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________________ आत्मांगुल १०. अंगबाह्य और पूर्वधर दशपूर्वधरा अपि शासनस्योपकारका उपाङ्गादीनां संग्रहण्युपरचनेन हेतुना। (ओनिवृ प ३) दस पूर्वधर भी जिनशासन के उपकारक होते हैं। वे औपपातिक आदि उपांगों तथा संग्रहणी की रचना करते हैं। अंगविद्या-(द्र. अष्टांग निमित्त) अंगुल-अंगुली, माप का एक साधन । १. अंगुल के प्रकार ___ * अंगुल : क्षेत्र प्रमाण का एक भेद (द्र. प्रमाण) २. आत्मांगुल का स्वरूप ० आत्मांगुल और पुरुष को ऊंचाई • आत्मांगुल और पाद, वितस्ति आदि • आत्मांगुल का प्रयोजन * आत्मांगल : इन्द्रियों का विषय-परिमाण (द्र. इन्द्रिय) • आत्मांगुल के प्रकार--सूची, प्रतर, घन ३. उत्सेधांगल का स्वरूप ० उत्सेधांगुल और पाद, वितस्ति आदि ० उत्सेधांगल से शरीर की अवगाहना का माप ० उत्सेधांगुल के प्रकार ४. प्रमाणांगुल का स्वरूप • भगवान महावीर की अवगाहना और अंगल • उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल ० प्रमाणांगुल का प्रयोजन • प्रमाणांगुल के प्रकार अंगुल जिस काल में पुरुष का जो प्रमाण होता है, उस आधार पर आत्मांगुल का प्रमाण माना गया है। पुरुष का प्रमाण अनवस्थित होने के कारण आत्मांगुल का प्रमाण अनियत होता है। आयंगुले-जे णं जया मणुस्सा भवंति तेसि णं तया अप्पणो अंगुलेणं दुवालस अंगुलाई मुहं, नवमुहाइं पुरिसे पमाणजुत्ते भवइ, दोणीए पुरिसे माणजुत्ते भवइ, अद्धभारं तुल्लमाणे पुरिसे उम्माणजुत्ते भवइ । (अनु ३९०) . आत्मांगुल -जिस समय जो मनुष्य होते हैं, उनके अपने अंगुल से बारह अंगुल का मुख होता है। नव मुख जितना पुरुष प्रमाण-युक्त होता है। द्रौणिक पुरुष मानयुक्त होता है । अर्धभार जितने तोल वाला पुरुष उन्मानयुक्त होता है। द्रौणिक पुरुष द्रौणिकः पुरुषो मानयुक्तो भवति । महत्यां जलद्रोण्यां उदकपूर्णायां प्रवेशे जलद्रोणास्नात्तावन्मात्रोनायां (अनुहावृ पृ७७) पानी से भरी हुई बड़ी कुण्डिका को द्रोणी कहते हैं । उस कुण्डिका में एक व्यक्ति के प्रवेश करने पर द्रोणी जितना पानी बाहर निकल जाए अथवा उतनी खाली द्रोणी में प्रवेश करने पर वह भर जाए उसे द्रौणिक पुरुष कहते हैं। वह पुरुष मानयुक्त होता है। वइरमिव सारपोग्गलोवचियदेहे तुलारोविते अद्धभारुम्मिते ओमाणजुत्ते भवति । (अनुचू पृ ५२) सारपुद्गलोपचितत्वात्तुलारोपित: सन्नर्द्धभारं तुलयन् पुरुष उन्मानयुक्तो भवति। (अनुहावृ पृ ७८) ___ सारयुक्त पुद्गलों से निर्मित होने से अर्धभार (५२३ सेर) वजन वाला पुरुष उन्मान युक्त कहलाता है। आत्मांगुल और पुरुष की ऊंचाई माणुम्माणप्पमाणजुत्ता, लक्खणवंजणगुणे हिं उववेया । उत्तमकुलप्पसूया, उत्तमपुरिसा मुणेयव्वा । होंति पुण अह्यिपुरिसा, अट्ठसयं अंगुलाण उव्विद्धा । छण्णउइ अहमपुरिसा, चउरुत्तरा मज्झिमिल्ला उ । (अनु ३९०/१,२) मान, उन्मान और प्रमाण से युक्त, स्वस्तिक, शंख आदि लक्षण, तिल आदि व्यञ्जन और क्षान्ति आदि गुणों से उपेत तथा उत्तम कुल में उत्पन्न होने वाले उत्तम १. अंगुल के प्रकार अंगुले तिविहे पण्णत्ते, तं जहा--आयंगुले, उस्सेहंगुले, पमाणंगुले। (अनु ३८९) अंगुल के तीन प्रकार हैं १. आत्मांगुल, २. उत्सेधांगुल, ३. प्रमाणांगुल । २. आत्मांगुल का स्वरूप जे णं जता मणूसा तेसिं जं होइ माणरूवं ति । तं भणियमिहायंगुलमणियतमाणं पुण इमं तु ॥ (विभाकोव पृ १०८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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