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________________ अगार धर्म : श्रावक धर्म ६२३ श्रावक सीसेण एवं सरणं उवेह १. श्रावक कौन ? समागया सव्वजणेण तुब्भे । ये अभ्युपेतसम्यक्त्वाः प्रतिपन्नाणुव्रता अपि प्रतिदिवसं जइ इच्छह जीवियं वा धणं वा लोग पि एसो कुविओ डहेज्जा ।। यतिभ्यः साधूनामगारिणां चोत्तरोत्तरविशिष्टगुणप्रतिपत्ति (उ १२१२६-२८) हेतोः सामाचारी शण्वन्ति ते श्रावका: । (नन्दीमव प ४४) एक बार मुनि हरिकेशबल एक मास तप के पारणे जो सम्यग्दृष्टि हैं, जो अणव्रती हैं, जो उत्तरोत्तर के दिन भिक्षा के लिए यज्ञमण्डप में गए। वहां ब्राह्मण- विशिष्ट गुणों की प्राति के लिए प्रतिदिन यतिजनों से कुमारों ने मुनि की अवहेलना की, तब पुरोहित-पत्नी साधु और गृहस्थ की सामाचारी को सुनते हैं, वे श्रावक भद्रा ने कहा—भिक्षु का अपमान करना नखों से पर्वत हैं। को कुरेदना है, दांतों से लोहे के चने चबाना है, पैरों से २.श्रावकत्व की प्राप्ति का हेत अग्नि को रौंदना है। चरित्ताचरित्तं पुण खओवसमिते चेव, कसायट्ठगोदययह महर्षि आशीविष लब्धि से सम्पन्न है। उग्र क्खए सदुवसमे य । पच्चक्खाणकसायसंजलणचउक्कतपस्वी है । घोरव्रती और घोर पराक्रमी है। भिक्षा के । देसघातिफडगोदये णोकसायणवगस्स जहा-संभवोदये य । समय तुम इस भिक्षु को व्यथित कर पतंगसेना की भांति (आवचू १ पृ९८) अग्नि में झंपापात कर रहे हो। यदि तुम जीवन और धन उदयप्राप्त अनन्तानुबन्धी कषायचतुष्क और अप्रत्याचाहते हो तो सब मिलकर, शिर झुकाकर इस मुनि की ख्यानकषायचतुष्क का क्षय तथा विद्यमान का उपशम शरण में आओ। कुपित होने पर यह समूचे संसार को होने पर चारित्राचारित्र (देशविरत) प्राप्त होता है । भस्म कर सकता है। इसमें प्रत्याख्यानकषाय-चतुष्क और संज्वलनकषाय-चतुष्क श्रावक-सम्यग्दृष्टि । व्रत का आचरण करने के देशघाति स्पर्धकों का उदय तथा नोकषाय का यथावाला। संभव उदय रहता है। १.श्रावक कौन ? ३. अगार धर्म : श्रावक धर्म २. धावकत्व की प्राप्ति का हेतु अगारसामाइयस्स ...."अंगाणि बारसविधो सावग३. अगारधर्म : श्रावक धर्म धम्मो । (उचू पृ १३९) ० अगार सामायिक के अंग अगार सामायिक का अर्थ है-बारह प्रकार का ४. श्रावक के बारह व्रत और अतिचार श्रावक धर्म । •संलेखना व्रत (द्र. संलेखना) अगार सामायिक के अंग * श्रावक : विरताविरत गुणस्थान (इ. गुणस्थान) समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थं सम्मत्त......"पंच * श्रावक में देशविरति सामायिक (द्र. सामायिक) | अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि * देशविरति सामायिक का काल, (द्र. सामायिक) | पडिमादओ विसेसकरणजोगा। (आव परि पृ २३) स्थिति, क्षेत्र श्रावकधर्म का मूल सम्यक्त्व है। श्रावक उसका ५. देशविरति सामायिक के पर्यायवाची निरतिचार पालन करता है। वह अणुव्रत और गुणवत ६. श्रावक के प्रकार धारण करता है तथा अभिग्रह, प्रतिमा आदि विशेष ७. श्रावक के प्रत्याख्यान : उनचास भंग योगों की आराधना करता है। दो करण तीन योग से प्रत्याख्यान अगारीसामाइयंगाई सड्ढी काएण फासए ।" ० मौकोटि प्रत्याख्यान सामायिकं -सम्यक्त्वश्रुतदेशविरतिरूपं, तस्याङ्गानि८. साधु और धावक में अंतर निःशङ्कताकालाध्ययनाणुव्रतादिरूपाणि अगारिसामा* श्रावक : बालपंडित मरण (द्र. मरण) यिकाङ्गानि । (उ ५।२३ शावृ प २५१) * उपासक-प्रतिमा (द्र. प्रतिमा) अगार सामायिक के तीन प्रकार हैं---१. सम्यक्त्व * श्रावक और ध्यान (द्र. ध्यान) २. श्रुत और ३. देशविरति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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