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________________ अंगुल पुरुष होते हैं । उत्तम पुरुष की ऊंचाई एक सौ आठ (१०८) अंगुल, अधम पुरुष की ऊंचाई छयानवे ( ९६ ) अंगुल और मध्यम पुरुष की ऊंचाई एक सौ चार (१०४) अंगुल की होती है । आत्मांगुल और पाद, वितस्ति आदि एएणं अंगुलप्पमाणेणं छ अंगुलाई पाओ, दो पाया विहत्थी, दो वित्थओ रयणी, दो रयणीओ कुच्छी, दो कुच्छीओ दंडं धणू जुगे नालिया अक्खे मुसले, दो धणु सहस्साई गाउयं चत्तारि गाउयाइं जोयणं । ( अनु ३९१ ) इस अंगुल प्रमाण से छह अंगुल का पाद, दो पाद की वितस्ति, दो वितस्ति की रत्नि, दो रत्नि की कुक्षि, दो कुक्षि का दंड अथवा धनुष, युग, नालिका, अक्ष और मुसल होता है । दो हजार धनुष का गव्यूत ( एक कोस ) और चार गव्यूत का एक योजन होता है । आत्मगुल का प्रयोजन एएणं आयंगुलप्पमाणेणं जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तथा अप्पणी अंगुलेणं अगड-तलाग-दहनदी - वावी - पुक्खरिणी - दीहिया - गुंजालियाओ सरा सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ आरामुज्जाणकाणण-वण-वणसंड-वणराईओ देवकुल सभा - पवा थूभ - खाइय- परिहाओ, पागार - अट्टालय - चरिय-दार - गोपुरपासाय- घर - सरण - लेण-आवण सिंघाडग-तिग- चउक्क, चच्चर - चउम्मुह - महापह पह-सगड-रह- जाण - जुग्गगिल्लि - थिल्लि - सीय-संदमाणियाओ लोही - लोहकडाह - कडुच्छ्य-आसण-सयण- खंभ- भंड- मत्तोवगरण माईणि, अज्जकालियाई च जोयणाई मविज्जति ॥ ( अनु ३९२ ) इस आत्मांगुल प्रमाण से जिस समय जो मनुष्य होते हैं, उस समय उनके अपने अंगुल से कूप, तालाब, द्रह, नदी, बावड़ी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुञ्जालिका, सर, सर-पंक्तिका, सर-सर- पंक्तिका, बिल-पंक्तिका, आराम, उद्यान, कानन, वन, वनषण्ड, वन-राजि देवकुल, सभा, प्रपा, स्तूप, खाई, परिखा, प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर, प्रासाद, घर, शरण, लयन, आपण, शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ, पथ, शकटं, रथ, यान, युग्य, गिल्लि, थिल्लि, शिविका, स्यन्दमानिका, लोही, लोहकटाह, करछी, आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड, अमत्र आदि उपकरण और आजकल के Jain Education International १६ घन अंगुन (तत्कालीन ) योजन मापे जाते हैं । आत्मगुल के प्रकार से समासओ तिविहे पण्णत्ते, तं जहा--सूईअंगुले परंगुले घणंगुले । अंगुलायया एगपएसिया सेढी सूई - अंगुले । सूई सूईए गुणिया पयरंगुले । पयरं सूईए गुणितं घणं । ( अनु ३९३ ) वह (आत्मांगुल) संक्षेप में तीन प्रकार का है, जैसेसूची अंगुल, प्रतर अंगुल और घन अंगुल । एक अंगुल लम्बी एक प्रदेश वाली श्रेणी सूची अंगुल है । सूची अंगुल से गुणित सूची अंगुल प्रतर अंगुल है । सूची अंगुल से गुणित प्रतर अंगुल घन अंगुल है । सूची अंगुल एक अंगुल लम्बी आकाश प्रदेश की रेखा, जिसकी चौड़ाई और मोटाई दोनों एक आकाश प्रदेश जितनी ही हो, उसे सूची अंगुल कहते हैं। सूची अंगुल सरल रेखात्मक होता है । तर अंगुल एक अंगुल लम्बी और एक अंगुल चौड़ी तथा एक आकाश प्रदेश जितनी मोटाई वाली समचतुरस्र आकृति प्रतर अंगुल है । यह तलात्मक होता है । सूची- अंगुल एक ही आयाम में फैला हुआ होता है, जबकि प्रतर अंगुल दो आयामों में फैला हुआ होता है। सूची -अंगुल को सूची- अंगुल से गुणन करने पर प्रतर-अंगुल प्राप्त होता है । इस प्रकार -- प्रतर अंगुल = ( सूची अंगुल ) x ( सूची अंगुल) = ( सूची अंगुल ) ' सूची अंगुल के वर्ग को प्रतर अंगुल कहते हैं । घन अंगुल एक अंगुल लम्बी, एक अंगुल चौड़ी और एक अंगुल मोटाई वाली घन आकृति घन अंगुल कहलाता है । यह घनात्मक होता है । यह तीनों आयामों में फैला हुआ होता है । प्रतर अंगुल को सूची अंगुल से गुणा करने पर घन अंगुल प्राप्त होता है। इस प्रकार - घन अंगुल = ( प्रतर अंगुल ) x ( सूची अंगुल) - (सूची अंगुल ) ' = सूची अंगुल के घन को घन अंगुल कहते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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