मतिज्ञान का संबंध २१. श्रुतज्ञान की पश्यत्ता • मति और भुत की भेदरेखा २२. प्राणीमात्र में ज्ञान की सत्ता • श्रुतज्ञान : मतिज्ञान का एक भेद २३. जघन्य श्रुत का हेतु * मति और श्रुत में साधम्यं २४. श्रुतज्ञान-विशुद्धि का तारतम्य (प्र. मामिनिबोधिक ज्ञान) २५. श्रुतज्ञान का महत्त्व ४. श्रुतज्ञान परार्थ * श्रुताध्ययन का उद्देश्य (. शिक्षा) ५. भुतज्ञान का विषय * श्रुतग्रहण की प्रक्रिया (द्र. शिक्षा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy