SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 515
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बुद्धि गांव वालों के पास एक मेंढा भेजा और यह आज्ञा दी कि पन्द्रह दिन बाद इसे लौटा देना है, पर ध्यान रहे इस अवधि में उसका वजन कम या अधिक नहीं होना चाहिए । राजा का यह आदेश पाकर ग्रामवासी चिन्तातुर हो गए। ग्राम के बाहर एकत्रित हुए। रोहक को बुलाया । राजा के आदेश को सुनाया । रोहक ने कहा - इसे खाने के लिए पर्याप्त चारा ( यवस) दो, पर इसको भेड़िये के पिंजरे के पास बांध दो । पर्याप्त चारा खाकर यह दुर्बल नहीं होगा और भेड़िये को देखकर बलवृद्धि को प्राप्त नहीं होगा । उन्होंने ऐसा ही किया । पन्द्रह दिन बाद राजा को मेंढा लौटा दिया । राजा ने उसे तोला, पर मेंढे के वजन में कोई अन्तर नहीं पाया । यह औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है । ४. वैनयिकी बुद्धि की परिभाषा भरनित्थरणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थ गहियपेयाला । उभओलोग फलवई, विणयसमुत्था हवइ बुद्धि ॥ ( नन्दी ३८५) भार के निर्वाह में समर्थ, त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ और काम के अर्जनोपाय के प्रतिपादक सूत्र और अर्थ का सार ग्रहण करने वाली, उभयलोक फलवती, विनय से उत्पन्न बुद्धि का नाम वैनयिकी है । उदाहरण निमित्ते अत्थसत् य, लेहे गणिए य कूव अस्से य । गद्दभ - लक्खण-गंठी, अगए रहिए य गणिया य ॥ सीया साडी दीहं, च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स । निव्वोदय गोणे, घोडगपडणं च रुक्खाओ ॥ वैनयिकी बुद्धि के चौदह उदाहरण ८. लक्षण ९. गांठ १०. औषध ११. रथिक गणिका १२. आर्द्रसाड़ी - दीर्घ तृण- उलटा घूमता हुआ क्रौञ्च पक्षी १३. नीत्रोदक - छत का पानी १४. बैल - घोड़े और वृक्ष से गिरना । १. निमित्त २. अर्थशास्त्र ३. लेख ४. गणित ५. कूप ६. अश्व ७. गर्दभ ( नन्दी ३८/६, ७) Jain Education International ----- ४७० कर्मजा बुद्धि की परिभाषा और उदाहरण अश्व का उदाहरण बहवोऽश्ववणिजो द्वारवतीं जग्मुः, तत्र सर्वे कुमाराः स्थूलान् बृहतश्चाश्वान् गृह्णन्ति । वासुदेवेन पुनर्यो निर्वाही प्रभूताश्वावहश्च जातः । वासुदेवस्य वैनयिकी लघीयान् दुर्बलो लक्षणसम्पन्नः स गृहीतः स च कार्यबुद्धिः । ( नदीवृप १६१ ) एक बार अनेक अश्ववणिक् द्वारिका नगरी में गये । वहां सब कुमारों ने स्थूलकाय और बड़े-बड़े हृष्टपुष्ट घोड़े खरीदे । श्रीकृष्ण ने अपनी वैनयिकी बुद्धि से पहचान कर एक क्रूशकाय दुर्बल घोड़ा खरीदा जो सर्व लक्षण सम्पन्न था । श्रीकृष्ण इस बुद्धि के प्रभाव से कार्य का निर्वहन करने में समर्थ तथा बहुविध अश्वों पर सवारी करने में निपुण हो गए। यह वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है । ५. कर्मजा बुद्धि की परिभाषा ओदिसारा, कम्मपसंगपरिघोलण-विसाला । साहुक्का र फलवई, कम्मसमुत्था हवइ बुद्धि ।। ( नन्दी ३८८ ) उपयोग (दत्तचित्तता) के द्वारा क्रिया के रहस्य को जानने वाली, साधुवाद है फल जिसका उस क्रिया से उत्पन्न होने वाली बुद्धि का नाम कर्मजा है । उदाहरण हेरणिए करिए, कोलिय डोए य मुत्ति घय-पवए । तुष्णाग वड्ढइ पूइए य, घड- चित्तकारे य ।। ( नन्दी ३८1९ ) कर्मजा बुद्धि के बारह उदाहरण१. स्वर्णकार ७. तैराक २. कृषक ३. जुलाहा ४. दर्वी ५. मणिकार ६. घृत-व्यापारी For Private & Personal Use Only 5. रफू करने वाला ९. बढ़ई १०. रसोइया ११. कुम्भकार १२. चित्रकार | कृषक का उदाहरण कोऽपि तस्करो रात्रौ वणिजो गृहे पद्माकरं खातं खातवान्, ततः प्रातरलक्षितस्तस्मिन्नेव गृहे समागत्य जनेभ्यः प्रशंसा माकर्णयति । तत्रैकः कर्षकोऽब्रवीत् किं नाम शिक्षितस्य दुष्करत्वं ?, यद्येन सदैवाभ्यस्तं कर्म स www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy