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________________ ६२८ विरति, अणुधर्म, अगारधर्म-ये देशविरति सामायिक के पर्यायवाची हैं । श्रावक ६. श्रावक के प्रकार .....साभिग्गहा व निरभिग्गहा व ओहेण सावया दुविहा ( अवनि १५५७ ) सामान्यतः श्रावक के दो प्रकार हैं १. साभिग्रह व्रतसम्पन्न । २. निरभिग्रह – सम्यक्दर्शन सम्पन्न । दुविहतिविहेण पढमो दुविहं दुबिहेण बीयओ होइ । दुविहं एगविहेणं एगविहं चेव तिविहेणं ॥ एगविहं दुविहेणं इक्विक विहेणं छटुओ होइ । उत्तरगुण सत्तमओ अविरयओ चेव अटुमभो ॥ ( आवनि १५५८, १५५९) त्याग की तरतमता की अपेक्षा से श्रावक के आठ प्रकार हैं १. दो करण तीन योग से त्याग करने वाला । २. दो करण दो योग से त्याग करने वाला । ३. दो करण एक योग से त्याग करने वाला । ४ एक करण तीन योग से त्याग करने वाला । ५. एक करण दो योग से त्याग करने वाला । ६. एक करण एक योग से त्याग करने वाला । ७. उत्तरगुणसम्पन्न | ८. अविरत सम्यदृष्टि । ७. आवक के प्रत्याख्यान उनचास भंग करणतिगेणे क्किक्कं कालतिगे तिघणसंखियमिसीणं । सम्बं ति जओ गहियं सीवालसयं पुण गिहीणं ॥ ( विभा ३५४० ) साधु तीन योग (कृत, कारित, अनुमति) और तीन करण (मन, वचन, काया) से सर्व सावध योग (पापकारी प्रवृत्ति) का त्याग करता है। तीन को तीन से गुणन करने पर नौ भंग बनते हैं। इन नौ भंगों को अतीत, वर्तमान और अनागत- इन तीन कालों से गुणन करने पर सत्ताईस भंग बनते हैं (९×३ - २७) । ये भंग साधु = | की अपेक्षा से हैं। धावक के आंशिक प्रत्याख्यान होते हैं। इस दृष्टि से तीन योग और तीन करण से उसके उनचास भंग बनते हैं उनचास भंग (विकल्प) १. करण १ योग १, प्रतीक अंक ११, भंग ९ : Jain Education International श्रावक के प्रत्याख्यान १. करूं नहीं मन से २. करूं नहीं वचन से ३. करूं नहीं काया से ४. कराऊं नहीं मन से ५. कराऊं नहीं वचन से ६. कराऊं नहीं काया से ७. अनुमोदूं नहीं मन से ८. अनुमोदं नहीं वचन से ९. अनुमोदू नहीं काया से । २. करण १ योग २, प्रतीक अंक १२, भंग ९ : १. करूं नहीं मन से वचन से २. करूं नहीं मन से काया से ३. करूं नहीं वचन से काया से ४. कराऊं नहीं मन से वचन से ५. कराऊं नहीं मन से काया से ६. कराऊं नहीं वचन से काया से ७. अनुमोदूं नहीं मन से वचन से ८. अनुमोदूं नहीं मन से काया से ९. अनुमोदू नहीं वचन से काया से ३. करण १ योग ३, प्रतीक अंक १३, भंग ३ : १. करूं नहीं मन से वचन से काया से २. कराऊं नहीं मन से वचन से काया से ३. अनुमोदूं नहीं मन से वचन से काया से । ४. -करण २ योग १, प्रतीक अंक २१, भंग ९ : १. करूं नहीं कराऊं नहीं मन से २. करूं नहीं कराऊं नहीं वचन से ३. करूं नहीं कराऊं नहीं काया से ४. करूं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से ५. करूं नहीं अनुमोदूं नहीं वचन से ६. करूं नहीं अनुमोदूं नहीं काया से ७. कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से ८. कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं वचन से ९. कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं काया से । ५. करण २ योग २, प्रतीक अंक २२, भंग ९ : १. करूं नहीं कराऊं नहीं मन से वचन से २. करूं नहीं कराऊं नहीं मन से काया से ३. करूं नहीं कराऊं नहीं वचन से काया से ४. करूं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से वचन से ५. करूं नहीं अनुमोदूं नहीं मन से काया से For Private & Personal Use Only + www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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