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________________ नौ कोटि प्रत्याख्यान ६२९ श्रावक ६. करूं नहीं अनुमोदूं नहीं वचन से काया से नौ कोटि प्रत्याख्यान ७. कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से वचन से नण तिविहं तिविहेणं पच्चक्खाणं सुयम्मि गिहिणो वि । ८. कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से काया से तं थूलवहाईणं न सव्वसावज्जजोगाणं । ९. कराऊं नहीं अमुमोदूं नहीं वचन से काया से । जइ किचिदप्पओयणमप्पप्पं वा विसेसियं वत्थं । ६.-करण २ योग ३, प्रतीक अंक २३, भंग ३ : १. करूं नहीं कराऊं नहीं मन से वचन से काया से । पच्चक्खेज्ज न दोसो सयंभूरमणाइमच्छ व्व ।। जो वा निक्खमिउमणो पडिमं प्रत्ताइसंतइनिमित्तं । २ करूं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से वचन से काया से पडिवज्जेज्ज तओ वा करेज्ज तिविहं पि तिविहेणं ॥ ३. कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से वचन से काया से। ७.-करण ३ योग १, प्रतीक अंक ३१, भंग ३ : __(विभा २६८६-२६८८) १. करूं नहीं कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से । भगवत्यामागमे त्रिविधं त्रिविधेनेत्यपि प्रत्याख्यान२. करूं नहीं कराऊं नहीं अनुमोदं नहीं वचन से मुक्तमगारिणः। तच्च श्रुतोक्तत्वादनवद्यमेव । तदिह ३. करूं नहीं कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं काया से। कस्मान्नोक्तं नियुक्तिकारेणेति ? तस्य विशेषविषयत्वात। ८.-करण ३ योग २, प्रतीक अंक ३२, भंग ३ : तथाहि-किल यः प्रविजिषुरेव प्रतिमां प्रतिपद्यते पुत्रादि१. करूं नहीं कराऊनहीं अनुमोदं नहीं मन से ववन से सन्ततिपालनाय स एव त्रिविधं त्रिविधेनेति करोति । तथा २. करूं नहीं कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से काया से विशेष्यं वा किञ्चिद् वस्तु स्वयम्भूरमणमत्स्यादिकं तथा ३. करूं नहीं कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं वचन से काया से। स्थूलप्राणातिपातादिकं चेत्यादि । न तु सकलसावधव्या९. करण ३ योग ३, प्रतीक अंक ३३, भंग १: पारविरमणमधिकृत्येति। ननु च निर्यक्तिकारेण स्थल र प्राणातिपातादावपि त्रिविधं त्रिविधेनेति नोक्तो विकल्पः । १. करूं नहीं कराऊ नहीं अनुमोदूं नहीं मन से त्रा (आवहाव २ पृ २१०)) वचन से काया से। इन ४९ भंगों को अतीत, अनागत और वर्तमान---- ___ आगमग्रन्थ भगवती (८५) में प्रतिपादित हैइन तीन से गुणन करने पर १४७ भंग होते हैं। इससे गृहस्थ तीन करण, तीन योग से प्रत्याख्यान कर सकता है। यह तथ्य आगमिक होने के कारण निर्दोष है। अतीत का प्रतिक्रमण, वर्तमान का संवरण और भविष्य के लिए प्रत्याख्यान होता है। आवश्यकनियुक्ति में यह तथ्य प्रतिपादित नहीं है, क्योंकि सीयालं भंगसयं पच्चक्खाणम्मि जस्स उवलद्धं । यह विशेष आपवादिक स्थितिजन्य है। वे विशेष स्थितियां सो सामाइयकुसलो सेसा सब्वे अकुसला उ ।। १. जो गृहस्थ प्रवजित होना चाहता है, किन्तु प्रत्याख्यान सम्बन्धी १४७ भंग होते हैं। जो इन सन्तान की इच्छा, अनुरोध आदि कारणों से वह तत्काल भंगों से प्रत्याख्यान करता है, वह सामायिक-कुशल है प्रवजित न होकर ग्यारहवीं उपासक प्रतिमा स्वीकार और अन्य सब अकुशल हैं। करता है, उस समय वह नवकोटि त्याग कर सकता है। २. वह अप्राप्य वस्तु का नवकोटि त्याग कर सकता होकरण तीन योग से प्रत्याख्यान है। जैसे-स्वयंभूरमणसमुद्र के मत्स्य को मारने का गिहिणा वि सव्ववज्जं दुविहं तिविहेण छिन्नकालं तं । त्याग । मनुष्यक्षेत्र से बाहर के हाथी-दांत, व्याघ्रचर्म के कायव्वमाह सब्वे को दोसो भण्णएऽणुमई ॥ उपयोग का त्याग। (विभा २६८३) ३. वह स्थूल प्राणातिपात, स्थूल मृषावाद आदि का घर में आरम्भ-समारम्भ की अनेक प्रवृत्तियां चाल नवकोटि त्याग कर सकता है, जैसे-सिंह, हाथी आदि है और गहस्थ का अनुमोदन उनके साथ जुड़ा हुआ है, को मारने का त्याग । किन्तु वह सर्वथा सावद्ययोग का इसलिए गहस्थ सर्वसावद्ययोग का परित्याग नहीं कर त्याग नहीं कर सकता। सकता। वह दो करण, तीन योग से एक मुहर्त, दो मूहर्त ४. वह अप्रयोजनीय वस्तु का नवकोटि त्याग कर आदि तक सामायिक करता है। सकता है। जैसे--काक-मांस खाने का त्याग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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