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________________ श्रावक ६२४ श्रावक के बारह व्रत... अगार सामायिक के अंग हैं-नि:शंकता, काला- किसी पर आरोप लगाना । ध्ययन, अणवत आदि । २. रहस्याभ्याख्यान-रहस्यपूर्ण वृत्त के आधार पर ४. श्रावक के बारह व्रत और अतिचार आरोप लगाना । १: स्थूलप्राणापिपात विरमण ३. स्वदारमंत्रभेद--अपनी पत्नी के रहस्य को प्रकट करना। थलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से। ४. मृषोपदेश-मिथ्या मार्ग-दर्शन करना । पाणाइवाए दुविहे पण्ण ते, तं जहा-संकप्पओ अ आरं ५. कुटलेखकरण-जाली हस्ताक्षर और दस्तावेज भओ अ। तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए तैयार करना। पच्चक्खाइ, नो आरंभओ। थलगपाणाइवायवेरमणस्स ३. स्थूलमवत्तादान विरमण समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं जहाबंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवच्छए। थूलगअदत्तादाणं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से (आव परि २१) अदिन्नादाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सचित्तादत्तादाणे श्रमणोपासक स्थूल प्राणातिपात का प्रत्याख्यान अचित्तादत्तादाणे अ । थूलादत्तादाणवेरमणस्स समणोवासकरता है। प्राणातिपात दो प्रकार का है--संकल्पजा एणं इमे पंच अइयारा जाणियब्वा, तं जहा ---- तेनाहडे और आरम्भजा। श्रमणोपासक संकल्पजा हिंसा का तक्करपओगे विरुद्धरज्जाइक्कमणे कुडतुल-कुडमाणे जीवनपर्यन्त प्रत्याख्यान करता है, आरम्भजा हिंसा का तप्पडिरूवगववहारे। (आव परि १२१) नहीं। श्रमणोपासक स्थूल अदत्तादान का प्रत्याख्यान करता ___ स्थूल प्राणातिपात विरमण के पांच अतिचार है- है। अदत्तादान दो प्रकार का है-सचित्तअदत्तादान, १. बंध-मनुष्य, पशु आदि को गाढ बंधन से बांधना। अचित्तअदत्तादान । २. वध-लाठी आदि से प्रहार करना । स्थल अदत्तादान विरमण के पांच अतिचार हैं३. छविच्छेद-अंग-भंग करना। १. स्तेनाहृत -चोर द्वारा चुराई हई वस्तु लेना। ४. अतिभार-अतिभार लादना । २. तस्कर प्रयोग --चोरी करने में सहयोग देना। ५. भक्तपानव्यवच्छेद-भोजन-पानी (आजीविका) का ३. विरुद्धराज्यातिक्रम-राज्यनिषिद्ध वस्तुओं का विच्छेद करना। ___आयात-निर्यात करना। २. स्थूलमृषावाद विरमण ४. कूटतोल-कूटमान-झूठा तोल-माप करना। थलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ, से य ५. तत्प्रतिरूपक व्यवहार - असली वस्तु के स्थान पर मुसावाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-कन्नालीए गवालीए नकली वस्तु देना । भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे । बलगमूसावायवेर- ४. स्वदारसन्तोष मणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा, तं परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ सदारसंतोसं जहा-सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणं सदारमतभेए वा पडिवज्जइ, से य परदारगमणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहामोसुवएसे कूडलेहकरणे। (आव परि पृ २१) ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे । सदारश्रमणोपासक स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान करता संतोसस्स समणोबासएणं इमे पंच अइयारा जाणियन्वा, है । मृषावाद के पांच प्रकार हैं तं जहा - अपरिगहियागमणे १. कन्यालीक-वर-वधू संबन्धी झूठ बोलना। इत्तरियपरिगहियागमणे अणगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे । २. गवालीक-पशु संबन्धी झूठ बोलना । ३. भूमि-अलीक-भूमि संबन्धी झूठ बोलना। (आव परि पृ २२) ४ न्यासापहार-धरोहर को नकारना । श्रमणोपासक परदारगमन का प्रत्याख्यान करता है, ५. कूट साक्षी --झूठी गवाही देना। स्वदारसंतोष स्वीकार करता है । परदारगमन के दो स्थूल मृषावाद विरमण के पांच अतिचार हैं -- प्रकार हैं---१. औदारिकपरदारगमन २. वैक्रियपरदार१ सहसाभ्याख्यान ----बिना सोचे-समझे अकस्मात् गमन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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