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________________ औत्पत्तिकी बुद्धि के उदाहरण ४६९ बुद्धि बुद्धि के पर्याय भरहसिल मिंढ कुक्कुड तिल .."अभिप्पाओ बुद्धिपज्जाओ।। वालुय हत्थि अगड वणसंडे । अभिप्रायो बुद्धिः अध्यवसाय इति पर्यायाः । पायस अइया पत्ते खाडहिला पंचपिअरो य॥ (विभा ३५९४ कोवृ पृ ७१२) (आवनि ९४१) अभिप्राय और अध्यवसाय बुद्धि के पर्याय हैं। औत्पत्ति की बुद्धि के उनचालीस उदाहरणविउला विमला सुहमा जस्स मई जो चतुविहाए वा । १. भरतशिला २१. रुपयों की नोली बुद्धीए संपन्नो स बुद्धिसिद्धो ॥ (आवनि ९३७) २. शर्त २२. भिक्षु जो विपुल, निर्मल और सूक्ष्म मति से सम्पन्न हैं, ३. वृक्ष २३. बालक का निधान वह बुद्धिसिद्ध कहलाता है। अथवा जो औत्पत्तिकी आदि ४. मुद्रिका २४. शिक्षा चार प्रकार की बुद्धि से सम्पन्न है, वह बुद्धि सिद्ध है। ५. वस्त्रखंड २५. अर्थशास्त्र ३. औत्पत्तिकी बुद्धि की परिभाषा ६. गिरगिट २६. मेरी इच्छा पुव्वमदिट्ठमसुयमवेय, तक्खणविसुद्धगहियत्था । ७. काग २७. एक लाख अव्वाय-फलजोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम ।। ८. उत्सर्ग २८. मेंढा औत्पत्तिकी नाम प्रातिभमिति हृदयम् । ९. हाथी २९. मुर्गा (नन्दी ३८१२ हावटि पृ १३२) १०. भाण्ड ३०. तिल पहले अदृष्ट, अश्रुत, अनालोचित अर्थ का तत्क्षण ११. लाख की गोली ३१. बालुका यथार्थ रूप से ग्रहण करने वाली, जो प्रयोजन से १२. स्तम्भ ३२. हाथी युक्त और किसी दूसरे प्रयोजन से अव्याहत है, वह बुद्धि १३. क्षुल्लक ३३. कूप औत्पत्तिकी कहलाती है। यह प्रातिभज्ञान है। १४. माग ३४. वनखण्ड ___ उत्पत्तिरेव न शास्त्राभ्यासकर्मपरिशीलनादिकं ३५. खीर प्रयोजनं कारणं यस्याः सा औत्पत्तिकी। ..."क्षयोपशमः १६. पति ३६. अजिका सर्वबुद्धिसाधारणः । ततो नासौ भेदेन प्रतिपत्ति निबन्धनं १७. पुत्र ३७. पत्र भवति। व्यपदेशान्तरनिमित्तमत्र न किमपि विनयादिकं १८. मधुमक्खियों का छाता ३८. बकरी की मेगनी विद्यते । केवलमेवमेव तथोत्पत्तिः । (नन्दीमव १४४) १९. मुद्रिका अथवा गिलहरी शास्त्रों के अभ्यास और कर्मपरिशीलन के बिना ही २०. अब ३९. पांच पिता। जो स्वतः उत्पन्न होती है, वह औत्पत्तिकी बुद्धि है। मेंढे का उदाहरण क्षयोपशम सब बुद्धियों में रहता है, अतः वह भेद भयोऽपि राजा रोहकबद्धिपरीक्षार्थ मेण्ढकमेकं प्रेषितका कारण नहीं बन सकता। विनय आदि कोई भी अन्य। वान्, एष यावत्पलप्रमाणः सम्प्रति वर्तते पक्षातिक्रमेऽपि निमित्त इसमें अपेक्षित नहीं है। इसकी उत्पत्ति स्वतः तावत्पलप्रमाण एव समर्पणीयो, न न्यनो नाप्यधिक होती है। इति, तत एवं राजादेशे समागते सति सर्वोऽपि ग्रामो उदाहरण व्याकुलीभूतचेता: बहिः सभायामेकत्र मिलितवान्, सगौरवभरहसिल, पणिय, रुक्खे, खुड्डग, माकारितो रोहकः, उवाच रोहको-वकं प्रत्यासन्न पड, सरड, काय, उच्चारे । धृत्वा मेण्ढकमेनं यवसदानेन पुष्टीकुरुत, यवसं हि गय, घयण, गोल, खंभे, खुड्डग, भक्षयन्नेष न दुर्बलो भविष्यति, वृकं च दृष्ट्वा न बल मग्गि-त्थि पइ पुत्ते ॥ वृद्धिमाप्स्यतीति, ततस्ते तथैव कृतवन्तः, पक्षातिक्रमे च महुसित्थ-मुद्दि-अंके, य नाणए भिक्खु-चेडगनिहाणे । तं राज्ञः समर्पयामासुः, तोलने च स तावत्पलप्रमाण एव सिक्खा य अत्थसत्थे, इच्छा य महं सयसहस्से । जातः । (नन्दीमत् प १४६, १४७) (नन्दी ३८॥३,४) रोहक की बुद्धि का परीक्षण करने के लिए राजा ने १५. स्त्री सिकमपरिशीलनादिकं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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